Monday, December 23, 2024

अनमोल वचन

दुखों की समाप्ति का तात्पर्य हम प्रत्येक प्रकार के दुखों की समाप्ति समझ लेते हैं, परन्तु दुखों का तात्पर्य मानसिक क्लेशों के संदर्भ में ही समझना चाहिए। शारीरिक दुखों की समाप्ति तो असम्भव है।

शारीरिक दुख तो बाल, वृद्ध सभी में होते हैं। इसका सम्बन्ध ज्ञान-अज्ञान से नहीं होता, किन्तु क्लेश तो हमारे अज्ञान के कारण ही हमारी आत्मकेन्द्रित स्वार्थपरक क्रियाओं के कारण आजीवन जुड़ता रहता है।

हममें बचपन से ही असीम लोभ तथा विराट महत्वाकांक्षाओं के बीज बोये गये हैं। क्या कभी सोचा है कि क्या इसी सबके लिए परमेश्वर ने यह श्रेष्ठ योनि प्रदान की है। ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा, क्रूरता, चिंता, प्रतिस्पर्धा, निराशा तथा इनके बीच में कुछ क्षण हंसी-खुशी एवं स्नेह के, यही है हमारे जीवन का इतिहास। यही तो है हम, यही तो है हमारी वास्तविकता।

एक आकांक्षा पूरी हुई कि दूसरी तैयार हो जाती है। जिस पद पर हम पहुंचते हैं कुछ ही समय के पश्चात वही छोटा लगने लगता है। बड़े पद की चाह हो जाती है। हमारी महत्वाकांक्षाएं दिनोंदिन बढ़ती जाती है। यही हमारा सच बन गया है।

सच्चे सुख की चाह यदि है तो इन प्रवृत्तियों से मुक्त होना होगा, इनका दमन करना होगा। अति महत्वाकांक्षी होने से बचना ही होगा। आपके पुरूषार्थ, आपकी क्षमता के अनुरूप जो प्रभु कृपा से मिलता रहे उसी से संतुष्ट रहना सीखिए।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,303FansLike
5,477FollowersFollow
135,704SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय