खुद के फोटो और वीडियो को लाइक कराने की ललक , सब्जेक्ट को शेयर और सब्सक्राइब कराने की मिन्नत और खुद के अकाउंट को फॉलो करा कमेंट पाने का जुनून, कुल मिलाकर लोगों की जिंदगी में अब यही पांच शब्द हावी हैं। सोशल मीडिया पर भले ही दोस्ती का दायरा बढ़ रहा है और दोस्तों की तादाद भी लाखों में है लेकिन आज के दौर में लोग अपने ही घर-परिवार में अकेलेपन से जूझ रहे हैं। यह सोशल मीडिया का एडिक्शन ही कहा जाएगा कि एक ही कमरे में बैठे लोग एक दूसरे से बात करने की बजाय बहुत दूर बैठे अपने कथित बनावटी दोस्तों के साथ चैट करने में मशगूल है। यही वजह है कि लोग सोशल मीडिया पर बात करने के लिए लाचार हैं तथा यही “यारी” ओर लाचारीअब रिश्तों पर भारी पड़ रही है।
मनुष्य एक विचारशील एवं सामाजिक प्राणी है। यही वजह है कि मनुष्य अपने विचारों को समाज एवं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ साझा करना चाहता है। इस कार्य में मीडिया भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परंपरागत मीडिया के रूप में हम समाचार पत्र, पत्रिकाएं, टीवी एवं रेडियो को ही जानते हैं। लेकिन बीते कुछ सालों में परंपरागत मीडिया के इतर एक नया मीडिया हम सब के “रूबरू” है। वस्तुतः यही सोशल मीडिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के रूप में आज फेसबुक, व्हाट्सएप,इंस्टाग्राम,थ्रेड,स्नैपचैट,मेसेंजर,ट्विटर एवं टेलीग्राम शामिल हैं। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड है,जिसमें इंटरनेट के माध्यम से हम अपनी पहुंच बना सकते हैं। सोशल मीडिया की उपयोगिता की वजह से आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है, जो कि सारे संसार को जोड़े रखता है। यह द्रुत गति से सूचनाओं का प्रभावी तथा “रियल टाइम आदान-प्रदान करने में सहायक है। इसके साथ ही सोशल मीडिया में व्यक्तिगत एवं सामूहिक बातचीत के साथ-साथ फोटो, वीडियो तथा पैसों के लेनदेन की सुविधा भी उपलब्ध है। इसी कारण से आज यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हर आम और खास की जरूरत बन गए हैं। कई साल पहले समाज में ड्रग्स, शराब, निकोटीन ओर जुआ को ही लत माना जाता था। लेकिन आज के दौर में सोशल मीडिया भी एक लत के रूप में समाज के सामने आया है। सोशल मीडिया और इंटरनेट ने इस तरह लोगों को अपने जाल में फँसाया है कि लोग स्क्रॉलिंग करते-करते कई-कई घंटे बिता देते हैं।
कमाल की बात यह है कि उन्हें खुद ही पता नहीं होता कि वह सोशल मीडिया पर अपने कितने घंटे बर्बाद कर चुके हैं जिसके दुष्प्रभाव के चलते लगातार लोगों में नींद की समस्या देखने को मिल रही है। सोशल मीडिया के घातक दुष्परिणाम पर गौर करें तो एक तरफ जहां यूज़र्स के ढ़ेरों दोस्त बन रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह लोगों को दुख और अकेलापन भी दे रहा है। सोशल मीडिया की लत इतनी बढ़ चुकी है कि लोग अपनी पर्सनल लाइफ और उससे संबंधित बातों को सार्वजनिक रूप में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करने में जुटे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़े रहने की इस समूची कवायद का सबसे दुखद पहलू यह है कि इस तथ्य पर सोचने की बजाय लोग आज के दौर में इसे सोशल स्टेटस और अपनी लोकप्रियता मान रहे हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म के अधिकतम उपयोग और लत के चलते जहां आंख और मस्तिष्क समेत अन्य अंगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा हो रहा है, वही सामाजिक एवं पारिवारिक रिश्तों में भी दरार आ रही है। वजह है कि किसी वजह से आपसी रिश्तों में आई खटास का उपचार लोग अब सोशल मीडिया पर गैरों से बात करने में ढूंढ रहे हैं। यही नहीं सोशल मीडिया के जरिए किसी से भी बात या कॉन्टैक्ट करना इतना आसान हो गया है, कि लोग साथ में बैठकर भी एक-दूसरे से बात नहीं करते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से कथित दोस्त बनाकर उनसे ही अपने सुख दुख की गुफ्तगू कर रहे हैं। जिसका सीधा दुष्प्रभाव लोगों के रिश्तों में देखने को मिल रहा है। लोग फैमिली टाइम बिताने के बजाय मोबाइल पर बात करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि सोशल मीडिया का यह ट्रेंड लोगों के जीवन के लिए खासा खतरनाक है और इस पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। इन दिनों सोशल मीडिया लोगों की लाइफ पर इतना हावी हो चुका है कि लोग बिना मोबाइल और बिना सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के पांच मिनट भी नहीं रह पाते हैं जिसका सीधा असर लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमारों की संख्या बढ़ रही है। लोग ऑनलाइन धोखाधड़ी के शिकार हुए हैं। डिप्रेशन की बीमारी भी भी बढ़ रही है। सोशल मीडिया को ज्यादा इस्तेमाल घातक है। कुल मिलाकर आज जरूर इस बात की है की सोशल मीडिया की मायावी दुनिया की वजह हम अपने सामाजिक और वास्तविक दुनिया को पहचाने जिससे रिश्तो में मधुरता और स्थिरता कायम रह सके।
प्रदीप कुमार वर्मा
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।