Monday, November 25, 2024

धर्म संस्कृति: पता नहीं क्यों मुझे ‘प्रेम’ शब्द सुनते ही सबसे पहले कृष्ण याद आते हैं

वे कृष्ण, जो एक बार गोकुल छोड़ते हैं तो कभी मुड़ कर नहीं देखते गोकुल की ओर… न यमुना, न वृंदाबन, न कदम्ब, न राधा, कोई उन्हें दुबारा खींच नहीं पाता। मथुरा-गोकुल से अधिक दूर नहीं है हस्तिनापुर। कृष्ण सौ बार हस्तिनापुर गए पर गोकुल नहीं गए। क्यों?

मुझे लगता है यदि कृष्ण दुबारा एक बार भी गोकुल चले गए होते तो उनके प्रेम की वह ऊंचाई नहीं रह जाती जो है। प्रेम देह की विषयवस्तु नहीं, आत्मा का श्रृंगार है। प्रेम जिस क्षण देह का विषय हो जाय, उसी क्षण पराजित हो जाता है। कृष्ण का प्रेम आत्मा का प्रेम था। वे कभी राधिका के साथ नहीं रहे। कृष्ण का स्मरण कर राधिका रोती रहीं, राधिका का स्मरण कर कृष्ण मुस्कुराते रहे। दोनों देह से दूर रहे, पर दोनों की आत्मा साथ रही। तभी कृष्ण का प्रेम कभी पराजित नहीं हुआ। वे जगत के एकमात्र प्रेमी हैं जिनका प्रेम अपराजित रहा…।

यह भी कितना अजीब है कि कृष्ण का स्मरण कर राधिका रोती रहीं और राधिका का स्मरण कर कृष्ण मुस्कुराते रहे। वस्तुत: दोनों अपनी मर्यादा ही निभा रहे थे। पुरुष रो नहीं पाता। वह मर्मांतक पीड़ा भी मुस्कुरा कर सहता है। पुरुष होने का भाव पुरुष को अंदर ही अंदर मार देता है, फिर भी वह अपनी पीड़ा किसी को नहीं बता पाता। कृष्ण तो पूर्ण पुरुष के दावे के साथ आये थे, कैसे रोते? रोये थे मेरे राम। पिता के लिए रोये, माता के लिए रोये, भाई के लिए रोये, पत्नी के लिए रोये, मित्र के लिए रोये, मातृभूमि तक के लिए रोये।

लोगों को लगता है कि कृष्ण कोमल थे और राम कठोर। मुझे लगता है राम कोमल थे, कृष्ण कठोर।. राम ने सबको क्षमा कर दिया। चौदह वर्ष की कठोर पीड़ा देने वाली मंथरा तक को कुछ नहीं किया। कैकई के प्रति तनिक भी कठोर नहीं हुए पर कृष्ण ने किसी को क्षमा नहीं किया। दुर्योधन कर्ण तो छोडिय़े, अपने सबसे प्रिय मित्रा अर्जुन तक को क्षमा नहीं किया। पत्नी का अपमान देखने का पाप किया अर्जुन ने, तो उन्ही के हाथों उनके कुल का नाश कराया। राम क्षमा करना सिखाते हैं और कृष्ण दण्ड देना। जीवन के लिए यह दोनों कार्य अत्यंत आवश्यक हैं।

लोग पूछते हैं कि आखिर क्या कारण है कि विश्व की सारी सभ्यताएँ नष्ट हो गईं पर भारत अभी भी स्वस्थ है। मेरा यही उत्तर होता है कि भारत ने राम और कृष्ण दोनों को पूजा है, इसी कारण दीर्घायु है।
हाँ तो बात प्रेम की। या कहें तो बात कृष्ण की… कहते हैं, कृष्ण ने उद्धव को गोकुल भेजा था गोपियों को ज्ञान सिखाने के लिए… क्या सचमुच? शायद नहीं। कृष्ण ने उद्धव को भेजा था ताकि उद्धव जब वापस लौटें तो उनसे गोकुल की कथा सुन कर एक बार फिर वे गोकुल को जी सकें… जो आनंद अपने प्रिय के बारे में किसी और के मुख से अच्छा सुनने में मिलता है, उसे याद करते रहने में मिलता है, वह आनंद तो प्रिय से मिलने में भी नहीं मिलता। है न?

कृष्ण ने विश्व को सिखाया कि प्रेम को जीया कैसे जाता है… कृष्ण अभी युगों तक प्रेम सिखाते रहेंगे।
मुझे लगता है जब-जब राधा कृष्ण की कथा लिखी गयी है तो केवल राधा की ओर से लिखा गया है। राधा का वियोग, राधा का समर्पण, राधा के अश्रु… किसी ने कृष्ण को नहीं लिखा। कृष्ण भले गोकुल नहीं गए पर जीवन भर उसी गोकुल के इर्द-गिर्द घूमते रहे। हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, कुरुक्षेत्र… नहीं तो कहाँ द्वारिका, कहाँ इंद्रप्रस्थ…।
यदि कभी कृष्ण के प्रेम को लिख सका तो… कन्हैया जाने।
– सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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