पागल कुत्ते, बिल्ली या बंदर आदि के काटने से रैबीज नामक संक्रामक रोग फैलता है। मनुष्य में इस भयावह रोग के फैलने से मृत्युदायी परिणाम लक्षित होता है। इस बीमारी को असाध्य एवं जानलेवा माना जाता है परन्तु समय रहते आवश्यक उचित उपायों को किये जाने से इसकी रोकथाम की जा सकती है।
रैबीज को विषाणुजन्य एवं संक्रामक रोग माना जाता है। रैबीज के विषाणु मनुष्य के अंदर पहुंचते ही सुस्ती, शरीर में दर्द, हल्का बुखार आदि आने लगता है। उसके बाद शरीर में धीरे-धीरे कम्पन होने लगता है तथा दौरे आने लगते हैं और श्वास की गति तेज होने लगती है।
गले में अकडऩ होने लगती है और कुछ भी निगलने के प्रयास में निगलने वाली पेशियों में संकुचन उत्पन्न होने लगता है। धीरे-धीरे इन संकुचनों में दीर्घता आने लगती है और इस अवस्था में रोगी अचेत हो जाता हैं। यह अचेतावस्था 20 से 40 मिनट तक की होती है।
रैबीज के रोगी की एक अवस्था ऐसी आती है जब वह किसी भी तरल पदार्थ को देखते ही उद्वेष्टगत भाव में आ जाता है। इसी कारण इस बीमारी को हाइड्रोफोबिया के नाम से भी जाना जाता है। रैबीज के कीटाणु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र अर्थात् मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु में सूजन उत्पन्न कर उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं।
कुत्ते के काटने या संसर्ग के बाद लगभग 30 से 90 दिनों के अंतराल में इसके विषाणु परिपक्व होकर प्रभाव दिखाने लगते हैं। कुछ चिकित्सक इसके इनक्यूबेशन पीरियड को 4 दिनों से लेकर कई वर्ष तक का मानते हैं अर्थात् मनुष्य के शरीर में रैबीज के विषाणु पहुंचने के बाद इसके लक्षण चार दिनों से लेकर कई वर्षों के बीच कभी भी उभर कर आ सकते हैं।
रैबीज पर शोध कर रहे डा. स्मिथ का मानना है कि यह बीमारी मात्र पागल कुत्तों या अन्य जानवरों के काटने से ही नहीं होती बल्कि इसका प्रकोप पालतू कुत्तों के अधिक संसर्ग में रहने पर भी हो जाया करता है। पालतू कुत्ते अधिकतर घर के अन्दर के सभी स्थानों पर स्वच्छन्द होकर घूमा करते हैं। खाद्य पदार्थों के समीप, बिस्तर के पास या अन्य स्थानों पर इनके छींकने, भौंकने, पसीना निकलने, रोएं टूटने आदि से भी हाइड्रोफोबिया का संक्रमण हो जाता है।
रैबीज से ग्रसित रोगी किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ एवं पानी को निगल पाने में असमर्थ हो जाता है। एक-एक कर शरीर की अन्य मांसपेशियां और अन्त में श्वसन की मांसपेशियां भी निष्क्रिय होने लगती हैं जिसके फलस्वरूप रोगी की मृत्यु पूर्ण चेतनावस्था में ही हो जाया करती है। कुत्ते पालने का शौक दिनोंदिन चरम पर पहुंचता जा रहे है। खास कर उच्च (सम्पन्न) वर्गों में तो यह हरी दूब की तरह फैलता जा रहा है।
कुत्ता पालना उतना खतरनाक नहीं है जितना उससे फैलने वाला रैबीज। कुत्ते को नियमित रूप से साल में एक बार रैबीज का टीका लगवा देना चाहिए। खासकर युवतियों को कुत्तों के संसर्ग से अलग रहना चाहिए अन्यथा उन्हें हाइड्रोफोबिया का शिकार होना पड़ सकता है।
– परमानंद परम