आंख का धर्म है समस्त प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करे प्रत्येक स्त्री को बहन-बेटी और मां की दृष्टि से उनकी आयु के अनुसार देखे। कान का धर्म है महापुरूषों की अमृतवाणी सुनना, दूसरों की अच्छाईयां सुनना, अपने बड़ों के आदेश और नसीहत को ध्यान से सुनना।
मुख का धर्म है सत्य और प्रिय वचन बोलना, अभक्ष्य मांस-मदिरा तम्बाकू का सेवन न करना। हाथों का धर्म है सत्कर्म करना, सेवा धर्म अपनाना। प्रत्येक मनुष्य का धर्म है अपने प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करे।
इसी धर्म की बात भगवान कृष्ण कहते हैं। युग धर्म के रूप में अर्जुन को युद्ध करने की प्रेरणा देते हैं कि जब तक पापी कौरवों को नहीं मारेगा तेरा उद्धार नहीं होगा। अर्जुन कहता है ये मेरे सम्बन्धी हैं, इनसे कैसे लडूं।
कौरव अर्थात सौ बुराईयां, पांडव अर्थात पांच सद्विचार। सौ कौरवों के लिए पांच पांडव काफी है। इसलिए इनका युद्ध होना आवश्यक था, जब तक पांडव इन कौरवों से न लड़ते तो इन सौ बुराईयों का अन्त कैसे होता।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य बोध कराया और इस प्रकार अर्जुन से युग धर्म का निर्वह्न कराया। हम भी इन्द्रियों का जो धर्म है उसके पालन हेतु सदैव तत्पर रहे ताकि समाज में शान्ति बनी रहे।