नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को कोर्ट में तलब किए जाने के मामले में बड़ी राहत दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि सबसे पहले तो अधिकारियों को कोर्ट की कार्यवाही में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये जुड़ने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को अधिकारियों की कोर्ट में पेशी का आदेश जारी करते समय उसकी पर्याप्त वजह बतानी चाहिए कि उस अधिकारी की उपस्थिति क्यों जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि अवमानना कार्यवाही को छोड़कर अधिकारियों को कोर्ट के समक्ष पेश होने का आदेश नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में पेश हुए अधिकारी की ड्रेस पर तब तक कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जब तक अधिकारी अपने दफ्तर के ड्रेस कोड का उल्लंघन नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को समन जारी करने के पहले अग्रिम रूप से नोटिस भेजा जाना चाहिए ताकि अधिकारी तैयारी कर कोर्ट में पेश हो सकें।
पिछले साल 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इसे लेकर दिशा-निर्देश तय करेगा। केंद्र ने सुझाव दिया था कि जरूरी हो तभी अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहना चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वह कोर्ट में पेश होने के दौरान अधिकारी की वेशभूषा पर भी निर्देश जारी कर सकते।
इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालती कार्यवाही में सरकारी अधिकारियों की पेशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक ड्राफ्ट स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) सौंपा था । केंद्र सरकार ने कहा था कि कोर्ट को अधिकारियों को अपवाद स्वरूप ही समन करना चाहिए। ये कोई रूटीन प्रकिया नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने एसओपी कोर्ट के सामने रखते हुए कहा था कि इसका लक्ष्य न्यायपालिका और सरकार संबंधों में सुधार लाना है।
इस एसओपी में कहा गया था कि पेशी के लिए उचित वक्त मिले और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेशी हो तो ज्यादा बेहतर है। एसओपी के मुताबिक कोर्ट पेशी के दौरान सरकारी अधिकारियों की ड्रेस/उनके सामाजिक, शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर टिप्पणी न करे। सरकार के रुख से अलग कोर्ट में दिये बयान के लिए सरकारी वकील पर अवमानना की कार्रवाई न हो। एसओपी में यह भी कहा गया था कि सरकार को अमल के लिए वाजिब वक्त मिले । केंद्र सरकार ने कहा था कि नीतिगत मामलों को सरकार को ही भेजें।