Saturday, May 18, 2024

बिहार में राजद ‘खेला करने’ के खेल में खुद फंसी

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पटना। नीतीश कुमार के महागठबंधन को छोड़कर एनडीए के साथ आकर सरकार बनाने के बाद राजद के नेता तेजस्वी यादव ने भले ही सत्ता पक्ष को कटघरे में खड़ा करने की नीयत से ‘खेला होने’ की बात कही थी, लेकिन विधानसभा में विश्वास मत के दौरान राजद इस चाल में खुद फंस गई।

 

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दरअसल, सत्ता पक्ष के एक विधायक को छोड़कर देर सबेर सभी विधायक सदन में पहुंच गए, लेकिन सदन में ही राजद के तीन विधायकों ने सत्ता पक्ष की ओर जाकर स्थान ग्रहण कर लिया। वैसे, सत्ता पक्ष के कई नेता विरोधी पार्टियों के कई विधायकों के संपर्क में होने का दावा करते रहे थे, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी माना जाता रहा था, लेकिन राजद के तीन विधायकों ने जब सत्ता पक्ष की ओर पहुंचकर विश्वास मत के पक्ष में मतदान किया तब राजद के लिए इसे स्वीकार करना आसान नहीं रहा।

 

राजद के चुनाव चिन्ह लालटेन के सिंबल पर चुनकर विधानसभा पहुंचे तीनों विधायकों प्रह्लाद यादव, नीलम देवी एवं चेतन आनंद ने पलटी मार दी। सबसे गौर करने वाली बात तो यह है कि चेतन आनंद बजट सत्र शुरू होने के करीब आठ से दस घंटे पहले तक राजद के विधायकों के साथ तेजस्वी यादव के आवास पर थे।

 

बताया जा रहा है कि तेजस्वी सहित राजद के अन्य नेताओं के खेला होने के बयान के बाद भाजपा ने सचेत होते हुए जबरदस्त फिल्डिंग सेट कर दी।

 

सूत्रों का कहना है कि भाजपा के दिल्ली से लेकर प्रदेश तक के नेता सजग हो गए। इसके बाद कमजोर कड़ी माने जाने वाले हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी के लिए केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को जिम्मेदारी सौंप दी गई तथा भाजपा के विधायकों को कार्यशाला के बहाने बोधगया पहुंचा दिया गया।

 

सूत्र का दावा है कि उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा विरोधी पार्टी के नाराज विधायकों से संपर्क में आए। चेतन आनंद के पहले से ही मुख्यमंत्री के साथ नजदीकियां बन गई थी। राजद को अपने तीन विधायकों के पलटी मारने तक की उम्मीद नहीं थी, शह-मात के इस खेल में सत्ता पक्ष की इस चाल ने राजद के सभी चालों को धाराशायी कर दिया और स्थिति यहां तक पहुंच गई कि राजद को मतदान के समय वॉक आउट करना पड़ा।

 

माना जा रहा है कि सरकार इन विधायकों की सदस्यता बचाने को लेकर भी हर संभव कोशिश करेगी। जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन कहते भी हैं कि राजद और कांग्रेस के कई विधायक अपनी ही पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं। वे अन्य दलों के नेताओं के संपर्क में हैं। ऐसे में जो ‘खेला करने’ चले थे, उन्हीं के साथ ‘खेला’ हो गया।

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