Friday, November 22, 2024

मकर संक्रान्ति-धार्मिक, सामाजिक और विज्ञान का समुच्चय !

मकर संक्रान्ति भारतीय सनातनियों का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्यौहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। वस्तुत: कर्क रेखा (ट्रोपिक आफ कैंसर) भारत के मध्य से गुजरने वाला अक्षांश है। कर्क रेखा एक काल्पनिक रेखा है जो भूमध्य रेखा से 23.50 डिग्री उत्तर के कोण पर पाई जाती है और यह भारत के मध्य से होकर गुजरती है। इसे उत्तरी उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।
ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि संक्रांति का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि से प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं क्योंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।
हिंदू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है।
दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होने लगता है। इसीलिए इसे पंजाब में प्रकाशोत्सव और गुरु नानक के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है पूर्व संध्या को लोढ़ी के रूप में रात्रि जागरण भी किया जाता है। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतना एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
चंद्र माह के ज्योतिषीय गणना में दो भाग होते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्ष इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के दो भाग हैं। उत्तरायण और दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थानरत हो जाता है। उत्तरायण अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है तो उत्तर दिशा की ओर से ही सूर्य निकलने लगता है। इसे सौम्यायन भी कहते हैं। छह: माह सूर्य उत्तरायण रहता है और 6 माह दक्षिणायन रहता है। अत: यह पर्व उत्तरायण या उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन से बसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की बेला के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फैसले कट चुकी होती है और खेतों में रबी की फैसले लहलहा रही होती है। खेत में सरसों के पीले फूल मनमोहन लगते हैं। मकर संक्रांति के पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तौर तरीकों से मनाया जाता है।  दक्षिण भारत में भी इस त्यौहार को कई रूप रूप में मनाया जाता है तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहा जाता है। और उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, गंगा स्नान, पतंगोतसव आदि कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, उत्तरायणी, मगही आदि नाम से भी जाना जाता है।
सूर्य के दूरगामी हो जाने से सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण, शरीर में रोग निवारण क्षमता कम होने से बीमारियां जल्दी लगती हैं। इसलिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान या पकवान बनाए खाए और बांटे जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषकतत्व भी होते हैं। उत्तर भारतीय क्षेत्रों में इस दिन गंगा स्नान कर खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और गुड, तिल, रेवड़ी या गजक का प्रसाद भी बांटा जाता है।
चूंकि यह भी माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि देव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन हर नदी के तट पर और तीर्थ स्थानों के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल में गंगासागर में भी विशाल मेला लगता है। चूंकि यह पर्व पतंग महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। पूर्वजो द्वारा पतंग उड़ाने की परम्परा डालने के पीछे मुख्य कारण है यही है कि कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिता लिए जाएँ। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सूर्य की किरणें शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होती है। अत: उत्सव के साथ ही मनोरंजन के साथ स्वास्थ्य लाभ भी हो जाता है।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है जो आषाढ़ मास तक रहता है। भारतीय ग्रन्थों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन ऐसी भी मान्यता है कि भगवान सूर्य अपनी नाराजगी छोडकर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी स्वर्ग से उतर कर भगीरथ के पूर्वजों का तर्पण करने पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति में सहायक बनता है।
-राज सक्सेना

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