आज अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस है। कुछ समय पहले परिवार का अर्थ होता था माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, बहन-भाई, बुआ-भतीजी सबका संयुक्त रूप से साथ रहना, परन्तु आज के युग में आधुनिकता के चलते एकल परिवार का चलन अधिक हो गया है, यह नई पीढ़ी एकल परिवार की हानियों और संयुक्त परिवारों के लाभों से बेखबर है। उनके लिए अच्छा मार्गदर्शन यह है कि एकल परिवार में रहकर वे अपनी और अपने बच्चों की कितनी हानि करते हैं, उस पर विचार तो एक बार अवश्य कर लें।
एकाकी परिवार में पति-पत्नी की व्यस्तता बढ़ जाती है, जिसके कारण बच्चों को जो प्यार और ममत्व पिता तथा माता से मिलना चाहिए उसमें कमी आ जाती है। फलस्वरूप बालक का मानसिक विकास वैसा नहीं हो पाता, जो संयुक्त परिवार में सम्भव था।
संयुक्त परिवार में घर के सारे कार्य सभी सदस्य मिल-जुलकर कर लेते हैं। घर की आन्तरिक व्यवस्था में सभी हाथ बंटाते हैं, जिसके कारण पति-पत्नी पर काम का अधिक बोझ नहीं रहता। उन्हें अपने बच्चों के लिए समय मिल जाता है। संयुक्त परिवार में बच्चों को माता-पिता का प्यार तो मिलता ही है। दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई का स्नेह और मार्गदर्शन भी उनके चतुर्मुखी विकास में सहायक सिद्ध होता है। यही कारण है आज एकाकी परिवार के बच्चे प्राय: कुंठाग्रस्त देखे गये हैं और कुंठा में उनके गलत मार्ग अपना लेने की सम्भावनाएं अधिक प्रबल हो जाती है।