आज श्रावण शिवरात्रि है। शिव की महिमा अपार है, उन्हें सभी देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। शिव का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाला। वे मृत्युंजय है तो प्रलय के देवता भी। शिव एक अलंकार है। शिव की जटाओं से प्रवाहित गंगा ज्ञान की प्रतीक है, मस्तिष्क के ऊपर चन्द्रमा शान्ति का प्रतीक है। वे गले में लिपटे सर्प काल व्याल से निर्भीक रहने की प्रेरणा देने वाले हैं। उनके निवास कैलाश का अर्थ है जहां पर उत्सव है। आनन्द और उत्सव के स्थान पर शिव निवास करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी माता पार्वती को श्रद्धा और भगवान शिव को विश्वास बताते हैं। शिव का एक नाम आशुतोष है, जिसका अर्थ है अतिशीघ्र जो संतुष्ट हो। वे मात्र बेल पत्र और एक लौटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें भोला भी कहा जाता है। जाबोलो उपनिषद में उल्लेखित है कि रूद्राक्ष शिव के आंसू हैं, जो दीन-दुखियों की पीड़ा के लिए संवेदना प्रदर्शित करते हैं। उनका तृतीय ऊर्ध्व नेत्र दायी और बांयी आंखों की संयुक्त शक्ति का प्रतीक है। उनका डमरू ज्ञान का उद्गाता है। अलंकार कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय उत्पन्न गरल का पान करने वाले शिव नीलकंठ हो गये। जगत की पीड़ा और आंसू लेकर शिव अमृत लौटाते हैं। दूसरों के सुख के लिए दुख उठाने के कारण वे महादेव बन गये।