Saturday, November 23, 2024

क्या मराठा आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार को झुकना पड़ा है?

क्या मराठा आरक्षण के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार को झुकना पड़ा है? क्या शिंदे सरकार ने एक्टिविस्ट मनोज जरांगे की मांगें मान ली हैं? इस प्रश्न मानने का कारण यह है ये बातें खुद जरांगे ने कही हैं। मनोज जरांगे ने कहा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अच्छा काम किया है। हमारा विरोध अब खत्म हुआ। हमारा अनुरोध स्वीकार कर लिया गया है। हम सरकार का पत्र स्वीकार करेंगे। मैं शनिवार यानी आज मुख्यमंत्री के हाथ जूस पी कर अपनी सहमति दे रहा हूँ। बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शुक्रवार रात मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे कार्यकर्ता मनोज जरांगे के पास उनकी विभिन्न मांगों के संबंध में एक मसौदा अध्यादेश भेजा था।
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक बयान में कहा गया कि शिंदे ने मांगों पर चर्चा करने के लिए अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और बाद में कार्यकर्ता से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल मसौदा अध्यादेश के साथ भेजा। जरांगे हजारों समर्थकों के साथ पड़ोस के नवी मुंबई में डेरा डाले हुए हैं। प्रतिनिधिमंडल में सामाजिक न्याय विभाग के सचिव सुमंत भांगे, औरंगाबाद मंडलीय आयुक्त मधुकर अरंगल, मुख्यमंत्री के निजी सचिव अमोल शिंदे और अन्य लोग शामिल हैं। जरांगे ने पहले दिन में घोषणा की थी कि अगर सरकार ने आज रात तक उनकी मांगें पूरी नहीं की तो वह शनिवार को मुंबई की ओर कूच शुरू करेंगे और भूख हड़ताल पर बैठेंगे।
अब सरकार जरांगे को मुंबई न जाने के लिए राजी करने की कोशिश कर रही है। राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने संवाददाताओं से कहा कि जरांगे की मांगें मान ली गई हैं और उन्हें सरकारी प्रक्रिया के अनुसार पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अब तक 37 लाख कुनबी प्रमाण पत्र दिये जा चुके हैं और यह संख्या 50 लाख तक जायेगी। इससे पूर्व जरांगे हजारों समर्थकों के साथ शुक्रवार को नवी मुंबई पहुंचे।
जरांगे और मराठा आरक्षण की मांग करने वाले अन्य कार्यकर्ता सुबह लगभग पांच बजे मोटरसाइकिल, कार, जीप, टेम्पो और ट्रक से मुंबई के बाहरी इलाके में कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) पहुंचे। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार, जरांगे अपने समर्थकों के साथ शुक्रवार को आजाद मैदान में भूख हड़ताल शुरू करेंगे। प्रदर्शनकारी मराठा समुदाय के लिए कुनबी (अन्य पिछड़ा वर्ग) दर्जे की मांग कर रहे हैं। मुंबई पुलिस ने उन्हें नोटिस जारी कर शहर में भूख हड़ताल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। इसके बावजूद जरांगे ने बृहस्पतिवार को घोषणा की कि वह 26 जनवरी को दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान पहुंचेंगे। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 149 के तहत जारी एक नोटिस में पुलिस ने कहा था कि मुंबई देश की वित्तीय राजधानी है और विभिन्न वित्तीय संस्थान तथा अन्य वित्तीय केंद्र मुंबई में काम कर रहे हैं।
इसमें कहा गया था कि मुंबई में प्रतिदिन लगभग 60 से 65 लाख नागरिक नौकरी के लिए ट्रेन और परिवहन के अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं। यदि मराठा प्रदर्शनकारी अपने वाहनों से शहर पहुंचते हैं तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और शहर में परिवहन व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। मुंबई पुलिस ने सुझाव दिया कि प्रदर्शनकारी संबंधित प्राधिकारी से अनुमति लेने के बाद नवी मुंबई के खारघर में अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट पार्क ग्राउंड में एकत्र हो सकते हैं। पुलिस ने कहा था कि यदि प्रदर्शन में शामिल लोगों ने नोटिस का पालन नहीं किया तो उन्हें उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना का दोषी माना जायेगा।
जरांगे ने कहा कि मराठा आंदोलन से गणतंत्र दिवस पर होने वाला कोई भी कार्यक्रम बाधित नहीं हुआ। मुंबई में आयोजकों ने घोषणा की थी कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर आजाद मैदान में झंडा फहराया जाएगा। जरांगे पुलिस के नोटिस के बावजूद मुंबई की ओर मार्च करने पर अड़े रहे थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस तथा अजित पवार को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए व्यक्तिगत रूप से चर्चा के लिए आगे आना चाहिए था। छत्रपति संभाजीनगर के संभागीय आयुक्त सहित वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने जरांगे से मुलाकात कर उन्हें मुंबई न जाने के लिए राजी किया था। नवी मुंबई के पुलिस अधिकारियों ने भी जरांगे से मुलाकात की और उनसे अपने मार्च का मार्ग बदलने का अनुरोध किया क्योंकि मार्ग पर एक अस्पताल है।
गौरतलब है कि मराठा समाज के लोगों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की मांग को लेकर जालना में मनोज जरांगे पाटिल की ओर से शुरू अनशन के कारण राज्य में एक बार फिर से आरक्षण की आग जोरदार भड़क गई थी । इससे सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ मंत्रियों को ओबीसी वोट छिटकने का डर सताने लगा था । साथ ही भाजपा के खिलाफ मराठा समाज के भीतर रोष पैदा हो रहे रोष का भी दर रहा । जरांगे पाटिल के मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की मांग से समाज का एक बड़ा तबका अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नाराज हो गया है ।
दरअसल, भाजपा के कुछ मंत्रियों का मानना है कि जरांगे पाटिल के आंदोलन को सरकार के स्तर पर ठीक ढंग से संभाला नहीं जा सका है। इससे जरांगे पाटिल का अनशन लंबा खींचता रहा है। भाजपा के मराठवाड़ा से आने वाले एक मंत्री ने मीडिया से बातचीत में बताते है कि जरांगे पाटील के अनशन के कारण पार्टी को निश्चित रूप से नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि मराठा समाज के बीच यह संदेश जाना चाहिए था कि सरकार मराठा आरक्षण के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है। मंत्री ने कहा कि जालना में लाठीजार्च की घटना के कारण भाजपा के खिलाफ मराठा समाज में नाराजगी फैल गई है।
मराठवाड़ा में वंशावली दस्तावेज के आधार पर मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने के शासनादेश के कारण ओबीसी भी नाराज हो गए हैं। इससे सरकार के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। ओबीसी समाज की नाराजगी आगामी चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है। मंत्री ने कहा कि जरांगे पाटील बार-बार अपनी भूमिका बदल रहे हैं। उन्होंने पहले मराठवाड़ा के मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की मांग की थी। अब वे पूरे राज्य के मराठा समाज के लोगों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की मांग कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि वे अपनी मांग को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं।
वहीं भाजपा के उत्तर महाराष्ट्र के एक मंत्री कहना है कि जालना में आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कराने की कोई जरूरत नहीं थी। लाठीचार्ज के कारण ही आंदोलन को बड़ा रूप मिल गया। इसकी वजह से अब राज्य स्तर पर मराठा समाज के लोगों का आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। दूसरी ओर धनगर आरक्षण के लिए भी आंदोलन शुरू हो गया है। जबकि महाविकास आघाड़ी सरकार के समय 5 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था। उस समय तत्कालीन सरकार के खिलाफ मराठा समाज के लोगों में नाराजगी देखने को मिली थी। राज्य के कई जगहों पर आंदोलन भी हुए थे। लेकिन मराठा आरक्षण आंदोलन इतने बड़े पैमाने पर नहीं भड़का था।
बताया जाता है कि राज्य पिछड़ा आयोग ने 23 जनवरी से आरक्षण के लिए सर्वे शुरू किया है। इसमें यह पता लगाया जाएगा कि मराठा कम्युनिटी के लोग सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कितने पिछड़े हैं। यह सर्वे 31 जनवरी तक चलेगा। राज्य के करीब 4250 कर्मचारी इसमें लगे हैं।
ध्यान देने योग्य बात है कि इससे पहले 25 अक्टूबर 2023 को मनोज जरांगे ने जालना जिले के अंतरवाली सराटी गांव में भूख हड़ताल शुरू की थी। मांग वही, मराठा समुदाय को OBC का दर्जा देकर आरक्षण दिया जाए। 9 दिनों में आंदोलन से जुड़े 29 लोगों ने सुसाइड कर लिया था ।इसके बाद राज्य सरकार के 4 मंत्रियों धनंजय मुंडे, संदीपान भुमरे, अतुल सावे, उदय सामंत ने जरांगे से मुलाकात कर भूख हड़ताल खत्म करने की अपील की। उन्होंने स्थायी मराठा आरक्षण देने का वादा किया। इसके बाद 2 नवंबर 2023 को मनोज जरांगे ने अनशन खत्म कर दिया।
साथ ही सरकार को 2 जनवरी 2024 तक का समय दिया था। कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने 2 नवंबर 2023 को कहा था कि विधानमंडल सत्र 7 दिसंबर से शुरू होगा। इस सत्र में 8 दिसंबर को मराठा आरक्षण पर चर्चा की जाएगी। जरांगे ने कहा था कि महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को स्थायी आरक्षण देने का वादा किया है। उन्होंने इसके लिए कुछ समय मांगा है। हम सबकी दिवाली मीठी बनाने के लिए सरकार को समय देंगे। अगर सरकार तय समय में आरक्षण नहीं देगी तो 2024 में हम फिर मुंबई में आंदोलन करेंगे।
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में 1 नवंबर 2023 को सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने सहमति जताई कि मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना ही चाहिए। इस बैठक में शरद पवार समेत 32 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। बैठक के बाद मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा था- यह निर्णय लिया गया है कि आरक्षण कानून के दायरे में और अन्य समुदाय के साथ अन्याय किए बिना होना चाहिए। आरक्षण के लिए अनशन पर बैठे मनोज जरांगे से अपील है कि वो अनशन खत्म करें। हिंसा ठीक नहीं है।
यह भी जानना जरुरी है कि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मसला क्या है? महाराष्ट्र में एक दशक से मांग हो रही है कि मराठाओं को आरक्षण मिले। 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दे दिया। जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12 प्रतिशत और नौकरियों में 13 प्रतिशत आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बेंच ने इस पर रोक लगा दी। साथ ही कहा कि इस मामले में बड़ी बेंच बनाए जाने की जरूरत है। 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी। इस केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है। तब से ही यह कानून बन गया। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।
सौ बात की एक बात सरकार द्वारा बार–बार आश्वासन देने के बावजूद अपनी मांग पूरी होते न देख मराठा आन्दोलन अब शिंदे सरकार के गले की हड्डी बन गई थी । अब तो समझो कि आन्दोलन समाप्त प्राय है यदि कोई कानूनी अड़चन नहीं आती है तो।
-अशोक भाटिया
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