मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों के मामले की सुनवाई के लिए सोमवार को विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट में कई वरिष्ठ नेता और आरोपी पेश हुए। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व गन्ना मंत्री सुरेश राणा, वर्तमान राज्य मंत्री कपिल देव अग्रवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, साध्वी प्राची, भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह, पूर्व भाजपा विधायक उमेश मलिक, और अन्य शामिल थे।
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कोर्ट में पेशी के दौरान सभी आरोपियों के उपस्थित न होने के कारण आरोप तय नहीं किए जा सके। विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट के पीठासीन अधिकारी देवेंद्र कुमार सिंह ने आरोप तय करने के लिए अगली तारीख 17 दिसंबर निर्धारित की। इस दौरान यति नरसिंहानंद ने कोर्ट में सरेंडर कर गैर-जमानती वारंट को रद्द करने की अर्जी दी। कोर्ट ने उन्हें अगली सुनवाई में उपस्थित होने की शर्त पर वारंट रद्द कर दिया। 2013 में मुजफ्फरनगर के नागला मदौर में आयोजित पंचायत में भड़काऊ भाषण देकर निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने का आरोप इन नेताओं पर लगाया गया है। आरोप है कि उनके भाषणों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा, जिसके बाद दंगे भड़के।
पूर्व गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने समाजवादी पार्टी की पूर्व सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि “समाजवादी पार्टी सरकार ने जानबूझकर दंगे कराए। दंगा करने वालों को सरकारी विमान में बैठाकर मुख्यमंत्री आवास में बिरयानी खिलाई जाती थी।””हजारों निर्दोष लोगों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें से कई अब भी परेशान हैं।” राणा ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार को किसानों और विकास के लिए प्रतिबद्ध बताया और कहा कि भाजपा सरकार ने किसानों के हित में कई अहम फैसले लिए हैं।
साध्वी प्राची ने दंगों को लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि”2013 की नागला मदौर पंचायत में हिंदुओं के हित की बात की गई थी, लेकिन तत्कालीन अखिलेश सरकार ने हिंदुओं के खिलाफ कार्रवाई की।””अखिलेश यादव को हिंदुओं के टुकड़े-टुकड़े करना याद रहा, लेकिन मुजफ्फरनगर में भाईचारा कायम रखने की कोशिश नहीं की।”उन्होंने संभल हिंसा की घटना को “ट्रेलर” बताया और कहा कि इससे समाजवादी पार्टी की “हिंदू विरोधी मानसिकता” उजागर होती है।
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अन्य भाजपा नेताओं ने भी इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी पर हमला बोला। उन्होंने दंगों को राजनीतिक साजिश करार दिया और दावा किया कि भाजपा सरकार ने प्रदेश में शांति और विकास का माहौल बनाया है। 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों में सांप्रदायिक तनाव के चलते करीब 60 लोग मारे गए थे और हजारों लोग विस्थापित हुए थे। इस मामले में कई राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भड़काऊ भाषण देने और हिंसा भड़काने के आरोप हैं।