मेरठ। आजकल वक्फ विधेयक संशोधन को लेकर हर तरफ चर्चा है। इसके विरोध में जहां अवाजें उठ रही हैंं वहीं दूसरी ओर इसके पक्ष में भी लोग लामबंद हो रहे हैं। वक्फ विधेयक संशोधन को लेकर शहर में कई जगहों पर पक्ष और विपक्ष में कार्यक्रम को लेकर माहौल बनाया जा रहा है। इसी कड़ी में आज हापुड रोड स्थित एक मदरसा में वक्फ विधेयक संशोधन को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
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जिसमें वक्ताओं ने अपने विचार रखे। एएमयू के प्रोफेसर कौसर सिद्दीकी ने इस दौरान कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द हाल ही में धार्मिक आख्यानों ने लोगों का ध्यान भटका दिया है। जिससे प्रस्तावित सुधारों के मूल उद्देश्य- वक्फ संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना- से ध्यान भटक गया है। उन्होंने कहा कि यह पहचानना जरूरी है कि इस्लाम में वक्फ की अवधारणा मूल रूप से संस्थागत शक्ति के बजाय दान और जन कल्याण के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए, संशोधनों को धर्म पर हमला नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से निपटने के लिए एक आवश्यक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके लिए दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है- विधेयक को धार्मिक विवाद के बजाय सामाजिक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए।
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यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वक्फ की अवधारणा का कुरान में कोई सीधा उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, कुरान में दान और अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्रिय संपत्ति को दान करने पर जोर दिया गया है। जैसे कि, “जब तक आप अपनी प्रिय चीजों में से कुछ दान नहीं करेंगे, तब तक आप कभी भी धार्मिकता प्राप्त नहीं कर पाएंगे।” उन्होंने कहा कि इस्लाम वक़्फ़ जैसे किसी औपचारिक ढांचे को निर्दिष्ट किए बिना धर्मार्थ कार्यों को बढ़ावा देता है। इसलिए, प्रस्तावित संशोधनों को केवल धार्मिक उल्लंघन से जोड़ना गुमराह करने वाला और भ्रामक है। वक्फ अधिनियम 1995 का प्राथमिक उद्देश्य धार्मिक, धर्मार्थ और पवित्र उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों की सुरक्षा करना था।
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हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, वक़्फ़ बोर्डों को उनकी अनियमित शक्ति और पारदर्शिता की कमी के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। मौजूदा कानून वक़्फ़ बोर्डों को उचित सत्यापन के बिना किसी भी भूमि को वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने में सक्षम बनाता है, जिससे अनगिनत विवाद और कथित तौर पर सत्ता का दुरुपयोग होता है। इसके अलावा, कुछ बोर्डों ने कानून के शासन को कमजोर करते हुए व्यक्तियों को न्यायिक राहत मांगने से सक्रिय रूप से प्रतिबंधित किया है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, सरकार ने जवाबदेही बढ़ाने पर केंद्रित संशोधन प्रस्तावित किए हैं। इसके अलावा अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे।