देवबंद(सहारनपुर)। देवबंदी मसलक की मजहबी और सामाजिक 104 साल पुरानी एकमात्र संस्था जमीयत उलमाए हिंद के दोनों धड़ों दारूल उलूम के सदर मुदर्रिस मौलाना अरशद मदनी और उन्हीं के भतीजे पूर्व सांसद मौलाना महमूद मदनी की अगुवाई वाली जमीयत में एकता और विलय के सारे प्रयासों पर पानी फिर गया हैं और अब ये दोनों धड़े स्वंत्रत रूप से अपनी पहचान बनाए रखेंगे और अलग से कार्य करते रहेंगे। ध्यान रहे, आजादी के आंदोलन में 19 नवंबर 1919 को मुस्लिमों की देवबंदी विचारधारा के इस्लामिक विद्वानों ने देश के समक्ष चुनौतियों, स्वतंत्रता आंदोलन, इस्लामिक शिक्षा और उलेमाओं की सुरक्षा और सम्मान आदि विषयों को लेकर जमीयत उलमाए हिंद की स्थापना की थी। इस संस्था के आखिरी अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी जो दारूल उलूम देवबंद की मजलिसे सूरा के सदस्य रहे और तीन बार कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रहे, के वर्ष 2008 में निधन के बाद वर्ष 2008 में जमीयत उलमाए हिंद दो फाड़ हो गई थी।
एक गुट के अध्यक्ष पद पर असद मदनी के छोटे भाई अरशद मदनी काबिज हो गए थे और दूसरे गुट पर असद मदनी के बेटे महमूद मदनी ने कब्जा कर लिया था। हालांकि जमीयत के ये दोनों गुट अपने तरीके से मुसलमानों की सेवा कर रहे हैं। लेकिन हजारों मुसलमानों की यह इच्छा और प्रयास रहे कि चाचा और भतीजे मिलकर फिर से जमीयत को एक कर दें। पिछले एक-दो वर्षों में इस दिशा में बेहद गंभीर प्रयास हुए और सभी को यह लग भी रहा था कि जल्द ही जमीयत उलमाए हिंद फिर से एक इकाई के रूप में अस्तित्व में आ जाएगी।
महमूद मदनी के धड़े के सचिव नियाज अहमद फारूकी ने आज अधिकृत बयान जारी कर यह साफ कर दिया कि मौलाना अरशद मदनी ने एकता प्रस्तावों को एकतरफा ठुकरा दिया हैं और जो ऐतराज मौलाना अरशद मदनी के धड़े की ओर से उठाए जा रहे हैं वे महमूद मदनी गुट के पदाधिकारियों को बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। जबकि महमूद मदनी धड़ा नई एकीकृत जमीयत उलमाए हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी को बनाए जाने पर सहमत है।
महमूद मदनी चाहते हैं जो दोनों धड़ों का मौजूदा संगठनात्मक ढांचा है उसको तोड़कर दोनों तंजीमे पहले आपस में विलय कर लें और उसके बाद जमीयत के दस्तूर के मुताबिक नया संगठनात्मक ढांचा खड़ा किया जाए और जो जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे वो इस संगठन के कार्यसमिति के लोगों की सहमति और परामर्श से फैसले लें और काम करें। नियाज फारूकी के मुताबिक मौलाना अरशद मदनी को यह सब बाते मंजूर नहीं है। इसलिए अब विलय की सारी बातें खत्म हो जाती है। दोनों धड़े पूर्व की तरह अपने अस्तित्व को बनाए रखेंगे और काम करते रहेंगे। इससे देवबंदी मसलक के लोगों को भारी धक्का लगा है।