अधिक बोलने वाले वाचाल व्यक्ति अथवा अधिक चुप रहने वाले (स्थानीय भाषा में जिन्हें घूना कहा जाता है) तथा झगाडू प्रवृति के लोग समाज में अच्छे नहीं समझे जाते। उन्हें सम्मान की दृष्टि से भी नहीं देखा जाता। आवश्यकतानुसार ठोस और नपी-तुली बातचीत करना मनुष्य के व्यक्तित्व की महत्ता को दर्शाता है।
बिना सोचे उटपटांग अशुद्ध अशिष्ट भाषा जोर-जोर से बोलकर दूसरों की वार्ता को बीच में ही टोक देना, अप्रासांगिक बातें करना, दूसरों की निंदा करना, अपनी ही बात कहते जाना, दूसरों की न सुनना मूर्खता के लक्षण है। आश्चर्य तो यह है कि ऐसे व्यक्ति स्वयं को बहुत बुद्धिमान मानने का भ्रम पाले रहते हैं, जबकि समाज उनके प्रलाप को मूर्खों की बकवास की संज्ञा देकर उसकी उपेक्षा करते हैं।
वार्तालाप करते अपने ही विषय में और अपने ही अनुभवों की भरमार रखना दूसरों को बोलने का अवसर ही न देना पर निंदा करने आदि से मनुष्य के ओछेपन का अनुमान कोई भी साधारण सा व्यक्ति भी सहज ही लगा लेता है। सम्मान की बात तो दूर वे सामान्य व्यवहार के योग्य भी नहीं समझे जाते। उन्नति तथा सफलताएं इस प्रकार के व्यक्तियों को कठिनाई से ही मिल पाती है।