Saturday, September 21, 2024

मायावती ने मीरापुर से शाहनजर, मिल्कीपुर से रामगोपाल कोरी को दिया टिकट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 10 खाली हुई सीटों पर उपचुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। बसपा (बहुजन समाज पार्टी) ने उपचुनाव के लिए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं और उम्मीदवारों की घोषणा भी की है।  बसपा प्रमुख मायावती ने अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट से रामगोपाल कोरी और मुज़फ्फरनगर की मीरापुर सीट से शाहनजर को उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि बसपा इससे पहले मझवां से दीपू तिवारी और फूलपुर से शिवबरन पासी को प्रभारी बना चुकी है।

 

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रामगोपाल कोरी ने 2017 में भी बसपा के टिकट पर इसी सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली थी और वे तीसरे स्थान पर रहे थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में यह सीट सपा (समाजवादी पार्टी) के खाते में गई थी, जहां से अवधेश प्रसाद विधायक बने थे। बाद में, अयोध्या लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे यह सीट खाली हो गई थी।

बसपा द्वारा इन उपचुनावों में सक्रियता से उम्मीदवारों की घोषणा से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी इन उपचुनावों को लेकर गंभीर है और अपनी रणनीति के अनुसार आगे बढ़ रही है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है। हाल ही में, बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी कार्यालय पर एक महत्वपूर्ण बैठक की थी, जिसमें उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ उपचुनाव की तैयारियों की समीक्षा की। इस बैठक में सभी 10 विधानसभा सीटों के लिए तैयार किए गए उम्मीदवारों के पैनल पर भी चर्चा हुई।

मायावती ने जोनल प्रभारियों से और अधिक योग्य एवं कर्मठ उम्मीदवारों के नाम मांगे थे, ताकि वे पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन कर सकें। अब तक, बसपा ने फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी और मझवा सीट से दीपू तिवारी की उम्मीदवारी पर सहमति जताई है।

हालांकि उपचुनाव की तारीखों की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन चुनावी सरगर्मियां तेजी से बढ़ रही हैं, और बसपा अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है।

मायावती के इस फैसले ने उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों में नई हलचल पैदा कर दी है। आमतौर पर उपचुनाव में भागीदारी न करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का निर्णय काफी महत्वपूर्ण है। इस फैसले से साफ है कि मायावती इस बार के विधानसभा उपचुनाव को बेहद गंभीरता से ले रही हैं और इसे अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।

बसपा के इस कदम से समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। मायावती के रणनीतिक मुद्दे, जैसे अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण और नजूल भूमि से जुड़े फैसले, विपक्षी पार्टियों के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। खासकर, जब बसपा कार्यकर्ता इन मुद्दों को घर-घर जाकर प्रचारित करेंगे और मायावती के वक्तव्य की प्रतियां बांटेंगे, तो इससे विपक्षी दलों की स्थिति कमजोर हो सकती है।

इस चुनावी मुकाबले में बसपा का यह कदम यूपी की राजनीति में बड़े बदलाव की संभावना को दर्शाता है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि बाकी पार्टियां इस चुनौती का सामना कैसे करती हैं।

बसपा (बहुजन समाज पार्टी) का उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, खासकर दलित और पिछड़े वर्गों के मतदाताओं के बीच। हालांकि, पिछले कुछ चुनावों में बसपा का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा, जिससे उसके राजनीतिक प्रभाव पर सवाल उठने लगे हैं।

इसके बावजूद, बसपा के पास एक मजबूत परंपरागत वोट बैंक है, जो पार्टी के लिए विभिन्न सीटों पर महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां बसपा का आधार मजबूत है, वहां पार्टी की मौजूदगी से अन्य दलों को चुनौती मिल सकती है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा बसपा को भाजपा की “बी टीम” कहे जाने का आरोप राजनीतिक दृष्टिकोण से दिया गया बयान है। अखिलेश यादव का यह आरोप इस धारणा पर आधारित हो सकता है कि बसपा के चुनावी रणनीति से भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है, खासकर तब जब बसपा और सपा दोनों एक ही मतदाता वर्ग को लक्षित करती हैं।

मायावती द्वारा उपचुनाव की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा ने सपा नेताओं को और अधिक सशंकित कर दिया है, और यही कारण है कि उन्होंने इस तरह के आरोप लगाए हैं। यह आरोप और बयानबाजी आगामी चुनावों में दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक संघर्ष और ध्रुवीकरण को दर्शाती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह स्थिति यह भी दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में समीकरण काफी जटिल हो सकते हैं, जहां जातीय और धार्मिक वोट बैंक का महत्व अधिक होता है। इस प्रकार, आने वाले उपचुनावों में बसपा की भूमिका और प्रदर्शन पर विशेष नजर रहेगी।

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