स्वामी विवेकानन्द ने कहा था ‘यदि आप अपने जीवन में कोई भी शुभ कार्य करते हैं चाहे वह प्रकट हुआ हो अथवा नहीं, किसी ने देखा हो अथवा न देखा हो, आपके द्वारा किये गये शुभ कार्य का फल आपको अवश्यमेव मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि पूरा विश्व अपने हाथों में नंगी तलवारें लेकर खड़ा हो तो वह आपके द्वारा किये गये शुभ कार्यों के फल को काट नहीं सकता। इसके विपरीत यदि कोई गलत कार्य क्रोधवश, भावुकतावश कर दिया जाये तो उसका तत्काल निवारण भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता। श्रेष्ठ कार्यों को करने में शीघ्रता और निकृष्ट कार्यों को करने से पूर्व उसके हानि-लाभ पर लम्बा विचार-विमर्श हमें आने वाली आपदाओं से बचा सकता है। जीवन में क्रोधवश कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए और लिये गये निर्णय पर अमल करने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए, यह हानिकारक हो सकती है। बाद में सदा पछताते रहने से श्रेष्ठ है पहले ही भली-भांति विचार कर लिया जाये। जीवन में एक बात सदैव स्मरणीय है कि यदि किसी के हाथ आपके आगे फैलते हैं तो उस जरूरतमंद की पात्रता के अनुसार मदद अवश्य कर देनी चाहिए। सुख मिले तो प्रभु का धन्यवाद करो कि उसने मेरी योग्यता और पात्रता से अधिक दिया है। दुख आये तब भी धन्यवाद करो कि वह प्रभु दयालु है, जिसने मेरे पूर्व में किये पापों से न्यून मुझे दण्ड स्वरूप यह दुख दिया। प्रभु मुझ पर दया न करता तो पता नहीं मेरी क्या दुर्दशा होती। यह भारतीय संस्कृति है।