संसार में जब जीव शरीर धारण करेगा तो उदर भी साथ लायेगा। वह और कुछ करे न करे उदर पूर्ति अवश्य करेगा। शैशव अवस्था में तो उदर की पूर्ति मां-बाप कर देते हैं, किन्तु जैसे-जैसे उसका जीवन बढ़ता है, उसे एक न एक दिन यह उत्तरदायित्व स्वयं वहन करना पड़ता है।
उदर पूर्ति के लिए जीविका महत्वपूर्ण है। कृषक के लिए कृषि, व्यापारी के लिए अपना उद्योग या दुकान, नौकरी करने वाले के लिए अपनी नौकरी वह निजी क्षेत्र में हो अथवा सार्वजनिक क्षेत्र में। राजनीतिज्ञों के लिए राजनीति ही उनकी आजीविका है। इसलिए सभी को जीविका का सम्मान करना चाहिए, परन्तु सेवारत व्यक्ति यदि निष्ठा से अपना कर्तव्य पालन न करे और उसे वेतन के अतिरिक्त रिश्वत के रूप में अधिक धन चाहे। जितने कार्य के लिए उसे वेतन मिलता है, उससे आधा भी काम करना न चाहे तो। इस प्रकार वह अनैतिक कार्य कर क्या अपनी जीविका के साथ खिलवाड नहीं कर रहा है।
राजनीतिज्ञ संकल्प तो जनता की सेवा का करते हैं, किन्तु वह अपने क्षेत्र के विकास हेतु आवंटित धनराशि में से कमीशन की इच्छा करे, क्या वह चोरी नहीं है। कृषक यदि अपनी कृषि में समय से वांछित क्रियाएं न करे तो क्या वह वांछित उपज प्राप्त कर सकता है। व्यापारी यदि अपने माल में मिलावट करे तो क्या उसके उत्पाद को क्रेता लम्बे समय तक लेना पसंद करेंगे? मजदूर यदि मजदूरी के धन के आधे के बराबर भी काम नहीं करेगा और नियोजक के यहां चोरी करेगा तो क्या कोई नियोजक उसे अपने यहां रखना चाहेगा?
क्या ऐसे अनुचित, अनैतिक कार्य जीविका के साथ खिलवाड़ नहीं हैं? साझे के व्यापार में यदि एक साझीदार दूसरे के साथ बेईमानी करे तो क्या ऐसा व्यापार चल पायेगा? इसलिए आजीविका को प्रभु की कृपा मानते हुए उसका सम्मान करें और उसमें निहित अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठा और ईमानदारी से करें।