Friday, April 26, 2024

फिनलैंड में शिक्षकों की ट्रेनिंग का मामला, एलजी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची केजरीवाल सरकार

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नई दिल्ली। दिल्ली सरकार का कहना है कि एलजी ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को बेहतर ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड नहीं जाने दिया। इसी को लेकर अब एलजी के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम का दरवाजा खटखटाया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष याचिका लगाई गई है। दिल्ली सरकार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 14 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया है।

दिल्ली सरकार का कहना है कि दिल्ली के एलजी ने अक्टूबर 2022 से प्रस्ताव का जवाब नहीं देकर सरकारी स्कूल के शिक्षकों के पूर्व निर्धारित प्रशिक्षण को रोक दिया। एससीईआरटी ने उपराज्यपाल को एक विस्तृत प्रस्ताव भेजा था। इसमें शिक्षा निदेशालय के प्राथमिक शिक्षा प्रभारी और एससीईआरटी, डाइट के शिक्षकों को फिनलैंड में प्रशिक्षण के लिए मंजूरी मांगी गई। लेफ्टिनेंट गवर्नर ने प्रशिक्षण में देरी करने के उद्देश्य से प्रस्ताव के जवाब में 3 सप्ताह से अधिक समय के बाद असंगत और अनावश्यक टिप्पणियां दी। इसके बावजूद एससीईआरटी ने तुरंत प्रत्येक आशंकाओं का विस्तार से जवाब दिया। इसके बाद उपराज्यपाल ने और स्पष्टीकरण मांगे। इसके बाद मुख्यमंत्री को 9 जनवरी 2023 को मुख्यमंत्री को ऐसी योजनाओं के कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस की मांग करते हुए फाइल वापस कर दी।

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दिल्ली सरकार का कहना है कि पहली बार प्रस्ताव 25 अक्टूबर 2022 को एलजी को प्रस्तुत किया गया था। इसे कई संशोधनों और शर्तों के साथ 5 महीने यानी 4 मार्च 2023 को स्वीकृत किया गया था। तब तक यह योजना बेकार हो गई थी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 16 जनवरी को मंत्रियों, विधायकों और आप के कार्यकतार्ओं को उपराज्यपाल के आवास पर ले जाकर शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने के सरकार के प्रस्ताव को तत्काल मंजूरी देने की मांग की थी।

दिल्ली सरकार के मुताबिक अब दिल्ली के सरकारी स्कूलों के प्राथमिक प्रभारी शिक्षकों को फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव को मंजूरी देने में उपराज्यपाल द्वारा अनुचित और जानबूझकर की गई देरी के कारण दिल्ली सरकार को वर्तमान याचिका दायर करनी पड़ी है।

इस संदर्भ में दिल्ली सरकार, निर्धारित कानून का फिर से उल्लेख करने की मांग कर रही है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। उनके पास कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है।

सरकार ने तर्क दिया है कि उपराज्यपाल ने शर्तों या संशोधनों को लागू करके अवैध और असंवैधानिक रूप से एक अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका अदा की है। हालांकि, संवैधानिक पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उपराज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है और वह मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य हैं।

दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में अदालत से यह स्पष्ट उल्लेखित करने की गुहार लगाई है कि दिल्ली के उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। सरकार ने अदालत से दिनांक 04 मार्च 2023 के आदेश को रद्द करने और एससीईआरटी के दिनांक 18 अक्टूबर 2022 के प्रस्ताव को स्वीकृति देने की भी मांग की है।

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