नई दिल्ली। महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों के साथ कई राज्यों में हो रहे उपचुनावों में राजनीतिक विमर्श का रुख विकास से हटकर सांप्रदायिक और संवेदनशील मुद्दों की ओर चला गया है। वक्फ बोर्ड, घुसपैठ, हिंदू-मुस्लिम, और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) जैसे विषय चुनाव प्रचार के मुख्य केंद्र बन गए हैं।
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योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उन्होंने “बंटोगे तो कटोगे” का नारा दिया, जो समाज में विभाजन को रोकने और एकता पर जोर देने का सन्देश देने की कोशिश के रूप में प्रस्तुत किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे” का नारा देकर एकता को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ने की अपील की।
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गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वक्फ बोर्ड पर मंदिरों और ग्रामीण जमीनों पर कब्जे का आरोप लगाया। वक्फ अधिनियम में संशोधन की जरूरत बताई। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को घुसपैठियों को रोकने के लिए आवश्यक करार दिया और आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने का आश्वासन दिया। राजनीतिक दलों ने विकास जैसे मुद्दों को छोड़कर भावनात्मक और सांप्रदायिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। हर पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रही है। वक्फ बोर्ड और यूसीसी जैसे मुद्दे चुनावी रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
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शाह ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड ने कर्नाटक में ग्रामीणों, किसानों, और मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जा किया है।उन्होंने वक्फ अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि भाजपा इस पर बिल लाएगी और इसे पास कराएगी। उन्होंने हेमंत सोरेन और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये नेता बदलाव का विरोध कर रहे हैं।शाह ने झामुमो-नीत गठबंधन पर आरोप लगाया कि वे घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा के सत्ता में आने पर अवैध प्रवासियों को बांग्लादेश वापस भेजने की बात कही। शाह ने कहा कि झारखंड में यूसीसी का क्रियान्वयन कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने आदिवासी समुदाय को आश्वासन दिया कि उन्हें यूसीसी के दायरे से बाहर रखा जाएगा, जिससे उनकी परंपराओं और अधिकारों की रक्षा हो सके। भाजपा ने इन मुद्दों को हिंदू मतदाताओं को लामबंद करने और विपक्ष पर कटाक्ष करने के लिए उठाया है। वक्फ अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव सत्तारूढ़ सरकार के लिए एक प्रमुख चुनावी वादा है।समान नागरिक संहिता को राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है। आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने की बात कहकर भाजपा ने आदिवासी समुदाय के बीच संभावित असंतोष को रोकने का प्रयास किया है।
अमित शाह के ये बयान भाजपा की राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक राजनीति को आगे बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा हैं। वक्फ बोर्ड और घुसपैठियों का मुद्दा उठाकर उन्होंने विपक्षी दलों को कठघरे में खड़ा किया। यूसीसी के जरिए आदिवासी समुदाय और मुख्यधारा के मतदाताओं दोनों को संदेश देने का प्रयास किया गया है। हालांकि, इन मुद्दों का असर मतदाताओं पर कितना पड़ेगा, यह चुनावी नतीजों के बाद ही स्पष्ट होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि भाजपा विकास के बजाय भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों पर चुनावी मैदान में उतरी है।
शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को जाति के बजाय चार श्रेणियों में बांटा है। गरीब, किसान,युवा, महिलाएं यह भाजपा की “सबका साथ, सबका विकास” नीति को रेखांकित करने की कोशिश है।
शाह ने वादा किया कि भाजपा सत्ता में आने पर झारखंड को देश का सबसे समृद्ध राज्य बनाएगी। झामुमो और कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि “इन नेताओं द्वारा लूटा गया हर पैसा सरकारी खजाने में वापस लाया जाएगा।” शाह ने ओबीसी समुदाय को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने की कोशिश की। कांग्रेस को ओबीसी विरोधी बताकर इस समुदाय के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया। झामुमो-कांग्रेस पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगाकर भाजपा ने अपने आप को विकास-आधारित राजनीति के पक्षधर के रूप में प्रस्तुत किया। झारखंड में भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बनाकर भाजपा ने झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर हमला किया। ओबीसी और आदिवासी मतदाताओं को साधने का प्रयास स्पष्ट है। भाजपा ने अपने चुनावी वादों और भ्रष्टाचार विरोधी रुख को केंद्र में रखा है।