मछली प्राचीन काल से ही मनुष्य के भोजन का मुख्य अंग रही है। मानव आबादी प्रतिवर्ष 100 मिलियन टन से अधिक मछली खा जाती है। संसार का 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन आहार मछली द्वारा प्रदान किया जाता है।मछली भारतीयों के भोजन का भी मुख्य अंग है। मछली देश की खाद्य सुरक्षा के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मत्स्य पालन का क्षेत्र लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करने की क्षमता रखता है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र और 1127 ईस्वी में रचित राजा सोमेश्वर के मानसोल्लासा जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में मत्स्य संस्कृति का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि प्राचीन काल से ही भारत में जलाशयों, तालाबों में मछली पालन का पारंपरिक प्रचलन रहा है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध के समय विष डालकर मछलियों को मार डालने का भी उल्लेख है।
परंतु भारत में यह मत्स्य पालन विशुद्ध पारंपरिक रूप से ही होता था। उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में टैंक में कार्प के नियंत्रित प्रजनन की शुरुआत होने पर उत्पादकता में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इस प्रक्रिया में नदी की स्थिति का अनुकरण किया जाता है। अब तो तटीय आर्द्रभूमि और नमक प्रतिरोधी गहरे पानी वाले धान के खेतों में मानव निर्मित बाधाएं बना कर मछली पालन किया जाने लगा है।
भारत में 8,129 किलोमीटर अर्थात 5,051 मील समुद्री तट रेखाक्षेत्र, 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक का एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और व्यापक मीठे पानी के संसाधन हैं। इनमें 3,827 मछली पकडऩे के गांव और 1,914 पारंपरिक मछली अवतरण केंद्र भी शामिल हैं। भारत के ताजे जल संसाधनों में नदियों और नहरों को मिलाकर 195,210 किलोमीटर (121,300 मील) क्षेत्र हैं। 2.9 मिलियन हेक्टेयर छोटे और बड़े जलाशय, 2.4 मिलियन हेक्टेयर तालाब और झीलें, और लगभग 0.8 मिलियन हेक्टेयर बाढ़ के मैदान आर्द्रभूमि और जल निकाय हैं, जिनमें मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं।
समुद्र तटीय राज्यों के प्रमुख उद्योग के रूप में उभरामत्स्य पालन उद्योग भारत में पंद्रह मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार 1947 से मछली का उत्पादन दस गुना से अधिक हो गया है, और 1990 और 2010 के बीच दोगुना हो गया है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 1.07त्न योगदान देता है।भारत, चीन के बाद संसार का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा जलकृषि देश है।
भारत में नीली क्रांति ने मात्स्यिकी और जलकृषि क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित किया है। इसमें सरकार द्वारा संचालित मात्स्यिकी विकास से संबंधित विभिन्न मत्स्य योजनाओं, राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना आदि कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण योगदान होने की सत्यता से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक स्थायी और संपन्न मत्स्य पालन क्षेत्र सुनिश्चित करने की दिशा में मत्स्य किसानों, जलीय कृषि उद्योग के पेशेवरों और अन्य हितधारकों के अमूल्य योगदान को रेखांकित करने, उन्हें प्रोत्साहित करने और सराहना करने के लिए प्रतिवर्ष 10 जुलाई को राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस मनाया जाता है।
देश के लिए मत्स्य किसानों के व्यापक योगदान और टिकाऊ जलीय कृषि के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पहचानने का यह एक अच्छा अवसर होता है। राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस भारतीय मत्स्य पालन के क्षेत्र में प्रोफेसर डॉ. हीरालाल चौधरी एवं उनके सहयोगी डॉ. के.एच. अलीकुन्ही के योगदान का सम्मान और स्मरण करने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने 10 जुलाई 1957 के दिन हाइपो फिजेशन तकनीक द्वारा भारतीय मेजर का पर्स में प्रेरित प्रजनन और प्रजनन का मार्गदर्शन किया था, जिससे अंतत: जल के भीतर अर्थात इनलैंड जलकृषि में क्रांति आई।
देश के मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास में मत्स्य किसानों, जल कृषि क्षेत्र से जुड़े व्यवसायियों, एक्वाप्रेन्योर और मछुआरों द्वारा किए गए योगदान को मान्यता देने और टिकाऊ तरीकों पर सामूहिक रूप से सोचने और मत्स्य संसाधनों का प्रबंधन करने पर विचार- विमर्श करने के लिए एक इकोसिस्टम बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है। राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस मछली प्रोटीन की बढ़ती मांग को पूरा करने, रोजगार के अवसर पैदा करने और देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान देने में मछली किसानों द्वारा निभाई गई सार्थक भूमिका को स्वीकृति प्रदान करने हेतु एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करते हुए आधुनिक जलीय कृषि तकनीकों को अपनाने, मछली उत्पादकता में सुधार और जलीय संसाधनों के संरक्षण में उनके समर्पण व नवाचार पर प्रकाश डालता है।
भारत सरकार के द्वारा फ्लैगशिप योजनान्तर्गत 10 सितम्बर 2020 को अनुमोदितप्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भी मात्स्यिकी क्षेत्र के महत्व और संभावना को स्वीकार करने का द्योतक है। इस योजना में पांच वर्षों की अवधि में कुल मिलाकर 20,050 करोड़ रुपये के निवेश की परिकल्पना की गई है। इसके लिए केंद्रीय बजट 2023-24 में 6,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ एक उपयोजना की घोषणा की गई है।
इसका प्राथमिक उद्देश्य 2024-25 तक मछली उत्पादन को प्रभावशाली 22 एमएमटी तक बढ़ाना है।इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्य क्षेत्र में लगभग 55 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करना भी है। सतत वृद्धि और विकास पर जोर देकर मत्स्य पालन क्षेत्र को बदलने और लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण योजना साबित हो सकती है।
इसके तहत निजी क्षेत्र की भागीदारी, उद्यमशीलता की वृद्धि, व्यवसाय मॉडल के विकास, व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ावा देने, नवाचारों और नव पहलों के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देते हुए मत्स्य पालन और जलीय कृषि में नवीनतम नवाचारों जैसे स्टार्ट-अप, इनक्यूबेटर आदि को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।विगत कुछ वर्षों मेंवैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी उपायों के कारण मत्स्य पालन क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है।
जिम्मेदार प्रथाओं को अपनाकर और मत्स्य पालन क्षेत्र की क्षमता का दोहन करके निश्चित ही एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है। खाद्य सुरक्षा बढ़ाया जा सकता है। और राष्ट्र के समग्र विकास में योगदान किया जा सकता है। कोशिश करने पर निश्चित ही ऐसे योजनाएं मात्स्यिकी क्षेत्र का सतत एवं जिम्मेदार विकास के द्वारा नीली क्रांति लाने की दृष्टि से देश को आत्मनिर्भर बनाने में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं।भारतीयों की प्रोटीन उपलब्धता में वृद्धि, खाद्य समस्या के समाधान में सहयोग, रोजगार में वृद्धि, भारत के विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि, मछली की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षण देने के लिए हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति की भांति नीली क्रांति को प्रश्रय देना आवश्यक है।
उल्लेखनीय है कि संसार की सभी मछलियों की लगभग आधी प्रजातियाँ महासागरों के खारे पानी में रहती हैं, जिन्हें समुद्री पर्यावरण भी कहा जाता है। संसार की अन्य आधी मछली की प्रजातियाँ अंतर्देशीय मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में रहती हैं। अंतर्देशीय मत्स्य पालन से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार समुद्री और अंतर्देशीय लघु-स्तरीय मत्स्य, मत्स्य पालन में शामिल लोगों में से लगभग 90 प्रतिशत को रोजगार देते हैं।विकासशील देशों में लगभग 60 मिलियन से अधिक लोग अंतर्देशीय मत्स्य पालन में शामिल हैं। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं हैं।
संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट के अनुसार संसार की दो-तिहाई से अधिक मछलियां खत्म हो गई हैं। इसमें एक तिहाई से अधिक गिरावट की स्थिति के मुख्य कारण आवश्यक मछली आवासों का नुकसान, प्रदूषण, और ग्लोबल वार्मिंग हैं। इसलिए पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व और दुनिया में मत्स्य पालन के स्थायी भंडार को सुनिश्चित करने पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 नवम्बर को विश्व मत्स्य दिवस का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह के द्वारा विश्व के देशों में किया जाता है। मछुआरा समुदायों द्वारा पूरे विश्व में यह दिवस मनाया जाता है।
मत्स्य पालक समुदाय सार्वजनिक सभाओं, रैलियों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, सांस्कृतिक नाटकों और संगीत कार्यक्रमों जैसे संवाहक आयोजनों द्वारा दिन मनाते हैं।विश्व मत्स्य दिवस मानव जीवन के लिए जल, जलीय पर्यावरण अर्थात जल के बाह्य व अंदरूनी परिवेश अर्थात बाहर और भीतर के महत्व के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहयोग करता है।
-अशोक प्रवृद्ध