Friday, May 2, 2025

किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ 4 मई को होने वाली बैठक टली

चंडीगढ़ । न्यूनतम समर्थन मूल्य की संवैधानिक गारंटी की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ 4 मई को होने वाली बैठक टाल दी गई है। कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव पूर्ण चंद्र किशन ने गुरुवार को संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा को लिखे पत्र में यह जानकारी दी।

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पूर्ण चंद्र किशन ने दोनों संगठनों को लिखे पत्र में कहा, “दोनों संगठनों और केंद्रीय मंत्रियों की पिछली बैठक में 4 मई 2025 को अगली बैठक तय हुई थी। इसके लिए मैंने 25 अप्रैल 2025 को पत्र भी भेजा था। लेकिन, आपके 27 अप्रैल के पत्र में पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों को बैठक में शामिल न करने की मांग की गई है। जैसा कि आप जानते हैं, संघीय ढांचे में राज्य सरकारों का महत्व है, इसलिए पंजाब सरकार को बैठक में शामिल करना जरूरी है।”

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उन्होंने पत्र में किसान संगठनों से अपने फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया है ताकि बातचीत से समाधान निकल सके। उन्होंने लिखा, “आपसे अनुरोध है कि पंजाब सरकार की भागीदारी के साथ बैठक में शामिल होने की सहमति दें। जब तक आपकी सहमति नहीं मिलती, 4 मई की बैठक टाल दी जाती है। अगली बैठक की तारीख आपकी सहमति मिलने के बाद तय होगी।” उल्लेखनीय है कि 4 मई को होने वाली बैठक में किसान संगठन के नेताओं ने पंजाब सरकार के किसी भी

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मंत्री के शामिल न होने की मांग की थी। हालांकि, किसानों के विरोध के बावजूद पंजाब सरकार 4 मई को होने वाली बैठक में हिस्सा लेने को तैयार थी। किसान पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यदि पंजाब सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने बैठक में हिस्सा लिया तो वे उसमें शामिल नहीं होंगे।

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संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा का मानना है कि खेती से जुड़ी समस्याओं का समाधान केवल बातचीत और बैठकों के माध्यम से ही निकल सकता है। किसान संगठन हमेशा से शांतिपूर्ण बातचीत के लिए तैयार रहे हैं। 19 मार्च को पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बैठक हुई थी। इसके बाद अगली बैठक 4 मई 2025 तय की गई थी। लेकिन 19 मार्च की बैठक के खत्म होने के तुरंत बाद जो हुआ, उसने सभी किसानों को चौंका दिया था। किसान नेताओं ने कहा था कि बैठक के बाद पंजाब सरकार ने धोखे से कई किसान नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इसके साथ ही शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलनों को जबरदस्ती और हिंसक तरीके से खत्म किया गया था।

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