Saturday, September 28, 2024

कीट एवं रोग नियंत्रण को आधुनिक तकनीक एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन फसलों को बचाने में कारगर- विकास कुमार

गाजियाबाद। फसलों में प्रतिवर्ष कीट रोग एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अंधाधुध प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसको देखते हुए अब परम्परागत कृषि विधियों साथ भूमि शोधन एवं बीज शोधन को अपनाकर कीट, रोग एवं खरपतवार के प्रकोप को कम करने के लिए किसानों को उन्नत जानकारी दी गई है।

 

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कृषि अधिकारी विकास कुमार ने बताया कि अधिक रसायनों के प्रयोग से उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है साथ ही उपयोग करने वाले मानव स्वास्थ्य भी इससे प्रभावित होता है। परंपरागत तरीके से खरपतवार और कीटनाशी उपयोग करने से कृषकों की उत्पादन लागत कम होने से उनकी आय में वृद्धि होती है। इन विधियों को अपनाने से पर्यावरणीय प्रदूषण कम होता है। कीट एवं रोग नियंत्रण को आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आईपीएम) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है। ग्रीष्मकालीन कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबच्चन मानसून आने से पूर्व मई-जून महीने में किया जाता है।

मेडों की साफ सफाई-मेडों पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई

उन्होंने बताया कि इससे मेडों की साफ सफाई-मेडों पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा कम होती है। खरपतवारों को आगामी बोई जाने वाली फसल में फैलने से रोका जा सकता है। मेडों पर उगे हुए खरपतवारों को नष्ट करने से हानिकारक कीटों एवं सूक्ष्य जीवों के आश्रय नष्ट हो जाते है। जिससे अगली फसल में इनका प्रकोप कम हो जाता है। सिंचाई के जल को खेत में रोकने में सहायता मिलती है। खेत में उगे खरतपवार एवं फसल अवशेष गिट्टी में दबकर सड़ जाते है। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। मिट्टी के अन्दर छिपे हानिकारक कीट जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ, बीटिल एवं मैगट के अण्डे, लार्वा व प्यूपा नष्ट हो जाते हैं। जिससे अग्रिम फसल में कीटों का प्रकोप कम हो जाता है। गहरी जुताई के बाद खरपतवारों जैसे-पत्थर चट्टा, जंगली चौलाई, दुध्धी, पान पत्ता, रसभरी, साँवा गकरा आदि के बीज सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है।

गर्मी में गहरी जुताई के दौरान मर जाते हैं हानिकारण जीवाणु

गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु (इरवेनिया, राइजोमोनास, स्ट्रेप्टोमाइसीज आदि), कवक (फाइटोफथोरा, रांजोकटोनिया, स्कलेरोटीनिया, पाइथियम, वर्टीसीलियम आदि) निगटोड (रूट नॉट) एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते है जो फसलों में बीमारी के प्रमुख कारक होते है, जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है, मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोडे गये हानिकारक रसायन सरलता से अपघटित हो जाते हैं।

उन्होंने किसानों से अपनी फसलों को ग्रीष्मकालीन कीट रोग एवं खरपतवारों के प्रकोप से बचाने हेतु दिए गए सुझावों का प्रयोग करने का अनुरोध किया है।

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