Saturday, November 23, 2024

हरिहर मिलन का पर्व है बैकुंठ चतुर्दशी, विष्णु जी को सौंप देते है शिव कार्यभार !

भारतीय संस्कृति व्रतों, त्यौहारों और पर्वों की संस्कृति है। हर तिथि किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है और इन तिथियों के अनुसार देवी-देवताओं को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए पर्वों का आयोजन किया जाता है। उनकी उपासना करते हुए हर्षोल्लास के साथ त्यौहारों को मनाया जाता है।
कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है और वर्ष 2023 में यह पर्व 25 नवंबर को बड़ी धूमधाम से मनाया गया. मान्यता है कि  इस दिन भगवान विष्णु के साथ महादेव की पूजा का विधान है। बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा मध्य रात्रि यानी निशिथ काल में की जाती है। मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी को श्रीहरि और महादेव की उपासना करने से पापों का नाश होता है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
महाकाल की नगरी अवंतिका (उज्जैन) में बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन का अद्भुत समागम होता है।
साल में केवल एक दिन ऐसा आता है जब बिल्वपत्र की माला पहनने वाले शिव तुलसी की माला पहनते है और हमेशा तुलसी माला पहनने वाले विष्णु बिल्व पत्र की माला धारण करेंगे। यह नजारा दिखता है केवल बैकुंठ चतुर्दशी की रात को उज्जैन के हृदय स्थल छत्री चौक के सामने स्थित श्री द्वारकाधीश बड़े गोपाल मंदिर में, यह अद्भुत मिलन होता है।
मध्य रात्रि में, रात 11 बजे भगवान महाकालेश्वर रजत पालकी में बैठते है ,और राजसी शान के साथ बाबा की सवारी निकलती है, जो गुदरी चौराहा, पटनी बाजार होकर सिंधिया ट्रस्ट के द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पर जाती है।
गोपालजी के सामने महाकाल विराजते है, दोनों मंदिरों के पुजारी परम्परा अनुसार पूजन अभिषेक करते है। संकल्प के माध्यम से शिव यानी महाकाल चार महीने तक पृथ्वी की देखभाल के बाद गोपालजी यानी विष्णु को फिर से जिम्मेदारी देते है। वर्ष में केवल एक बार भगवान महाकाल रजत पालकी में बैठकर रात में हरि यानी विष्णु से मिलने जाते हैं।
इस अद्भुत मिलन को देखने हजारों लोग उमड़ते है।
सवारी के बाद बड़े गोपाल मंदिर में दो घंटे अभिषेक चलता है। हरिहर मिलन के बाद शिव, विष्णु को तुलसी व विष्णु शिव को बिल्वपत्र की माला पहनाकर सृष्टि का भार सौंपते है। रात में पुन: सवारी महाकाल मंदिर लौटती है। मान्यता है देवशयनी एकादशी पर जब विष्णु शयन के लिए क्षीरसागर में जाते हैं तो वे पृथ्वी को संभालने का भार शिव को दे जाते हैं। चातुर्मास के चार माह सृष्टि का संचालन भगवान शिव द्वारा किया जाता है।
दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा का स्नान शिप्रा के रामघाट पर किया जाता है। इसी दिन शिप्रा में दीपदान भी होता है जो देखने लायक  होता है। रात्रि में नगर में निकलने वाली हरिहर मिलन की सवारी में प्रशासन हर बार श्रद्धालुओं की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता है साथ ही कोई जन धन हानि न हो इसके लिए धारा 144 के अंतर्गत हिंगोट व रॉकेट आदि खतरनाक पटाखें छोडऩे पर प्रतिबंध लगाता है।
संदीप सृजन – विभूति फीचर्स

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