Monday, May 6, 2024

कहानी: दूसरी बाढ़

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |

बाढ़ का पानी उतरा तो वह सुरक्षित स्थल से निकलकर अपने घर की ओर चल दिया।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता जाता था उसका कलेजा मुंह को आता था। आस-पास के घरों की दीवारों पर उतर चुके पानी के चिन्ह इस बात की गवाही दे रहे थे कि वहां कितना पानी था और उस स्थान पर पानी के उस स्तर से वह अनुमान लगाने का प्रयत्न कर रहा था कि उसके घर में कितना पानी होगा।

पानी का अनुमान लगाने की जरूरत भी नहीं थी। सहायता करने वालों ने उसे और  उसके परिवार वालों को घर की छत के पतरे तोड़कर बाहर निकाला था यानी उस समय तक घर के दरवाजे से ऊपर तक पानी था यह तो उसकी आंखों देखी बात थी। वहां से निकलकर सुरक्षित शरणस्थल पर आने के बाद वहां क्या-क्या घटा और घर पर क्या बीती वह इस बात का केवल अनुमान लगा सकता था। हर कोई वापस आकर अपने-अपने घर की सफाई में लगा हुआ था। लोग बाढ़ के पानी से खराब हुई  चीजें बाहर फैंक रहे थे सड़कों पर खराब हुई चीजों के ढेर लगे हुए थे।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

उन खराब चीजों में क्या नहीं था? बाढ़ पीडि़त लोगों की सारी जिंदगी उन खराब चीजों में समाई हुई थी। बिस्तर, तकिये, गुदडिय़ां, चादरें, गादी भीगकर इतने खराब हो गए थे कि सूखने के बाद भी उपयोग के योग्य नहीं बन सकते थे। अनाज, दालें, मसालों में बाढ़ का गंदा पानी भर गया था और वे खाने के योग्य नहीं रहे थे। घरों के बाहर उनके भी ढेर लगे थे।
कुछ लोगों ने कड़ी मेहनत का एक-एक पैसा जमा करके पूरे साल का अनाज गेहूं, चावल, शक्कर इत्यादि जमा कर रखा था। शहर में पता नहीं किस चीज के दाम कब आसमान पर पहुंच जाएं, इसलिए कुछ लोग जब ये चीजें कुछ सस्ती होती हैं, अपने छोटे-छोटे घरों में साल भर का स्टाक जमा कर लेते हैं।

परंतु बाढ़ के पानी ने उन्हें किसी योग्य नहीं रखा था और उन चीजों का ढेर घरों के बाहर लगा था, जिससे सिर फाड़ देने वाली दुर्गंध उठ रही थी जो पूरे क्षेत्र पर छाई हुई थी। स्कूल जाने वाले बच्चों की पुस्तकें, कापियां, बस्ते बाढ़ के पानी में भीगकर किसी योग्य नहीं रहे थे तो कुछ उनके खराब हो जाने पर रो रहे थे। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था आस पास के दृश्य देखकर उसकी आंखों के सामने अंधकार छा रहा था और उन दृश्यों के प्रकाश में अपने घर की कल्पना करके उसका दिल बैठा जा रहा था।

अंत में वह अपने घर पहुंच गया। बाहर ही उसे वह दृश्य दिखाई दिया  जिसकी कल्पना उसने पहले से कर रखी थी और जिस दृश्य को देखने के लिए उसने स्वयं को तैयार कर रखा था। उसका घर कहां बाकी बचा हुआ था। घर का केवल एक ढांचा बचा हुआ था।
पूरी चाल की स्थिति एक-सी थी। छतें गायब थीं। दरवाजे, खिड़कियां टूटे हुए थे या टूटकर भीतर बाहर गिरे हुए थे। छोटे से आंगन में एक-एक फीट तक कीचड़ था। कीचड़ में चलता टूटे दरवाजे को एक ओर धकेलकर वह अपने 10 &12 के घर में दाखिल हुआ। वहां कुछ भी नहीं बचा था और जो कुछ बचा भी हुआ था तो वह किसी योग्य नहीं था।
कोने का पलंग पानी के जोर से बहकर कमरे के बीचों-बीच आ गया था और उस पलंग पर बिस्तर भीगकर सड़ रहे थे।
एक आशा से चलता हुआ वह उस कोने में आया जहां उसने अपने परिवार के लिए साल भरा का अनाज चावल और गेहूं ले रखा था। दोनों थैले उसी कोने में थे। जैसे ही उन्हें उसने खोला दुर्गंध का एक झोंका उसका दिमाग फाड़ गया। बाढ़ के गंदे पानी में भीगने के बाद वह अनाज किसी योग्य नहीं था। घर में वजनी सामान बचा हुआ था। हल्का और छोटा-छोटा सामान बाढ़ के साथ बहकर पता नहीं कहां चला गया होगा।

छत के ऊपर से पानी गया था, जो छत के पतरों को बहा ले गया था। तो भला उन छोटे-छोटे सामानों की क्या बिसात थी जो वह बाढ़ के पानी के जोर के सामने टिक सकते थे। चाल की दीवारें मजबूत थीं इसलिए घर का ढांचा बचा रहा, वरना अगर दीवारें मजबूत नहीं होतीं तो वे भी ढह जातीं और कुछ भी बच नहीं पाता।
उसने लोहे के पलंग पर भीगी गादी को एक और थोड़ा-सा सरकाया और पलंग पर सिर पकड़कर बैठ गया। वह पागलों की तरह अपने छोटे से ध्वस्त संसार को देख रहा था।

दस-बारह वर्ष में कितने कष्टों से एक-एक चीज उसने जमा की थी और कुछ घंटों की बाढ़ उन सबको बहा ले गई थी।
दस-बारह वर्षों से वह वहां रह रहा था। इन दस-बारह वर्षों में वहां कभी बाढ़ नहीं आई थी। हां, साल में दो-तीन बार पानी जरूर उसके घर में घुस आता था और कभी-कभी उसके और उसके परिवार वालों को कमर तक के पानी में  दिन या रात गुजारनी पड़ती थी। मामला बस यहीं तक सीमित रहता था।
परंतु इस बार किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया होगा कि सामान्यतया कमर तक रहने वाला पानी इस बार छत के ऊपर  से चला जाएगा और छतों तक को बहा ले जाएगा तो भला उसके आगे घर का सामान किस तरह सुरक्षित रहेगा।
उसने बचपन में इस तरह की बाढ़ अपने गांव में देखी थी, जिसमें उसके घर, खेत सब बह जाते थे। वह उसके लिए सामान्य बात थी। जब वह वहां रहने  आया था तो उसे उस बात से संतोष मिला था कि इस शहर में गंगाजी-सी कोई नदी नहीं है। केवल एक खाड़ी है। खाड़ी में ज्वारभाटा के समय पानी का स्तर बढ़ता है तो खाड़ी एक नदी-सी प्रतीत होती है और जब पानी ऊपर जाता है तो कोई नाला-सा लगती है।
खाड़ी किनारे उसने एक छोटा-सा कमरा किराए पर लिया और अपने छोटे से परिवार के साथ जीवन आरंभ किया। अच्छा काम था, अच्छी आमदनी थी। इसलिए खाली कमरा धीरे-धीरे जीवन की आवश्यक चीजों से भरने लगा। समय बीतने के साथ परिवार के सदस्य भी बढऩे लगे। अब वह छह सदस्यों का परिवार था। पति-पत्नी और चार-बच्चे दो लड़के, दो लड़कियां।
घर के समीप खाड़ी पर एक पुल था जो उस क्षेत्र को शहर से जोड़ता था। सब कुछ ठीक रहता था केवल वर्षा के दिनों में थोड़ा-सा कष्ट होता था। वर्षा इतनी होती थी कि वह अपने गांव में ऐसी तूफानी वर्षा की कल्पना भी नहीं कर सकता था। दो-तीन दिन निरंतर होने वाली वर्षा से खाड़ी के जल का स्तर बढ़ जाता था और फिर ज्वार-भाटा की स्थिति में समुद्र का पानी भी खाड़ी में घुस आता था। जिससे उसके घर में पानी घुस आता था और जब तक ज्वार भाटा की स्थिति सामान्य न हो उसके घर में कमर तक पानी भरा रहता था।
वह अपने परिवार वालों के साथ अपने ऊंचे-से पलंग पर आराम से बैठा रहता। फिर धीरे-धीरे पानी उतरने लगता तो वह पत्नी और बच्चे घर की सफाई में लग जाते।
परंतु इस बार स्थिति विपरीत थी। आठ दिन से वर्षा का तार नहीं टूट रहा था। खाड़ी का जलस्तर बढ़ता ही जा रहा था। ज्वार की स्थिति में पानी घर तक पहुंच जाता था। भाटा की स्थिति में भी पानी के स्तर पर कोई अंतर नहीं पड़ता था।
पूरे क्षेत्र में तूफानी वर्षा हो रही थी। समीप की नदी पर बंधा बांध भर गया था और उसका पानी छूट गया था जिसके कारण जलस्तर अचानक बढ़ गया। सामान्य स्थिति में कमर तक रहने वाला पानी कांधे तक पहुंच गया। इस स्थिति से घबराकर उसके परिवार वालों ने सुरक्षा के लिए भीतर बनाए मचान पर शरण ली। जब मचान तक भी पानी पहुंच गया तो वह घबरा उठा। पानी दरवाजे के ऊपर पहुंच गया था। दरवाजे से बाहर निकलने का तो अब सवाल ही नहीं उठता था। यदि इसी तरह पानी बढ़ता रहा तो उस कमरे में ही, उसकी और उसके घर वालों की कब्रें बन जाएंगी। जान बचाना हो तो तुरंत यहां से भाग जाना चाहिए। परंतु बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। एक ही रास्ता था छत के पतरे तोड़कर छत पर पहुंचा जाए तो शायद कोई मदद मिल जाए। सबने मिलकर छत का एक पतरा तोड़कर इतनी बड़ी जगह बना ली कि छत पर पहुंच गए। बाहर विचित्र दृश्य था। हर कोई अपने परिवार के साथ छत पर बैठा सहायता के लिए चीख रहा था। चारों ओर पानी ही पानी था। पूरा क्षेत्र पानी में डूबा था। शहर को मिलाने वाला पुल तो कभी का पानी में डूब चुका था। शहर से संपर्क टूट गया था। वर्षा निरंतर हो रही थी। स्वयंसेवी संस्थाएं और स्वयंसेवक रस्सियों और टायरों की सहायता से पानी में फंसे लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का पुण्यमय कार्य कर रहे थे।
इस तरह कितने लोगों को आप लोग बचा पाएंगे? सहायता के लिए बोट क्यों नहीं मंगा रहे हैं?
वर्षा के कारण सारे टेलीफोन बंद हो चुके हैं । एक-दो जो चालू हैं   उनसे सरकारी अधिकारियों से निरंतर संपर्क बनाकर यहां की स्थिति से अवगत कराकर उनसे सहायता मांगी जा रही है। परंतु दूसरी ओर से कभी रूखा व्यवहार, कभी झूठी तसल्ली और कभी गालियां मिल रही हैं। एम.एल.ए. साहब से संपर्क किया गया तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वे बोट भेज रहे हैं। फिर पता चला कि बचाव किश्तियां जिले से आ रही हैं, निकल चुकी हैं पर रास्ते में ट्रैफिक में फंसी हैं। यदि उन पर भरोसा करके बैठे तो पानी में फंसे हजारों लोगों का जीवन संकट में  पड़ जाएगा। इसलिए अपने तौर पर लोगों के प्राण बचाकर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
उसे और उसके परिवार वालों को टायरों द्वारा सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया। शरणस्थल पर उसकी तरह हजारों लोग और परिवार थे जो बाढ़ के कारण बेघर हो गए थे। लोग भूखे और प्यासे थे। बच्चे भूख और प्यास से बिलख रहे थे।
हमें भूख लगी है। हमें खाने को रोटी दो।
बच्चे रोने-पीटने लगे तो कुछ स्वयं सेवकों को होश आया वह वड़ा-पाव ले आए और उन भूखे बेघरों को बांटने लगे। परंतु वड़ा-पाव से भला क्या किसी की भूख मिट सकती थी। तब यह तय किया गया कि उनके भोजन का प्रबंध किया जाए। कुछ उदार हृदय वालों ने अपने जिम्मे कुछ लोगों का भोजन ले लिया। शेष के लिए चंदा उगाहना चालू हुआ कुछ लोग उदार हृदय से चंदा देते तो कुछ बहाने बना देते।
क्या करें आप तो जानते हैं कितनी मंदी है। उन्हें कभी खाने के लिए मिल जाता कभी आधा पेट मिलता।
स्थानीय नेता और स्वयंसेवक आकर सांत्वना देते आप लोग धीरज रखिए। आपका जो भी नुकसान हुआ है हम सरकार से दिलाने का प्रयत्न करेंगे। उसकी  आंखों में आशा बंधती परंतु यह सोचकर आंखों के सामने अंधेरा छा जाता कि अभी तक तो कोई भी बड़ा नेता, मंत्री या सरकारी अधिकारी उनकी स्थिति देखने नहीं आया है, फिर भला उन्हें सरकारी सहायता किस तरह मिल सकती है?
अंत में जब बाढ़ का पानी उतरा तो वह अपने घर आया और अपनी आंखों से अपने ध्वस्त संसार, जीवनभर की कमाई की बर्बादी देखने लगा।
अचानक एक शोर को सुनकर वह चौका। बाहर आकर देखा तो एक कैमरा टीम थी जो बाढ़ से क्षतिग्रस्त मकानों के चित्र ले रही थी। उनके पीछे तमाशाई थे। वे उसके घर भी आए। ओह सब कुछ बर्बाद हो गया- मुख्य कैमरा मैन ने कहा और वह घर की हर कोने से फिल्म उतारने लगा।
यह आपका घर है? उसने पूछा।
हां-वह बोला।
आप यहां खड़े हो जाइए आपकी भी फिल्म उतारता हूं।-कैमरामेन बोला।
इस तरह नहीं इस तरह, हां चेहरे पर दु:ख के भाव होना चाहिए जिससे पता चले कि सब कुछ बर्बाद हो जाने पर आप कितने दु:खी हैं, ओफ…आपके चेहरे से यह पता ही नहीं चल रहा है कि इस नुकसान से आपको दु:ख हुआ है। जरा चेहरे को दु:खी बनाईये। वह उसे निर्देश देने लगा तो उसे क्रोध आ गया। वह बाढ़ की तबाही की फिल्म उतारने आया है या किसी फिल्म की शूटिंग कर रहा है, जो निर्देशक की तरह निर्देश दे रहा है।
हां, अब आप कहिए मेरा संसार तबाह हो गया। अब तक कोई भी सियासी नेता, सरकारी आफिसर हमारा हाल पूछने नहीं आया, ना हमें कोई मदद आई। हम दो दिन से भूखे हैं। कैमरामैन उससे बोला।
जब हम जीवन और मृत्यु का संघर्ष कर रहे थे, उस समय नेता और सरकारी अधिकारी अपने बंगलों में चैन की नींद सो रहे थे। हमारी सहायता के लिए लाईफ बोट तक नहीं भेजी गई। झूठी तसल्ली दी जाती रही कि मदद भेजी जा रही है। अगर हम उनकी सहायता के भरोसे रहते तो यह जो हमारी जिंदगी भी की कमाई बहकर गई है ना, उसके साथ हम भर बहकर चले जाते-वह फट पड़ा।
वाह क्या अंदाज है-कैमरा मैन उछल पड़ा। यही अंदाज तो चाहिए था। यह पूरी फिल्म टी.वी. पर लगाऊंगा आज रात सात बजे की न्यूज देखना ना भूलना।
साहब यहां जीने के लाले पड़े हैं, जीवन बचाने का संघर्ष चल रहा है तो भला टी.वी. कहां से देख सकते हैं।
टी.वी. कैमरा टीम दूसरे घर के चित्र लेने लगी। उसके पीछे दूसरी भीड़ आ रही थी। देखा सत्तारूढ़ पक्ष का रवैया-एक नेता जो विपक्षी दल का नेता लग रहा था चीख रहा था। आप लोगों ने उन्हें अपने कीमती वोट देकर बहुमत से विजयी किया था, देखा उनका रवैया। आप बर्बाद हो गए हैं, परंतु उनके पास आपकी खबर लेने का समय नहीं है।  मानवता के नाम पर वे आपका हाल पूछने भी नहीं आए आपकी सहायता करना तो दूर। उन्हें भ्रष्टाचार करके अपने लिए रूपये उगाने, लूटने से फुरसत  मिले तो वे आपके पास आएंगे। यह हमारी पार्टी है। जिसका हर सदस्य, हर वर्कर हर बाढ़ पीडि़त के पास पहुंचा है और उसने सहानुभूति के दो बोल बोलकर ही उसका दर्द बांटने की कोशिश की है।
उसके बाद कुछ अखबार वाले और स्वयंसेवी संस्थाओं से संबंधित लोग आए और वे नुकसान की जानकारी मांगने लगे।
वह बताने लगा कि उसका क्या क्या नुकसान हुआ है और बाढ़ में  उसका क्या क्या बह गया है।
तो तुम्हारे घर में टी.वी. और टेप भी था।
क्यों आपको शक है। आजकल तो यह सामान्य सी चीजें हैं।
नहीं नहीं मैंने यूं ही  पूछ लिया- कहते वह कुछ लिखने का प्रयत्न करने लगा।
आप यहां खड़े हो जाइए मैं आपके घर का एक फोटो लेना चाहता हूं। कहते हुए एक फोटोग्राफर ने उसे एक जगह खड़ा होने के लिए कहा।
फिर वह उसे इस तरह अलग-अलग अंदाज में खड़ा करके अलग-अलग कोनों में देखने लगा जैसे वह किसी फोटो स्टूडियों में उसका फोटो खींच रहा हो।
नहीं खिंचवाना है मुझे फोटो-वह चीख उठा। आप मेरे तबाह घर का फोटो ले रहे हैं या मुझे कोई माडल समझकर मेरे फोटो उतारने की  कोशिश कर रहे हैं।
क्या गजब करते हो करमू-एक पड़ोसी बोला। उन्हें फोटो खींचने दो यह फोटो तुम्हारे नुकसान का सबूत होगा। जो तुम्हें सरकारी सहायता दिलाने में  काम आएगा।
जीते जी तो सरकार हमें कोई सहायता नहीं दे सकती। हां अगर मर जाते तो जरूर देती। दुनिया का दस्तूर है। अधमरों को कोई सहायता नहीं देता, कोई नहीं पूछता, हां मरने वालों की लाश पर आंसू बहाकर हमदर्दी जताने सब पहुंच जाते हैं।
उसकी बात सही सिद्ध हो गई। कोई सरकारी आफिसर आया था और वह चीख रहा था।
क्या नुक्सान-नुक्सान लगा रखा है। यह बताओं क्या कोई मरा भी है? खाड़ी के किनारे घर बनाओगे तो यही सब होगा।  खाड़ी से 70 मीटर लगकर हुए किसी भी नुक्सान की कोई जिम्मेदार नहीं है।
उसका तो मन चाहा कि जाकर उस सरकारी कारिन्दें का मुंह नौंच ले।
तो तुम क्या समझते हो  हमें मर जाना चाहिए था। हम जिंदा बच गए इसलिए यहां कोई नुक्सान नहीं हुआ। 70 मीटर तक सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं। अंधे होगें तभी तो दिखाई नहीं दे रहा है। यह क्षेत्र खाड़ी से 150 मीटर से भी अधिक दूर है।
खाड़ी को पारकर उसकी जमीन पर अनुचित मकान बना रहे हो तो पानी के बहाव के लिए जगह कहां से रहेगी। इसके कारण ही यही सब हुआ होगा। वह सरकारी कारिन्दा चीख रहा था। खाड़ी की जमीन पर अनुचित मकान बन रहे हैं। यह तुम्हें मालूम था परंतु तुम उसके विरुद्ध कार्यवाही नहीं करते क्योंकि इसके बदले में पहले ही तुम लोगों की जेबें भर जाती हैं। वह जोर से चीखा।
हां हां खाड़ी पर बनने वाले अनुचित मकानों की बात करते हो जब वे बन रहे होते हैं तो क्यों नहीं तोड़ते, तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिल जाता है इसलिए ना, सब चीख उठे। सरकारी आदमी के चेहरे पर हवाईयां उडऩे लगीं।
हम पर झूठे आरोप लगाते हो, देख लूंगा। एक एक को देखता हूं यहां किस तरह कोई सरकारी मदद आ पाती है। ऐसी रिपोर्ट लिखूंगा कि सरकार यह पूरा क्षेत्र अवैध घोषित करके तोड़ देगी, वह दहाड़ा। तब तक हम तुझे जिंदा ही नहीं रखेंगे-कहती हुए भीड़ उसे मारने के लिए दौड़ी तो वह सिर पर पैर रखकर भागा। थोड़ी देर बाद सत्ताधारी पक्ष के कार्यकर्ता आकर लेक्चर झाडऩे लगे। आप लोगों का जो नुक्सान हुआ है उसका विवरण हम सरकार को देकर आपको सहायता दिलाने का पूरा प्रयत्न करेंगे। ऐसा है तो फिर आपके मुख्यमंत्री हमारे क्षेत्र में क्यों नहीं आए। किसी ने कहा तो वे चुपचाप हो गए। एक टोली जाती तो दूसरी टोली आ जाती थी। झूठी सांत्वना देते, वादे करते, घावों को कुरदते, वास्तविकता तो अलग ही थी। उसे लगा पहली बाढ़ तो  उसके जीवन भर की कमाई, घर संसार बहा ले गई थी। परंतु यह झूठी सहानुभूति, सांत्वना, वादों की दूसरी बाढ़ उसके आत्मसम्मान को बहाकर ले जाएगी और उसके मन मस्तिष्क को आहत कर देगी….।
एम. मुबीन – विनायक फीचर्स

Related Articles

STAY CONNECTED

74,237FansLike
5,309FollowersFollow
47,101SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय