Wednesday, November 6, 2024

नई संस्कृति का सृजन कर सकती है नारी

अब वक्त आ गया है कि औरत को एक बार सोचना ही होगा कि क्या वह भी नई संस्कृति को जन्म देने की आधारशिला रख सकती है। एक ऐसी संस्कृति जिसमें युद्ध, हिंसा, आतंकवाद के लिए कोई स्थान न हो वरन हर तरफ प्रेम, सहानुभूति और दया ही दिखाई पड़े। ऐसी संस्कृति जो विजय प्राप्त करने को ही नहीं, बल्कि जीने को आतुर हो। आपसी प्रेम, सद्भाव व जीवन जीने की आस्था तथा निष्ठा पर खड़ी किसी संस्कृति को औरत ही जन्म दे सकती है।
अगर सारी दुनिया की औरतें एक बार यह तय कर लें तो दुनिया की कोई भी ताकत किसी भी पुरुष को युद्ध में नहीं घसीट सकती। औरतें यदि दृढ प्रतिज्ञ हो जाएं कि युद्ध नहीं होगा तो कौन जाएगा युद्ध पर। क्योंकि युद्ध में गया पुरुष कहीं न कहीं औरत से बेटा, भाई, पति या प्रेमी के रूप में जुड़ा रहता है पर औरतें भी अजीब हैं। वे खुद पुरुषों को युद्ध भूमि में भेजती हैं, पूरी रस्मो-रिवाज के साथ कि जाओ और जाकर युद्ध करो तथा विजयश्री प्राप्त करके आओ।
वे यह नहीं सोचतीं कि जो युद्ध पुरुष कर रहा है वह अपने स्वार्थ, अपने अहंकार के लिए कर रहा है। वे इस संबंध में कुछ भी नहीं सोचती हैं तथा बिल्कुल ही अंजान बनी महज पुरुषों के हाथों का खिलौना बनकर रह जाती हैं। वे यह नहीं सोचतीं कि युद्ध किन्हीं देशों के बीच क्यों न हो रहा हो उसमें किसी मां का बेटा, किसी बहन का भाई या किसी पत्नी का सुहाग ही छिनता है। अब उसे उस बारे में निश्चित रूप से सोचना पड़ेगा।
हर औरत में भीतरी शक्ति बहुत होती है किन्तु उसने अपनी ताकत का प्रयोग नहीं किया और कभी भी इस अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई। जो रेखाएं राष्ट्रों की पुरुषों द्वारा खींच दी गईं, उन्हें ही वह स्वाभाविक रुप से स्वीकारती चली आई हैं।
औरतों के मन में प्राचीन समय से ही अपने बेटे, एक बहन अपने भाई या एक पत्नी अपने पति को चाहती है। वह अपने प्रियजनों की भलाई के लिए खुद को भी बलिदान कर देती हैं। इसके विपरीत पुरुष एक धारणा विशेष में ही कैद रहता है उसने प्रेम की सीमाएं बांध दी हैं और उस पर अंकुश लगा दिया है तथा दुनिया को विभिन्न राष्ट्रों में बांटकर उसमें प्रेम, सद्भाव आपसी मेल-मिलाप की जगह आतंक, हिंसा, घृणा आदि के बीज बो दिये है, जिससे आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का शत्रु बना हुआ है।
क्या कभी औरत ने विचार किया है कि पुरुष की प्रवृति शुरू से ही इक_ा करने तथा मालिक बन जाने की रही है,जबकि औरत की प्रवृति देने की रही है, जो भी धन, सम्पति अपने पास है उसे जरूरतमंदों में बांट दो इसमें ही सच्चा सुख सच्चा आनंद देने में है जबकि पुरुष का आनंद छीनने व कब्जा कर लेने में है। कब्जा व छीन लेने की यह प्रवृत्ति ही शायद दुनिया में युद्ध का कारण बनी है।
अगर हमें धरती पर गैर युद्ध वाली दुनिया बनानी है तो हमें इक_ा कर लेना, मांग लेना, छीन लेना, कब्जा कर लेना तथा मालिक बन जाने वाली प्रकृति को त्यागना होगा और इसके स्थान पर जो कुछ है उसे बांट देने की हिम्मत जुटानी होगी। दुनिया में ऐसी क्रांति जो मांगती नहीं, इक_ा नहीं करती तथा छीनती भी नहीं सिर्फ औरतें ही ला सकती हैं।
आज औरत के मन में मानवता की भलाई के लिए जो छिपा है उस वृक्ष को बड़ा करना होगा, उसकी छाया को फैलाना होगा ताकि एक नई क्रांति का जन्म ही एक नई मानवता का जन्म हो। औरत में चेतना की क्रांति सारी मानवता के लिए क्रांति बन सकती है पर कैसे होगी यह लड़ाई इस पर औरतें न तो सोचती-विचारती हैं और न ही उनकी कोई सामूहिक आवाज है।
अगर लड़कियां अपने अन्दर कुछ हिम्मत जुटाएं तो जो काम पुरानी पीढ़ी भी नहीं कर पाई उसे वह दुनिया को करके दिखा सकती हैं।
(बबीता शर्मा-विनायक फीचर्स)

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय