एक अनोखा गांव जहां रावण की पूजा होती है

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(पवन वर्मा-विभूति फीचर्स)
 
           भारत की संस्कृति विविधताओं का संगम है। यहाँ देवी-देवताओं की पूजा से लेकर अनेक प्रकार की लोक परंपराएं सदियों से जीवित हैं। यदि देश के किसी हिस्से में रावण को बुराई का प्रतीक मानकर हर वर्ष दशहरे पर उसका दहन किया जाता है, तो मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के नटेरन तहसील स्थित एक छोटे से गांव में रावण को देवता के रूप में पूजने की अनोखी परंपरा भी जीवित है। यह गांव "रावन गांव" के नाम से प्रसिद्ध है और यहां प्रतिदिन रावण की पूजा-अर्चना होती है। इस गांव को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा प्रयास भी किए जा रहे हैं।
            विदिशा जिले का यह रावन गांव राजधानी भोपाल से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव की पहचान वहां स्थित एक प्राचीन प्रतिमा से है, जिसे रावन बब्बा  कहा जाता है। रावण की यह विशाल पाषाण प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में विराजमान है। स्थानीय लोग इसकी देवता की तरह पूजा करते हैं। इतिहासकारों के अनुसार प्रतिमा परमार काल की मानी जाता है,लेकिन स्थानीय लोग इसे राम और रावण के समय की मानते हैं और वर्षों से यहां पूजा-अर्चना की परंपरा जारी है।
            इस गांव की सामाजिक परंपरा अन्य गांवों से एकदम अलग है। यहां विवाह, नया वाहन, गृहप्रवेश अथवा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत रावन बब्बा की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है। ग्रामीण अपने नए वाहन पर "जय लंकेश" और "रावन" लिखवाना शुभ मानते हैं। विवाह में पहला निमंत्रण रावण बाबा को दिया जाता है और प्रतिमा की नाभि में तेल भरकर पूजा की जाती है।
                    आधुनिकता के इस युग में यह गांव भी कदमताल मिला कर चल रहा है फिर भी परम्परानुसार गांव की विवाहित महिलाएं इस जगह घूंघट अवश्य करती हैं। यहां के  लोग रावन बाबा को सिर्फ पूज्य नहीं मानते बल्कि अपने  ग्रामदेवता और प्रथम देवता के रूप में देखते हैं। यहां कई परिवार रावण को अपना कुल देवता भी मानते हैं और पूरे विधिविधान एवं आस्था के साथ अपने कुल देवता की पूजा,आराधना करते हैं।
           इस प्रतिमा की प्रतिदिन दो बार आरती होती है और प्रसाद वितरण होता है। हर घर से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। यहां तक कि शादी-विवाह जैसे अवसरों पर भी  रावन बाबा की पूजा अनिवार्य रुप से की जाती है। यहां  विवाह में दूल्हा पहले रावण बाबा की प्रतिमा को धोक देता है फिर बारात निकाली जाती है। इसी तरह विवाह के बाद नवविवाहिता जोड़े को भी यहां धुकाने लाया जाता है। 
            इस मंदिर को लेकर अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि रावण गांव से उत्तर दिशा में लगभग तीन किलोमीटर दूर एक "बुद्धा की पहाड़ी" है। मान्यता है कि प्राचीन समय में वहां "बुद्धा" नामक एक राक्षस रहता था, जो रावण से युद्ध करना चाहता था। लेकिन जब-जब वह लंका पहुंचता, रावण की गरिमा और दरबार की भव्यता देखकर उसका क्रोध शांत हो जाता।  एक दिन रावण ने इस राक्षस से पूछा कि तुम दरबार में क्यों आते हो और हर बार बिना कुछ बताये चले जाते हो। तब बुद्धा राक्षस ने कहा कि महाराज में हर बार आप से युद्ध की इच्छा लेकर आता हूं परन्तु यहां आपको देख कर मेरा क्रोध शांत हो जाता है। तब रावण  ने कहा कि तुम जहां रहते हो वहीं मेरी एक प्रतिमा बना लेना और उसी से युद्ध करना। तब से यह प्रतिमा यहीं पर बनी हुई है।
        इसी गांव में इस प्रतिमा के नजदीक ही  एक तालाब स्थित है, मान्यता है कि इस तालाब में रावण की तलवार है। ग्रामीण मानते हैं कि तलवार आज भी उस तालाब में सुरक्षित है।
         भारत में रावण को आमतौर पर बुराई का प्रतीक माना जाता है। दशहरे पर देशभर में उसके पुतलों का दहन कर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है। लेकिन रावन गांव के लोग इस आयोजन से दूरी बनाए रखते हैं। न तो वे रावण दहन देखने जाते हैं और न ही इस उत्सव का हिस्सा बनते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि उनके कुलदेवता का दहन करना अथवा इस आयोजन को देखना भी अशुभ है।
             इतिहासकारों का मानना है कि रावण एक विद्वान, शिवभक्त और वेदों का ज्ञाता था। वह विलक्षण राजा था, जिसने लंका को सोने की नगरी में बदल दिया। कई समाजशास्त्री मानते हैं कि रावण का चरित्र केवल "बुराई" के रूप में सीमित करना उचित नहीं है। उसकी विद्वत्ता और शक्ति के कारण उसे पूजनीय भी माना जाता है। विदिशा के रावन गांव में प्रचलित यह आस्था शायद इसी दृष्टिकोण का परिणाम है।
           इतिहास चाहे कुछ भी कहे पर इस गांव के लोग मानते हैं कि रावण उनकी रक्षा करता है। रावण बाबा को ग्रामदेवता मानकर पूजा करने से गांव में सुख-शांति बनी रहती है। विवाह के अवसर पर सबसे पहले रावण बाबा की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में समृद्धि आती है। नया वाहन लेने पर "जय लंकेश" लिखने से दुर्घटनाओं से रक्षा होती है। ये सभी मान्यताएं आस्था और विश्वास का परिणाम हैं। इस गांव के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी  इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। ग्रामीणों के लिए यह केवल धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि उनकी सामाजिक पहचान भी है।
           आज जब समाज तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, तब भी रावण गांव की यह परंपरा जीवित है। यह प्रतीक है कि आधुनिकता के बीच भी लोक आस्था का अपना महत्व है। भले ही यह परंपरा देश की मुख्यधारा की मान्यताओं से अलग है, लेकिन यह भारतीय समाज के उस सुंदर पक्ष को मजबूत करती है, जिसमें विभिन्न विचार और मान्यताएं साथ-साथ पनपती हैं।
यह स्थान विश्व प्रसिद्ध उदयगिरि की गुफाओं और बौद्ध तीर्थ सांची से नजदीक ही है ,इसलिए सरकार द्वारा भी यहां आवश्यक मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न कर रही है ताकि हमारी संस्कृति की प्राचीन मान्यताओं को जीवंत रखा जा सके।  *(विभूति फीचर्स)*

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