मुजफ्फरनगर। वाणी साहित्यिक संस्था की मासिक गोष्ठी सुनीता मीना सोलंकी के आवास शाकुंतलम स्थित पर आयोजित की गई। जिसमें बृजेश्वर सिंह त्यागी ने अध्यक्षता की और सचिव सुनील कुमार शर्मा ने संचालन किया। सर्वप्रथम मां सरस्वती की वंदना गोष्ठी की आयोजिका सुनीता सोलंकी द्वारा की गई।
तत्पश्चात रामकुमार शर्मा रागी ने अपनी रचना पढ़ी, मैं भी बंधना चाहता हूं, बंधन में सुंदर बाहों के। मुझको बरबस रोक रहे हैं करुण क्रंदन राहों के।
विपुल शर्मा ने अपनी रचना को कुछ यूं पढा, सर्द रातों में कहां मिलता है अंधेरा, जब फैल जाती है कोहरे की चादर हर कहीं।
पंडित राजीव भावग्य ने कुछ यूं कहा कि मुझे सत्व संयोजन पाकर, यह चक्र सतत चलता ही रहेगा। भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों में ढलकर।।
विजय गुप्ता ने कहा कि मेरे काम से ही मेरी हस्ती है,उमंग है, उल्लास है और मस्ती है। चिंता को उडाती हूं मैं चुटकी में, खुशियों की दुनिया में मेरी बस्ती है।
आयोजिका सुनीता सोलंकी ने सुनाया कि तुम हुए जाते फिदा तो क्या करोगे सोच लो हो। हो गई कोई खता तो क्या करोगे सोच लो।।
सचिव सुनील कुमार शर्मा ने विदाई पर अपना रचना पाठ कुछ यूं किया..
कौन कहता है आपकी विदाई है आज।
आपको थका देने वाली जिम्मेदारियां थी जो ,उन जिम्मेदारियां से आपकी जुदाई है आज।
कौन कहता है आपकी विदाई है आज ।।
सुशील सिंह ने यह कहा..
अब यह मत पूछना यह शब्द कहां से लाता हूं सुनता हूं कुछ दर्द दुनिया का, कुछ आप बीती मैं सुनाता हूं।
पंकज शर्मा ने प्रेम पर अपनी रचना पाठ किया..
चलो एक बार हों फिर से, पुराने प्यार की बातें।
तेरे इंकार की बातें,मेरे इकरार की बातें।
शायर संतोष कुमार शर्मा फलक ने कहा,
गिनतियां यारों के बस उतनी ही जानिए,जितने निशा मेरी कमर तिरओ खंजर के हैं।।
वाणी अध्यक्ष बृजेश्वर त्यागी ने अपना अंदाज कुछ यूं बयां किया…
वो कल की बात थी, रात गुजर गई ।
मुझसे तो बस आज की बात कर।।
गोष्ठी में बृजेश्वर सिंह त्यागी, रामकुमार शर्मा रागी, संतोष कुमार शर्मा फलक,पंकज शर्मा,विपुल शर्मा,सुनीता सोलंकी ,सुमन युगल, मीरा भटनागर, सुनील कुमार शर्मा आदि मुख्य रुप से उपस्थित रहे।