मनुष्य यथास्थिति को बनाये रखना चाहता है, अमर रहना चाहता है। परिवर्तन से घबराता है, किन्तु सत्य यह है कि शून्य से शिखर और जन्म से मृत्यु परिवर्तन अबाध गति से चलता रहता है। इससे समय भी अछूता नहीं।
समय का प्रत्येक क्षण अपनी गति से निरन्तर गुजरता सा जा रहा है अर्थात इस दुनिया में सबसे स्थायी शै है परिवर्तन परन्तु हर व्यक्ति अपने जीवन के परिवर्तनों से घबराता है। वह जीवन को एक ढर्रे पर जीना चाहता है, कभी बूढ़ा होना नहीं चाहता, परिवर्तन की करवटों से सुरक्षित रहने का हर सम्भव प्रयास करता है और जीवन में कुछ अप्रत्याशित और अनियोजित घट जाये तो स्वयं को अभिशप्त महसूस करता है।
गढ्डे के पानी में कोई बहाव नहीं होता, स्थिर रहता है और कुछ समय पश्चात उससे दुर्गंध आनी शुरू हो जाती है। जीवन के परिवर्तन का विरोध करने वाले लोगों का जीवन इससे जरा भी अलग नहीं। निरन्तर बहते रहने के कारण नदी का जल स्वच्छ रहता है।
परिवर्तनों से घबराने वाले आराम पसन्द और सुरक्षित जीवन जीना चाहते हैं। उनके संसार का क्षितिज काफी छोटा होता है। वक्त के साथ बदलने वाला और हवा के रूख के साथ स्वयं को समायोजित करके चलने वाला इंसान ही अपने सपनों को साकार होते देख सकता है।
जीवन चलने का नाम है, स्थिर होना ही अवसान है, मृत्यु है, जीवन है तो परिवर्तन है और यही संसार का नियम है।