विचार करें कि जैसा हम पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं, सुनते हैं, सुनाते हैं, दूसरों को समझाते हैं क्या वैसा ही हमारे जीवन में है या नहीं अर्थात हम स्वयं भी अपने पढ़े, सुने, जाने तथा समझे हुए का पालन करते हैं या नहीं।
यदि हम इन बातों को अपने जीवन में नहीं उतारते, इनका पालन स्वयं नहीं करते तो इस झूठे ज्ञान, भक्ति के स्वांग का लाभ क्या है? क्या यह ज्ञान भक्ति अपने सुख शान्ति के लिए है या दुनिया को दिखाने के लिए है।
यदि दुनिया को दिखाने के लिए करते हैं तो इससे वास्तविक लाभ क्या और यदि अपनी सुख-शान्ति के लिए है तो फिर हम अपने आपसे धोखा क्यों करते हैं। अपनी सुख-शान्ति के साधन में भी लात मारना और अपने आपसे भी छल कपट करना कौनसी बुद्धिमानी है।