आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यश की कामना भला किसे नहीं होती। हर किसी के भीतर एक कलाकार समाया हुआ होता है। कब किसके भीतर का कलाकार मुखर हो जाय, कहा नहीं जा सकता । आजकल सोशल मीडिया भले ही कमाई का जरिया न बना हुआ हो, मगर नई नई प्रतिभाओं के कौशल विकास में बड़ी भूमिका निभा रहा है। न कैमरा न लाइट न एक्शन, एंड्रॉयड फोन से ही फिल्म निर्माण जारी है।
कुछ नया कथानक न मिले, तो पुराने कथानक ही सही। सिर्फ कलाकार बदलते हैं , कहानी पुरानी ही रहती है। एक समय था कि जब मायानगरी में प्रवेश करने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ती थी। फोटो स्टूडियो में जाकर तरह तरह के पोज बनाकर फोटो खिंचवाए जाते थे। उन फोटो का कलेक्शन फिल्म निर्माता या निर्देशक को भेजकर फिल्मों में काम करने की जुगत भिड़ाई जाती थी। फिल्म इंस्टीट्यूट में प्रवेश लेकर अभिनय कला में पारंगत होना पड़ता था, उसके उपरांत भी गारंटी नहीं होती थी, कि किसी फिल्म में कोई भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा भी या नहीं। कई बार किसी एक दृश्य में दो सेकिंड की उपस्थिति भी कलाकार के परिवार वालों को मोहल्ले भर में अपने बेटे को प्रमाणित फिल्म कलाकार के रूप में प्रचारित करने का अवसर प्रदान करती थी।
अब युग बदल गया है। जब से सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ा है, तब से जिसे देखो वही अपने आप को निर्माता, निर्देशक, कलाकार के रूप में प्रस्तुत करने लगा है। यह भी जरुरी नहीं कि दृश्यों के फिल्मांकन के लिए फिल्म स्टूडियो की जरूरत पड़े, किसी आर्ट डायरेक्टर की जरूरत पड़े, किसी संगीतकार का सहारा लेना पड़े। न कोई सैट लगाने की जरूरत है, न ही किसी तामझाम की। जहाँ देखो, वहीं आउटडोर शूटिंग कर लो।
यदि आउटडोर शूटिंग न हो, तो घर की रसोई को ही फिल्म स्टूडियों बना लो। घर का ड्राइंग रूम शूटिंग के लिए बेहतर स्थान सिद्ध हो सकता है। कहानी किसी की भी चुरा लीजिये, कॉपीराइट का कोई झंझट ही नहीं। कलाकारों के ऑडिशन का भी कोई सवाल नहीं। न किसी की शक्ल देखनी है और न ही किसी की अभिनय कला से परिचित होना है। सिर्फ तीन से पांच मिनिट की एक वीडियो बना लेनी है, उस वीडियो को सोशल मीडिया पर परोसना है, उसके बाद लाइक गिनते रहना है। अपने एक मित्र सेवा-निवृत्ति की आयु से काफी आगे निकल चुके हैं, समय बिताने के लिए एक दुकान खोल रखी है। कमाई हो या न हो, समय अच्छा व्यतीत हो रहा है।
आजकल उन्हें भी सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने का शौक चर्राया है। मोबाइल का कैमरा ऑन करके अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर मनचाहे विचार व्यक्त करते हैं, अपलोड करते हैं और लाइक और कमेंट गिनने लगते हैं। ऐसे एक नहीं अनेक हैं। लोग बेरोजगारी का आरोप लगाकर सरकार को घेरते हैं और जो सच्चे अर्थों में बेरोजगार हैं, वे सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करके ही अपने आप को स्टार्ट अप का उद्यमी सिद्ध करने में जुटे हैं। क्या गाँव, क्या शहर, जिधर भी देखिए, उधर ही स्टार्ट अप का बोलबाला है।
सोशल मीडिया पर नित्य ही अनगिनत कलाकार अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन कर रहे है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो रिटायर हैं या जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है, वह भी घर बैठे अभिनय के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। हो सकता है कि मुफ्त में अभिनय कौशल दिखाने की मज़बूरी कहीं,चार दिन की चांदनी , फिर अँधेरी रात में परिवर्तित न हो जाए।
सुधाकर आशावादी – विभूति फीचर्स
सुधाकर आशावादी – विभूति फीचर्स