नयी दिल्ली। संसद में केरल के तट के निकट समुद्र में उत्खनन किये जाने के कारण पर्यावरण एवं मत्स्य संपदा एवं लाखों मछुआरों के रोज़गार पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का मामला उठाया गया और केन्द्र सरकार ने इस कदम को तुरंत रोकने की मांग की गयी।
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रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के एन के प्रेमचंद्रन ने लोकसभा में शून्यकाल में इस मामले को उठाया और कहा कि सरकार ने अरब सागर में समुद्र तट के निकट बालू एवं रेडियोधर्मी खनिजों के उत्खनन के ठेके दिये हैं जिससे तटवर्ती क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा पैदा हो गया है।
प्रेमचंद्रन ने कहा कि केरल में 242 किलोमीटर की लंबाई में 12 नाविक मील के दायरे के भीतर बालू एवं अन्य खनिजों के उत्खनन के पट्टे दिये हैं जिनमें रेडियोधर्मी खनिज शामिल हैं। केन्द्र सरकार को 12 नाविक मील की दूरी के अंदर केरल सरकार के आधिपत्य को देखते हुए राज्य सरकार से सहमति प्राप्त करनी चाहिए थी, पर वैसा नहीं किया गया है।
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उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अथाह मत्स्य संपदा उपलब्ध है। 40 हजार से अधिक नौकाएं लाखों मछुआरों के आजीविका के अवसर उपलब्ध हैं। केन्द्र सरकार के उत्खनन कराने के इस कदम से समुद्र का समूचा पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट होने का खतरा है। मछलियों की लाखों प्रजातियां उसी भूगर्भीय वातावरण में पनपतीं हैं। बालू खोदने के बाद मछलियों के पनपना बंद हो जाएगा। लाखों मछुआरों की आजीविका खत्म हो जाएगी।
प्रेमचंद्रन ने कहा कि केन्द्र सरकार को इस आदेश को तुरंत रद्द करना चाहिए और बालू आदि के उत्खनन काे रोक देना चाहिए।
कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल ने भी इस मामले से खुद को संबद्ध करते हुए कहा कि मछुआरों की आजीविका संकट में है। केरल के मछुआरों ने इस निर्णय के खिलाफ हड़ताल करने का भी निर्णय किया है। केन्द्र सरकार को अपने आदेश को वापस ले लेना चाहिए।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के टी आर बालू ने तमिलनाडु के मछुआरों को श्रीलंका की नौसेना द्वारा पकड़े जाने एवं प्रताड़ित किये जाने का मामला उठाया और कहा कि दाे सौ से अधिक नौकाएं श्रीलंकाई नौसेना के कब्जे में हैं। सरकार को इस पर हस्तक्षेप करके मामले का समाधान किया जाये।