हर किसी को हंसता-मुस्कराता और खिलखिलाता हुआ चेहरा प्रिय होता है क्योंकि आकर्षक मुस्कान ही अच्छे व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान होती है और सभी को क्षण भर में मोहित कर देने वाली इस मुस्कान के सौंदर्य में चार-चांद लगाते हैं खूबसूरत, आकर्षक, चमकते और रोगमुक्त दांत।
दांत केवल सौंदर्यवद्र्धक अथवा आकर्षक मुस्कान के लिए ही नहीं बल्कि अच्छे स्वास्थ्य व स्वच्छ मानसिकता का भी दर्पण होते हैं इसलिए जहां स्वयं इनकी साफ-सफाई व देखभाल आवश्यक है, वहीं समय-समय पर दंत-चिकित्सकों को भी दिखाते रहना चाहिये क्योंकि जरा-सी लापरवाही घातक भी साबित हो सकती है और दांतों में सडऩ, टूट-फूट, पायरिया, विकृति और संक्रमण होने का खतरा भी बना रहता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शरीर की सर्वाधिक बीमारियां पेट में ही पनपती हैं लेकिन वास्तविकता यह भी है कि शरीर में उनका प्रवेश दांतों द्वारा ही होता है क्योंकि दांतों से जो कुछ भी खाया या चबाया जाता है वही पेट में पहुंचता है और दांतों की ठीक से सफाई न होने से वह कीटाणु पेट में तो पहुंचते ही हैं, साथ-साथ दांतों व मसूड़ों को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं। परिणामत: जहां दांतों में कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं वहीं मसूड़े भी सड़ जाते हैं।
दांतों की बनावट:-
आमतौर पर वयस्कों के दांतों की संख्या 32 पायी जाती है लेकिन कभी-कभी यह संख्या कम भी होती है। मनुष्य के दांत चार प्रकार के होते हैं जो अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन को खाने, चबाने, पकडऩे व कुतरने का कार्य करते हैं। दांतों की संरचना देखी जाये तो ज्ञात होता है कि दांतों में बाहर की ओर ‘इनेमल’ नामक पदार्थ की परत चढ़ी होती है तथा बाकी सारा दांत ‘डेंटीन’ का बना होता है जो ‘इनेमल’ की तरह सख्त नहीं बल्कि मुलायम होता है।
यद्यपि दांत का बाहरी हिस्सा मृत होता है तथापि अंदर स्थित ‘पल्प बुहा’ में तंत्रिका व जीवित रक्त कोशिश होती है जो दर्द व स्पर्श आदि समस्त संवेगों का एहसास मस्तिष्क को कराती है। दांतों को निरोग, स्वच्छ व स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है ब्रुश अथवा दातुन का सही ढंग से प्रयोग क्योंकि कई बार गलत व उल्टे-सीधे तरीके से मसूड़े छिल जाते हैं।
यही नहीं बल्कि मसूड़ों से खून भी निकलने लगता है और वे सूज जाते हैं तथा गंदगी व कीटाणुओं को बड़ी ही सहजता से दांतों में स्थान मिल जाता है और बाद में यही कीटाणु पेट में पहुंचकर कई घातक बीमारियों को जन्म दे देते हैं। इसके लिए ब्रश से सफाई के बावजूद पानी से अच्छी तरह कुल्ला अवश्य करना चाहिये क्योंकि कई बार ब्रश से सफाई होने पर भी भोजन के कण दांतों में फंसे रह जाते हैं जो अंदर ही अंदर सडऩे के बाद बदबू फैलाने लगते हैं।
दांतों को साफ करते समय ‘जिभ्भी’ से जीभ भी अवश्य साफ करनी चाहिये। कई बार ब्रश या दातुन उपलब्ध नहीं होती। ऐसे में मंजन या नमक से ऊंगली द्वारा दांतों व मसूड़ों की सफाई करें। इससे दांतों की मालिश तो होगी ही, व्यायाम भी हो जायेगा।
दांतों की देखभाल:-
दांतों के प्रति असावधानी या लापरवाही कभी नहीं बरतनी चाहिये क्योंकि इनमें विकार आने का अर्थ है-शरीर को बीमारियों का घर बनाना। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि दांतों की 1 फीसदी बीमारियां खराब व उल्टे-सीधे भोजन और सफाई न होने से जन्म लेती हैं इसीलिए आजकल दांतों में पायरिया, बैक्टीरिया, विकृति, टूटन अथवा हिलना और जीवाणु संक्रमण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं जिससे दांतों में छिद्र हो जाते हैं और दर्द होने लगता है तथा मवाद आदि भर जाता है, जिससे एक के साथ-साथ कई दांत निकलवाने पड़ जाते हैं। अत: शरीर के अन्य अंगों की भांति दांतों की भी देखभाल करनी चाहिये।
दांतों की बीमारियों से कभी स्वयं छेड़छाड़ न करें क्योंकि ऐसा करने पर वे बढ़ भी सकती हैं। आजकल इम्पलांट, ब्लीचिंग, लेजर और स्माइल डिजाइन द्वारा चिकित्सक दांतों के विकारों को सहज ही दूर करने में सक्षम हैं इसलिए रोग होने पर उन्हें तुरंत दिखायें।
बच्चों की दंत-रक्षा:-
आमतौर पर देखा जाता है कि वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में दंत समस्याएं अधिक पायी जाती हैं क्योंकि बच्चों को च्यूंगम, टॉफी, बबलगम, मिठाई, पेस्ट्री, चाकलेट व आईसक्रीम आदि का बहुत शौक होता है इसलिए अक्सर उनके दांतों में कीड़े लगना, क्षय होना, गढे होना तथा मसूड़ों से बदबू व खून आने की शिकायत रहती है।
दांतों की बचपन ही से देखभाल न होने पर जड़ें कमजोर हो जाती हैं जिससे वे विकृत हो जाते हैं जो युवा होने पर उन्हें शर्मिन्दगी का एहसास कराते हैं अत: बच्चों की दंत रक्षा अत्यंत सावधानी व गंभीरता से करनी चाहिये। इसके लिए माताओं को चाहिये कि वे बच्चों को अप्राकृतिक, उल्टा सीधा, अधिक मीठा व तेज गर्म या ठण्डा न खाने दें तथा दंत चिकित्सक से उनके दांतों की नियमित जांच व निरीक्षण कराती रहें।
– मनु भारद्वाज ‘मनु’