नई दिल्ली। एक शोध में यह बात सामने आई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड का उपयोग करके प्रारंभिक चरण के मेटाबॉलिक-एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर रोग (एमएएसएलडी) का सटीक तरीके से पता लगा सकता है। मेटाबॉलिक-एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर रोग (एमएएसएलडी) दुनिया की सबसे आम क्रॉनिक लिवर की बीमारी है। यह रोग लिवर में वसा के ठीक से नहीं जमने से होता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिलती है।
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इस बीमारी के मामले पिछले कुछ सालों में तेजी से सामने आ रहे हैं। यह अक्सर मोटापे, टाइप 2 डायबिटीज और असामान्य कोलेस्ट्रॉल के स्तर जैसी अन्य सामान्य बीमारियों से भी जुड़ा होता है। यह स्थिति तेजी से लीवर रोग के अधिक गंभीर रूपों में विकसित हो सकती है, इसलिए शुरू में ही इसका पता लगाना जरूरी है। हालांकि, अक्सर इसका पता अंतिम चरण तक नहीं चल पाता क्योंकि प्रारंभिक चरण में इस बीमारी के कोई लक्षण सामने नहीं आते, जिससे इसका पता लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
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अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय की प्रमुख लेखिका एरियाना स्टुअर्ट ने कहा, ”बड़ी संख्या में मरीजों को मेटाबॉलिक-एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर रोग (एमएएसएलडी) का समय रहते पता नहीं चल पाता। यह बेहद ही चिंताजनक है क्योंकि प्रारंभिक निदान में देरी से लिवर रोग को खतरा बना रहता है। टीम ने अमेरिका में तीन साइटों से इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड में इमेजिंग निष्कर्षों का विश्लेषण करने के लिए एआई एल्गोरिदम का उपयोग किया। इसमें 834 मरीजों में वसा लिवर रोग के लक्षण पाए गए, लेकिन रिकॉर्ड में केवल 137 मरीजों का ही डेटा शामिल था। इसमें से 83 प्रतिशत लोगों में बीमारी का पता नहीं चल पाया, जबकि सभी में इस बीमारी के लक्षण थे।
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शोध को लिवर मीटिंग में प्रस्तुत किया जाएगा, जिसे अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लिवर डिजीज द्वारा आयोजित किया जाएगा। पिछले अध्ययनों से पता चला है कि एआई का उपयोग लिवर फाइब्रोसिस का पता लगाने और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) का निदान करने के लिए किया जा सकता है। यह फोकल लिवर घावों को अलग करने, हेपैटोसेलुलर कैंसर का निदान करने, क्रोनिक लिवर रोग (सीएलडी) का पूर्वानुमान लगाने और प्रत्यारोपण विज्ञान को सुविधाजनक बनाने में भी मदद कर सकता है।