जिसका हृदय उदार है, जन-जन के कल्याण के लिए जो सदैव तत्पर रहता है, जिसका मन पवित्र है, जिसके पास योग्यता है, जो गुण कर्म और स्वभाव से श्रेष्ठ है, उसके लिए यह संसार ही स्वर्ग के तुल्य है अर्थात जिस स्वर्ग की कल्पना हम अन्य किसी लोक में करते हैं वह स्वर्ग ऐसे श्रेष्ठ पुरूषों के लिए यह धरती ही है।
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जो ज्ञानी है वह केवल बाहर के नरक को ही स्वर्ग बनाने का प्रयास नहीं करते, बाहरी-सुख साधनों की प्राप्ति के लिए ही अधिक चिंता नहीं करते, उसमें परिवर्तन करने का भी प्रयास नहीं करते, वे तो भीतर के नरक को ही स्वर्ग बनाने का विचार एवं श्रम करते हैं, क्योंकि उन्हें ज्ञान है कि एक बार भीतर का स्वर्ग बन जाये तो फिर बाहर नरक होता ही नहीं।
बाहरी दुनिया में सभी जगह स्वर्ग है, सभी जगह नरक है। बाहरी दुनिया में तभी स्वर्ग मिलता है, जब भीतर के जगत में स्वर्ग हो। यह असम्भव है कि भीतर के जगत में नरक हो और बाहर के जगत में स्वर्ग मिल जाये।
हां यह निश्चित है कि भीतर के जगत में स्वर्ग हो तो बाहर का नरक भी नरक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि हम जीते तो भीतर से ही है। इसलिए अपने भीतर को सुधारों, उसे पवित्र रखो उसे ही स्वर्ग बनाओ। किसी भी मार्ग से वहां नरक का प्रवेश न होने पाये।