प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा के लिए सेवानिवृत्त जज ससुर के खिलाफ डॉक्टर प्रोफेसर दामाद द्वारा कायम लूट, धमकी व मारपीट के आरोप में अपर सत्र न्यायाधीश विशेष जज डकैती प्रभावित एरिया बांदा के समक्ष विचाराधीन केस कार्यवाही को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने कानपुर नगर के निवासी सेवानिवृत्त जज हीरालाल व उनके पुत्र की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
मालूम हो कि विपक्षी प्रोफेसर डॉक्टर राजकीय अस्पताल बांदा के साथ 2005 में याची की लड़की की शादी हुई थी। जिससे एक बेटा हर्षित पैदा हुआ। याची की पुत्री की मौत के बाद हर्षित याची नाना के पास रह रहा है। विपक्षी ने कानपुर नगर में अस्थाई अभिरक्षा की अर्जी दी थी जो कोर्ट ने खारिज कर दी थी।
इसके बाद विपक्षी ने 9 मार्च 22 की शाम 3.40 बजे याचीगण व तीन चार लोगों के हथियारबंद होकर विपक्षी के घर आकर मारपीट लूट व धमकाने का आरोप लगाते हुए ढाई माह बाद बांदा की अदालत में धारा 156(3) के तहत अर्जी दी। जिस पर बयान दर्ज करने के बाद कोर्ट ने याचीगण को ट्रायल के लिए सम्मन जारी किया। केस कार्यवाही सहित सम्मन आदेश को मनगढ़ंत करार देते हुए रद्द करने की मांग में यह याचिका दायर की गई थी।
याची अधिवक्ता का कहना था कि याची 87 साल का सीनियर सिटीजन है। घटना के समय 78 साल आयु थी। वह ल्यूकोडर्मा से पीड़ित हैं। कानपुर से बांदा जाकर ऐसी वारदात करना उसके लिए सम्भव नहीं है। फर्जी मेडिकल रिपोर्ट तैयार कर, तथ्य छिपाकर फर्जी मनगढ़ंत केस कायम किया गया है। जिसे गवाह बताया उसका परीक्षण नहीं किया। दूसरे गवाह का बयान दर्ज कराया है। घटना के एक माह बाद एसपी को शिकायत की गई। इसलिए याची के खिलाफ कोई आपराधिक केस नहीं बनता।
सरकारी वकील ने कहा फ्रैक्चर सहित छह चोटें हैं। एक लाख की सोने की जंजीर व 50 हजार नकद लूटने का आरोप है। इसलिए केस बनता है। कोर्ट ने कहा डॉक्टर होकर तीन दिन बाद मेडिकल कराया है। मौके पर तत्काल पुलिस नहीं बुलाया। एक माह बाद एसपी हमीरपुर को पत्र लिखा। ढाई माह बाद केस कायम किया गया है, जो सुप्रीम कोर्ट के भजनलाल केस के मानक पर खरा नहीं उतरता। कोर्ट ने कार्यवाही को व्यक्तिगत झगड़े, खुन्नस व दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया है।