नयी दिल्ली-उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ चर्चित 1993 झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में शीर्ष अदालत के 1998 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करेगी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने बुधवार को यह फैसला लिया।
शीर्ष अदालत ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) मामले (जिसे 1993 झामुमो रिश्वत मामले के रूप में भी जाना जाता है) में अपने 1998 के फैसले को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखने का फैसला किया।
संविधान पीठ ने पुनर्विचार के लिए भेजने का फैसला करते हुए कहा कि विधायिका के सदस्यों को परिणाम के डर के बिना सदन के पटल पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए।
पीठ कहा,“यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और अनुच्छेद 194 (2) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य परिणामों के डर के बिना स्वतंत्रता के माहौल में अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम हैं। जिस तरीके से वे सदन में बोलते हैं या अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग करते हैं, उसका अनुसरण किया जा सकता है।”
पीठ ने कहा,“इस स्तर पर प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि पी वी नरसिम्हा राव के मामले में बहुमत के दृष्टिकोण की शुद्धता पर सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए।”