Wednesday, November 6, 2024

मक्का की खेती में गोबर खाद का प्रयोग फायदेमंद : सुनील पांडेय

कानपुर। मक्का एक प्रमुख खाद्य फसल है और इसकी खेती के लिए विशेष ध्यान और देखभाल की आवश्यकता होती है। मक्के की खेती के लिए एक उपयुक्त जमीन चुनना महत्वपूर्ण होता है। मक्के को जल जमाव नहीं पसंद होता है, इसलिए जल बहाव या सतही करण की सुविधा वाली जमीन अच्छी मानी जाती है। रेतीली और दोमट मिट्टी मक्के की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है।

यह जानकारी शनिवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विज्ञान कानपुर विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पाण्डेय ने दी। उन्होंने बताया कि किसान भाइयों को मक्का से लाभ कमाने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि अच्छे उत्पादन के लिए क्या करना चाहिए।

जाने मक्के की खेती में क्या है खाद का महत्व

मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि मक्का की जैविक खेती में गोबर खाद का प्रयोग फायदेमंद होता है। बसंत कालीन मक्का की खेती में प्रति एकड़ तक छह टन सड़ी हुई गोबर खाद का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, मक्के में उचित मात्रा में खाद देना भी आवश्यक होता है। बीआई के समय प्रति एकड़ के हिसाब से 50 किलो डीएपी, 40 किलो पोटाश और 50 किलो यूरिया का उपयोग करना उचित माना जाता है।

मक्के की बीज संरक्षण और कीटनाशक दवाओं का कैसे करें प्रयोग

पांडेय ने बताया कि बीज की गुणवत्ता मक्की की अच्छी उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती है। मक्के के बीजों को बोने से पहले उन्हें फंफूदनाशक दवा का उपयोग करना चाहिए। बुआई से पहले, 2 से 2.5 ग्राम बीज की दर पर बीजों के लिए कैप्टन, थीरम या वाइविस्टीन जैसी दवाएं उपयोग करना चाहिए। आप अपने नजदीकी कृषि विभाग से सलाह ले सकते हैं और उनसे ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

मक्के में होने वाले मुख्य रोग और उनका नियंत्रण

मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि मक्के की खेती में कई प्रमुख रोगों का सामना किया जाता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण रोगों और उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी है दी जा रही है। जिससे किसान भाइयों को लाभ पहुंचेगा।

पत्तियों का झुलसा रोग

इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। यह रोग निचले पत्तियों से शुरू होता है और धीरे-धीरे ऊपर की पत्तियों को भी प्रभावित करता है। नियंत्रण के लिए: जिनेब का 0.12 प्रतिशत के घोल को फसलों पर छिड़काव करने से यह रोग नष्ट हो जाता है।

डाउनी मिल्ड्यू

यह रोग बीज बोने के 2 से 3 सप्ताह बाद होता है और पत्तियों में हरी धारिपन और सफेद रुई की तरह के प्रभाव को दिखाता है। नियंत्रण के लिए: डायथेन एम-45 दवा का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से यह रोग नष्ट हो जाता है।

तना सड़न

रोग का प्रकोप: इस रोग में पौधे के जड़ में संक्रमण होता है, जिससे पौधे सड़ने और सूखने लगते हैं। नियंत्रण के लिए: रोग के प्रकोप के समय, 150 ग्राम केप्टान को 100 लीटर पानी में मिलाकर पौधों के जड़ में डालें।

कजरा कीट

रोग का प्रकोप: इस कीट के प्रकोप से मक्के के पौधे पर छेद बन जाते हैं और उनकी विकास बाधित होती है। नियंत्रण के लिए: क्लोरपायरीफास 20% तरल का 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर पौधों के जड़ पर छिड़काव करें।

धड़ छेदक, फॉल आर्मी वर्म, हरदा, तुलासिता रोग और जीवाणु जनित तना सड़न जैसे और रोगों के लिए भी उपयुक्त दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। उपरोक्त रोगों के नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश की जाती है।

मक्के की खेती में रोगों और कीटाणुओं से बचाव के लिए समय-समय पर उपयुक्त नियंत्रण उपाय अपनाए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि आप एक स्वस्थ मक्की की उत्पादन कर सकें और खेती में सफलता प्राप्त करें।

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