Friday, December 13, 2024

लोकसभा सदस्यों का आपदा प्रबंधन को अत्याधुनिक बनाने पर जोर

नयी दिल्ली। लोकसभा में सदस्यों ने आपदा तंत्र को अत्याधुनिक और त्वरित बनाते हुए पीड़ितों को तत्काल मदद पहुंचाने पर बल दिया और कहा कि इसमें केंद्र तथा राज्य दोनों को मिलकर काम करने की जरूरत है।

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आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 पर चर्चा को आगे बढाते हुए समाजवादी पार्टी के राम शिरोमणि वर्मा ने कहा कि स्थानीय स्तर पर अत्याधुनिक सुविधा से सुसज्जित आपदा अधिकारियों और कर्मचारियों को तैनात किया जाना चाहिए।राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल एनडीआएफ) के लोग कई बार दूरी के कारण समय पर घटना स्थल पर नहीं पहुंचते जिससे ज्यादा लोगों की जान चली जाती है। चक्रवात तथा अन्य आपदाओं से लोगों को कैसे बचाया जा सकता है इसके लिए आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल आवश्यक है। उनका कहना था कि आपदा के बाद पीड़ितों को पर्याप्त मदद राशि भी नहीं दी जाती है जिससे लोगों को दिक्कत होती है।

 

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द्रविड़ मुनेत्र कषगम(द्रमुक) की कनिमोझी करुणानिधि ने कहा कि पूरी दुनिया में आग, बाढ़, आग लगने तथा चक्रवात की घटनाएं हो रही हैं और भारत में बड़े स्तर पर ये घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन राज्यों का मामला है और राज्यों की सलाह के बिना इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता है। सरकार को इस डाटा की जानकारी होनी चाहिए कि किस गांव, कस्बे और किस जगह पर ज्यादा आपदा आती है ,इसकी जानकारी राज्य प्रशासन को होती है और इस विधेयक को तैयार करते समय इसको इसमें शामिल किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि तमिलनाडु में चक्रवात से पीड़ितों की मदद के लिए 35 हजार करोड़ की मांग की लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। राज्य सरकार को उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा और इस तरह से राज्य सरकारों को लोगों को न्याय देने के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है। उनका कहना था कि आपदा प्रबंधन के लिए अलग मंत्रालय होना चाहिए और विभिन्न विभागों को जोड़ते हुए अलग एक ही विभाग होना चाहिए।

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सुश्री करुणानिधि ने कहा,“ वर्ष 2014 से 2022 तक पांच हजार लोगों की हमारे यहां लू से मारे गये हैं इसलिए लू को भी आपदा प्रबंधन में शामिल किया जाना चाहिए। तमिलनाडु के लिए सरकार ने आपदा प्रबंधन से लोगों को राहत देने के लिए जितनी राशि मांगी उसकी तुलना में बहुत कम राशि दी गई है जो कुछ भी नहीं है।”

तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के केसिनेनी शिवनाथ चिन्नी ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि देश में आपदा प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए सरकार यह विधेयक लाई है। उनका कहना था कि इस विधेयक के जरिए स्थानीय प्रशासन को और अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि आपदा पीड़ितों को स्थानीय स्तर पर ज्यादा मदद दी जा सके।

जनता दल-यू के दिनेश चंद्र यादव ने कहा कि देश में आपदाओं का खतरा ज्यादा बना रहता है। इस विधेयक में आपदा प्रबंधन के लिए जो व्यवस्थाएं स्थानीय स्तर पर की गई हैं उनसे आपदा के समय प्रभावितों को ज्यादा लाभ दिया जा सकता है। बिहार में बाढ़ और सूखे की समस्या हर साल आती है इसके निपटने में अकेले राज्य सरकार सक्षम नहीं है इसलिए केंद्र सरकार को इसमें आगे आना होगा। उनका कहना था कि बिहार ने केंद्र से जो राशि देने की बात की थी वह अभी लंबित है और उसे जारी किया जाना चाहिए।

शिवसेना उद्धव गुट के अनिल यशवंत देसाई ने कहा कि आपदा के लिए यह विधेयक समय पर आया है लेकिन विधेयक को डाटा पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए उन्हें स्थितियों के अनुसार काम करने और इसके लिए वित्तीय अधिकार दिए जाने चाहिए। महाराष्ट्र में तेजी से जलवायु परिवर्तन की जद में है इसलिए राज्य सरकार को केंद्र से आपदा के लिए पर्याप्त मदद दी जानी चाहिए।

लोकजन शक्ति पार्टी(राम विलास) के राजेश वर्मा ने कहा कि राज्य सरकार हर साल बिहार में आपदा पर एक हजार करोड़ रुपए खर्च करती है। उनका कहना था कि इस विधेयक के कारण आपदा से पीड़ितों को राहत देने में प्रशासन ज्यादा प्रभावी तरीके से काम करेगा और पीड़ितों को तत्काल लाभ मिल सकेगा। उनका कहना था कि कुछ अधिकारी आपदा के समय भ्रष्टाचार के अवसर खोजते हैं, ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

कांग्रेस के सप्तागिरि उलाका ने कहा कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार से जितनी राशि मांग करती है उसके अनुसार राशि उपलब्ध नहीं कराई जाती है। जिला स्तर पर कोई निधि का प्रावधान नहीं है इस पर सरकार को अवश्य ध्यान देने की आवश्कता है। उन्होंने कहा कि जब कोई बड़ी आपदा आती है तभी सरकार जागती है यह सही नहीं है।

उन्होंने कहा कि बहुत सारी चुनौतियों के बावजूद ओडिशा राज्य प्राधिकरण ने बेहतर काम करके दिखाया है। राज्यों ने बेहतर काम करके दिखाया है तो उसके हाथ से शक्तियां क्यों छीनी जा रही है। सरकार को राज्यों को सशक्त बनाना चाहिए ताकि संघवाद की भावना बरकरार रहे।

भाजपा के गणेश सिंह ने कहा कि यह विधेयक अत्यंत प्रभावकारी है। उन्होॆंने कहा कि यह विधेयक राज्यों को मजबूत कर रहे हैं जबकि विपक्ष इसके विपरीत बात कर रही है। विपक्ष तुष्टीकरण की राजनीति के अलावा राष्ट्रहित भूल गया है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में सभी विषयों का समावेश किया गया ताकि सभी स्तर पर आपदा से निपटना जा सके। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य करने वाले प्राधिकरण में अधिक पारदर्शित और सुदृढ बनाने के मकसद से इस विधेयक को लाया गया है। राज्य सरकार के द्वारा आपदा मोचन बल बनाने का भी इसमें प्रावधान किया गया है जो अभी तक नहीं था।

वाईएसआर कांग्रेस की जी. तनुजा रानी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि उनके राज्य की कुछ चिंताएं है। उन्होंने राज्य आपदा निधि में राशि देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि राज्य की टूटी सड़कों की मरम्मत और पहाड़ी इलाकों की सड़कों को बनाने के लिए धनराशि देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य आपदा प्राधिकरण को मजबूत बनाने की जरूरत है और उसमें विशेषज्ञों को तैनात करने की जरूरत है। स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण करने की जरूरत है।

 

शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बारणे ने कहा कि सिर्फ इस साल प्राकृतिक आपदाओं में 2803 लोग की जान गई है जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित मध्य प्रदेश राज्य रहा है जहां तीन सौ से अधिक लोगों की जान गई है। इस विधेयक से देश में जब प्राकृतिक आपदा आयेगी तो प्रभावतिों को मदद करने मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक न केवल प्राकृतिक आपदाओं से राहत मिलेगी बल्कि नागरिकों को सुरक्षित किया जा सकेगा।

 

मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के राधा कृष्णन ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से पूरा विश्व नकारात्मक रूप से प्रभावित है इसलिए हमें भी इसका बेहतर प्रबंधन करने की आवश्यकता है। इसके प्रबंधन में स्थानीय प्रबंधन की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वायनाड आपदा में भारी जान माल का नुकसान हुआ है, लेकिन जिस प्रकार से केंद्र सरकार से मदद की उम्मीद थी वह पूरा नहीं हो सका है। केरल के सांसदों ने इस संबंध मेंं केंद्र सरकार को एक पत्र भी लिखा है लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है।

 

राष्ट्रीय जनता दल के सुधाकर सिंह ने कहा कि 2024 जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित वाला साल रहा है, लेकिन यह विधेयक इसकी गंभीरता को समझने में विफल रही है। सरकार इस मामले को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही है सिर्फ खानापूर्ति करने का काम किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन एक भयानक वास्तविकता है जिसके लिए हम सबको मिलकर लड़ने की आवश्यकता है। इस विधेयक में जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को हल करने में विफल रहेगा। इस विधेयक में शक्ति को केंद्रीकृत कर रहा है इससे दुरुपयोग की संभावन बढ सकती है।विधेयक में मुवाजा का प्रावधान को हटा दिया गया है इससे पता चलता है सरकार को प्रभावितों को कितनी चिंता है।

 

समाजवादी पार्टी के छोटे लाल ने कहा कि इस विधेयक में निर्णय लेने का काम केंद्र सरकार के पास होगी है जिससे समय पर काम संभव नहीं हो पायेगा। उन्होंने कहा कि आपदा मित्र और आपदा सखी को शहीद का दर्जा देने की मांग की। आपदा मित्र और आपदा सखी को पांच लाख रुपये का बीमा देने की आवश्यकता है।

तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि इस देश में आपदा को लेकर जिस प्रकार की चिंता होनी चाहिए वह दिखाई नहीं देता। यह हाल कोरोना के समय भी देखने को मिला। कोरोना की महामारी जब आई तब यहां ताली और थाली बजाने का कार्यक्रम किया जा रहा है था जब इसकी दूसरी लहर आई तब बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार आपदा राहत देने में भी भेदभाव करती है। यह पश्चिम बंगाल में देखने को मिला है।

 

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नवसकनी ने कहा कि इस विधेयक से केन्द्र को और शक्तियां मिल रही हैं, इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी और मुश्किल होगी। उन्होंने कहा कि आपदा के समय विपक्षी दलों की जहां-जहां सरकारें हैं, वहां कम राहत राशि मिलती है। हाल ही में आये तूफान फेंगल से तमिलनाडु में हुये नुकसान के संदर्भ में दी गयी राहत राशि बहुत कम है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। राज्य के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह इस विधेयक का विरोध करते हैं।

 

कांग्रेस के कैप्टन विरियातो फर्नांडीस ने कहा कि पिछली आपदाओं से सबक सीखना चाहिये। आपदाओं से किसान, मछुआरा और जनजातियां सर्वाधिक प्रभावित होती हैं, इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये।

 

भाजपा के अरुण गोविल ने कहा कि ऐसी व्यवस्थायें होनी चाहिये, जिससे आपदा के समय आने वाले समस्याओं का स्थायी समाधान निकल सके। विधेयक में ऐसे प्रावधान किये गये हैं, जिससे केन्द्र, राज्य तथा जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन की निगरानी रखी जा सके। मौजूदा समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया जा रहा है, जो बहुत अच्छी बात है।

आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह मीत हेयर ने कहा कि उन्होंने कहा कि कोई ऐसी समिति होनी चाहिये जो राज्यों को नुकसान के समय समान अनुपात में राहत राशि वितरण की सिफारिश कर सके। उन्होंने कहा कि जीवन को खतरा होने वाली बीमारियों को भी आपदा में शामिल की जानी चाहिये।

 

 

निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने कहा कि आपदा के बाद एक ऐसी समिति बने जो सामाजिक लोगों को सदस्य बनाया जाये, जिससे पीड़ितों को न्यायोचित सहायता राशि मिल सके। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय लायी गयी नदी जोड़ो योजना बहुत अच्छी थी, लेकिन उस पर कार्य आगे नहीं बढ़ सका है। उन्होंने कहा कि नदियों की सफाई की जानी चाहिये, जिससे बाढ़ जैसी समस्याओं से राहत मिल सकेगी।

 

भाजपा के अनिल बलूनी ने कहा कि जंगलों में आग लगने से जनहानि के साथ वनों और वन्य जीवों का नुकसान होता है। इस पर विधेयक में प्रावधान किया गया है। राज्यों और केन्द्र सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन के समन्वय पर विचार किया गया है।

कांग्रेस के गोवाल कागदा पडवी ने कहा कि आपदा से जुड़ी समितियों में स्थानीय सांसदों को शामिल करने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। सांसदों को भी कुछ भूमिका दी जानी चाहिये। लोगों की समस्यायें होती हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार सभी शक्तियां अपने पास रखनी चाहती हैं।

 

नेशनल कांफ्रेंस के मियां अल्ताफ अहमद ने कहा कि ऐसे प्रावधान किये जाने चाहिये जिससे आपदा प्रभावितों को तत्काल सहायता मिल सके। कश्मीर में लकड़ी के घरों की बहुलता के कारण आग लगने से लोगों को बहुत नुकसान होता है। सरकार को इसे आपदा मानना चाहिये और पीड़ितों की हरसंभव मदद करनी चाहिये।

 

तेलुगु देशम पार्टी के पी महेश कुमार ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की सरकार ने आंध्र प्रदेश के लिए आवंटित आपदा प्रबंधन की धनराशि का दुरुपयोग किया है। उन्होंने एलुरु लोकसभा क्षेत्र में मानसून में तीन नदियों में बाढ़ के कारण हजारों लोगों की परेशानी का उल्लेख करते हुए बाढ़ की समस्या का समाधान करने की मांग की।

 

राष्ट्रीय लोकदल के चंदन चौहान ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि वर्तमान में आपदाओं का सामना करने के लिए बचाव एवं राहत के उपाय किये जाते हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि पूर्वानुमान लगा कर आपदा को रोकने के उपाय किये जाएं। उन्होंने किसानों एवं खाद्य श्रृंखला की आपदा से प्रभावी रक्षा करने के उपाय करने की भी मांग की।

 

 

 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी उदार) के सुदामा प्रसाद ने कहा कि अच्छा होता कि इस विधेयक में आपदाओं को कम करने के उपाय किये जाते। हरे भरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, अनियोजित उत्खनन और पहाड़ों को तोड़ने पर रोक लगाने के प्रावधान किये जाने चाहिए। उन्होंने ग्रेट निकोबार में जनजातीयों को विस्थापित करके वहां जंगलों की कटाई करने की योजना का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण जोशीमठ की आपदा आयी थी और सिल्क्यारा सुरंग दुर्घटना हुई थी। उन्होंने बिहार में गंगा एवं सोन नदी की बाढ़ में डूब गये मकानों के निवासियों के पुनर्वास नहीं होने और मुआवजा नहीं मिलने का आरोप लगाया और कहा कि यह विधेयक हवा में तलवारबाजी करने के बराबर है।

 

 

समाजवादी पार्टी के वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन से लोगों की जानें जा रहीं हैं। उन्होंने आपदा प्रबंधन समिति में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियाें को जगह देने की मांग की। भाजपा के शंकर लालवानी ने कहा कि महानगरों में ऊंची इमारतों में आग लगने की घटनाओं से निपटने के लिए उपाय करने की मांग की। राष्ट्रीय लाेकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल ने कहा कि आपदाओं से निपटने के लिए जनप्रतिनिधियों को वित्तीय शक्तियां देने की जरूरत है। सांसद कोष में अधिक धनराशि मिलने से तात्कालिक मदद उपलब्ध कराने में आसानी होगी।

 

 

कांग्रेस के श्याम बर्वे ने महाराष्ट्र में आपदा पीड़ितों को मुआवजा राशि वितरित नहीं किये जाने की बात कही। जबकि रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन ने विधेयक में 22 संशोधन प्रस्ताव देने की घोषणा की। उन्होंने विधेयक के उद्देश्य की सराहना की लेकिन शहरी आपदा प्रबंधन के लिए अलग प्राधिकार बनाने का विरोध किया।

 

आजाद समाज पार्टी कांशीराम के एडवोकेट चंद्रशेखर ने कहा कि आपदा प्रबंधन में इस तरह से सुधार होने चाहिए कि आपदा ग्रस्त क्षेत्र में तत्काल पहुंचाया जा सके। उन्होंने वायु प्रदूषण को भी आपदा बताया और कहा कि इसे भी इसमें शामिल करके इस दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए। निर्दलीय उमेशभाई बाबूभाई पटेल ने कहा कि आपदा के कारण जो नुकसान लोगों को होता है उसके लिए दिये जाने वाले मुआवजे में देरी होती है जबकि पीड़ितों को तत्काल मदद पहुंचाई जानी चाहिए। उन्होंने दमन तथा दीयू में एक एक निगरानी सेंटर स्थापित करने की मांग की और कहा कि गुजरात से जो केमिकल का पानी उनके संसदीय क्षेत्र दमन दीव में जाता है उसे रोका जाना चाहिए।

 

 

सिक्किम क्रांतिकारी दल मोर्चा के इंद्र हांग सुब्बा ने कहा कि आपदा प्रबंधन में क्षेत्र में आने वाली दिक्कतों के समय लोगों को राहत देने के दौरान वहां के जन प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपदा के डाटाबेस के लिए स्वायत्त संस्थानों को भी शामिल करना चाहिए ताकि परस्पर डाटा का मिलान कर सही तथ्य सामने आए और उनका विश्लेषण किया जा सके। निर्दलीय विशाल दादा प्रकाश बाबू ने कहा कि बाढ़ में पशुधन तथा अन्य नुकसान के लिए आपदा राहत के तहत पीड़ितों की मदद की जानी चाहिए। उन्होंने विधेयक को पीड़ितोपयोगी बनाने की मांग की और कहा कि इसमें स्थानीय प्रशासन को पूरी आजादी से लोगों की मदद का मौका दिया जाना चाहिए।

 

 

कांग्रेस के डीन कुरियाकोस ने कहा कि विधेयक में शहरी प्राधिकरण की बात कही गई है जबकि आपदा में पीड़ितों के लिए ग्रामीण प्राधिकरण की बात ज्यादा प्रभावी तरीके से होनी चाहिए। सपा के आनंद भदौरिया ने कहा कि आपदा प्रबंधन विधेयक में विशेषज्ञों के साथ ही जन प्रतिनिधियों के सुझाव लेने की जरूरत थी।

 

भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि इस विधेयक में शहर तथा गांवों के लिए राहत के पर्याप्त प्रावधान किए गये हैं। इसमें केंद्रीय प्राधिकरण की व्यवस्था की गई है और इसमें शहरों के विकास के साथ ही गांवों को भी महत्व दिया गया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में आपदा प्रबंधन संस्थान खोलने की मांग की।

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