आर्थिक तंगी के चलते भूखों मरता पाकिस्तान अब अपनी बदनीयती की वजह से प्यासे भी मरेगा। आतंकियों का पनाहगार बने पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद होने वाला है। भारत अब पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी जल समझौते पर आगे नहीं बढऩा चाहता। इससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढऩी तय हैं। इस मामलें में भारत ने वियना में एक तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा बुलाई बैठक में अपना वक्तव्य दे दिया है।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद पैदा हो गया है। पाकिस्तान इस विवाद का समाधान चाहता है मगर आतंक फैलाने वाले पाकिस्तान को भारत अब पानी नहीं देना चाहता। यह बैठक इसके समाधान के उद्देश्य से कार्यवाही का हिस्सा थी।
पाकिस्तान की आर्थिक हालत इस कदर बदहाल हो गई है कि वहां लोगों को दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हैं। पाकिस्तान भूख से तड़प रहा है। आटे, दाल और चावल के लिए लोग आपस में छीना-झपटी और मारपीट तक कर रहे हैं। पाकिस्तान के आंतरिक हालात की ये तस्वीरें पूरी दुनिया देख रही है। महंगाई पाकिस्तान में लोगों की कमर तोड़ चुकी है।
पाकिस्तानियों को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा। अभी तक पाकिस्तान भूख और आर्थिक बदहाली का मारा है, लेकिन अब उसके प्यासों मरने की भी नौबत आ गई है। भारत ने पहले उसे दर-दर कटोरा लेकर भीख मांगने को मजबूर किया था। अब यही भारत उसे बाल्टी पकड़ाने जा रहा है। क्योंकि पाकिस्तान की हरकतें ही कुछ ऐसी हैं। दरअसल भारत पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी जल समझौता तोडऩे के मूड में है। इससे पाकिस्तान भारत के सामने गिड़गिड़ाने लगा है। अगर भारत ने यह समझौता तोड़ दिया तो पाकिस्तान को प्यासे मरने की नौबत आ जाएगी। फिर वह बाल्टी लेकर भटकेगा।
गौरतलब है कि भारत ने सिंधु जल समझौता 1960 में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। 62 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की थी। उस समय पाकिस्तान को जारी नोटिस इसलिए भी मायने रखता था क्योंकि भारत के कई एक्सप्रेस समय-समय पर इस समझौते को रद्द करने की मांग करते रहे हैं. भारत भी इससे पहले पाकिस्तान को पानी रोकने की चेतावनी दे चुका था।
पुलवामा हमले के बाद फरवरी 2019 में भारत के तत्कालीन परिवहन और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत पाकिस्तान में बह रहे अपने हिस्से के पानी को रोक सकता है। सिंधु जल समझौता रद्द होने या भारत की ओर से पानी डायवर्ट करने से पाकिस्तान में नदी के पानी पर निर्भर रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए संकट पैदा हो सकता है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत ने यह नोटिस 25 जनवरी 2022 को जारी किया था।
भारत की ओर से जारी नोटिस में कहा गया था कि भारत, पाकिस्तान के साथ जल संधि को पूरी तरह से लागू करने का समर्थक रहा है, लेकिन पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने भारत को जरूरी नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया। नोटिस जारी करने का मुख्य मकसद पाकिस्तान को समझौते के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों की मोहलत देना था। पाकिस्तान नोटिस रिसीव करने के तीन महीने के भीतर आपत्ति दर्ज करा सकता था।
दरअसल सिंधु जल समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था. लगभग 63 साल पहले हुई सिंधु जल संधि आईडब्ल्यूटी के तहत भारत को सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों से 19.5 प्रतिशत पानी मिलता रहा है, जबकि पाकिस्तान को लगभग 80 प्रतिशत पानी मिलता है. भारत अपने हिस्से में से भी लगभग 90 प्रतिशत पानी ही उपयोग करता रहा है।
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को छह नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की वार्षिक बैठक होना अनिवार्य है. सिंधु जल संधि को लेकर पिछली बैठक 30-31 मई 2022 को नई दिल्ली में हुई थी. इस बैठक को दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण बताया था। पू्र्वी नदियों पर भारत का अधिकार है, जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया। इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।
भारत को आवंटित तीन पूर्वी नदियां सतलज, ब्यास और रावी के कुल 168 मिलियन एकड़-फुट में से लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल भारत के लिए आवंटित किया गया है. भारत अपने हिस्से का लगभग 90 प्रतिशत ही उपयोग करता है. बाकी बचा हुआ पानी पाकिस्तान चला जाता है, जबकि पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है।
सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ पांच सहायक नदियां भी शामिल हैं। इन नदियों में रावी, ब्यास, सतलज, झेलम और चिनाब है। ये नदियां सिंधु नदी के बाएं बहती है। रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां जबकि जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। इन नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। पुलवामा हमले के बाद भारत के तत्कालीन परिवहन और जल मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट करते हुए कहा था कि भारत सरकार पाकिस्तान जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला कर रहा है।
हम पूर्वी नदियों के पानी को डायवर्ट कर जम्मू-कश्मीर और पंजाब में अपने लोगों को इसकी आपूर्ति करेंगे। इसके अलावा, गडकरी ने उत्तर प्रदेश में कई जल परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए कहा था कि हमारी तीन नदियां पाकिस्तान में बहती हैं। इसलिए हमारे हिस्से का पानी पाकिस्तान में जा रहा है. अब हम एक परियोजना बनाने और इन नदियों के पानी को यमुना में मिलाने की योजना बना रहे हैं। कई विशेषज्ञों और सुरक्षा प्रतिष्ठानों का कहना है कि सिंधु संधि जल समझौता एक ऐतिहासिक भूल थी. अब समय आ गया है कि भारत इस भूल को ठीक करे. इस समझौते में जरूरी संशोधन कर सिंधु और उसके सहायक नदियों का पानी उचित मात्रा में आवंटित करे।
पाकिस्तान रुक-रुक कर भारत पर आतंकी हमला करता रहता है। ऐसे में खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। एक अन्य एक्सपर्टस सतीश चंद्रा का कहना है कि नेहरू ने यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद से की थी, लेकिन पाकिस्तान ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया है। हमें इस समझौते से बाहर निकल जाना चाहिए। इस संधि की वजह से कई भारतीय परियोजनाओं को रोक दिया गया।
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस आईडीएसए के नॉन-ट्रेडिशनल सिक्योरिटी सेंटर के हेड उत्तम कुमार मनोहर सिन्हा के अनुसार इस समझौते से बाहर निकलने का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन यह समझौता इसलिए जारी है क्योंकि भारत इसे जारी रखना चाहता है. दूसरे शब्दों में कहें तो इस समझौते को रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन समझौते के प्रावधानों में संशोधन का उल्लेख है। हालांकि, 1960 में पाकिस्तान के अनुकूल समझौता होने के कारण पाकिस्तान फिर से इसपर बातचीत नहीं करना चाहेगा. उत्तम कुमार का मानना है कि संधि को रद्द करने में कोई रणनीतिक लाभ नहीं है।
दरअसल, सिंधु जल समझौते के तहत भारत को कुछ शर्तों के साथ पश्चिमी नदियों पर रन ऑफ द रिवर परियोजना के माध्यम से पनबिजली उत्पन्न करने का अधिकार दिया गया है। भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा (नीलम) और रातले जलविद्युत परियोजनाएं इन्हीं पश्चिमी नदियों पर हैं, लेकिन पाकिस्तान इस पर आपत्ति जताता रहा है। पाकिस्तान ने 2015 में इस परियोजना पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया था, लेकिन 2016 में पाकिस्तान ने इस अनुरोध को एकतरफा वापस लेते हुए फैसला सुनाने के लिए एक मध्यस्थ अदालत की मांग की।
पारस्परिक रूप से बीच का रास्ता निकालने के लिए भारत की ओर से बार-बार प्रयास करने के बावजूद पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। इस तरह से पाकिस्तान की ओर से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के लगातार उल्लंघन ने भारत को सिंधु जल समझौते में संशोधन इस तरह से पाकिस्तान की ओर से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के लगातार उल्लंघन ने भारत को सिंधु जल समझौते में संशोधन को लेकर नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया।
अब हाल ही में प्राप्त समाचारों के अनुसार भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार देश के मुख्य अधिवक्ता हरीश साल्वे इस बैठक में मौजूद रहे। ”जल संसाधन विभाग के सचिव के नेतृत्व में भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने 20 और 21 सितंबर को वियना में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में किशनगंगा और रतले मामले में तटस्थ विशेषज्ञ की कार्यवाही की बैठक में भाग लिया और भारत ने अपना पक्ष मध्यस्थता न्यायालय में दे दिया है। इससे पाकिस्तान में खलबली मच गई है। अगर भारत ने पाकिस्तान का पानी बंद किया तो उसे प्यासों मरने से कोई नहीं बचा सकता।
-अशोक भाटिया