Monday, November 18, 2024

कूष्माण्डा-4

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूषमाण्डा शुभदास्तु मे।।

मां दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मन्द, हल्की हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं।

इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर लोक में हैं। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है। इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।

इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जयमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कुम्हडे को कहते हैं। बलियों में कुम्हडे की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है।

इस कारण से भी ये कूष्माण्डा कही जाती हैं। नवरात्रा पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहतÓ चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यंत पवित्रा और अचंछल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।

मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाये तो फिर उसे अत्यंत सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

हमें चाहिए कि हम शास्त्रों-पुराणों में वर्णित विधि-विधान के अनुसार मां दुर्गा की उपासना और भक्ति के मार्ग पर अहर्निश अग्रसर हों। मां के भक्ति मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुख स्वरूप संसार उसके लिये अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है।

मां की उपासना मनुष्य को सहज भाव वे भवसागर से पार उतारने के लिये सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अत: अपनी लौकिक-पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय