चेन्नई। आने वाले दिनों में मृत अंतरिक्ष यानों के कबाड़ को ठिकाने लगाने की बहुत बड़ी चुनौती बन रही है। मृत उपग्रह यूरोपीय स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिक पृथ्वी-निगरानी मिशन ईआरएस-2 का हिस्सा था। इसे 21 अप्रैल 1995 को लॉन्च किया गया था और 16 साल की जीवन यात्रा के बाद इसने 2011 में कार्य करना बंद कर दिया। जिसके बाद सारा सिस्टम मृत हो गया।
जिस समय यह सक्रिय था, उस दौरान ईआरएस-2 ने ध्रुवीय बर्फ, बदलती भूमि सतहों, समुद्र के स्तर में वृद्धि, गर्म होते महासागरों और वायुमंडलीय रसायन विज्ञान पर तमाम महत्वपूर्ण डेटा एकत्र किया। इसके अतिरिक्त उपग्रह को दूरदराज के क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यूके स्पेस एजेंसी की ओर से ऑस्ट्रेलियाई कंपनी एचईओ द्वारा पुराने और निष्क्रिय उपग्रहों के ऐसे चौंकाने वाले चित्र भेजे गए हैं, जो काफी चिंताजनक हैं। मृत उपग्रह का वजन लगभग 5,057 पाउंड (2,293.82 किलोग्राम) है और ईएसए का अनुमान है कि उपग्रह का सबसे बड़ा टुकड़ा जो जमीन तक पहुंच सकता है, वह 115 पाउंड या लगभग 52 किलोग्राम है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी का कहना है कि यह धीरे-धीरे पृथ्वी की ओर आ रहा है।
यूरोपीय स्पेस एजेंसी के हैंडल से 19 फरवरी को “टम्बलिंग डिसेंट” की तस्वीरें साझा की गई हैं और कहा गया है कि “ईआरएस-2 देखा गया- ईएसए उपग्रह नीचे की ओर लुढ़क रहा है, जिससे यह वायुमंडलीय पुनः प्रवेश कर इस सप्ताह टूट जाएगा।
अब सवाल खड़ा होता है कि क्या मृत उपग्रह किसी बड़ी दुर्घटना का कारण हो सकता है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का अनुमान है कि मृत उपग्रह के किसी के सिर पर गिरने की संभावना है तो उसका जवाब है कि नहीं। सिर्फ एक अरब में से एक प्रतिशत ऐसी आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढंका हुआ है। संभावना यह है कि यह मृत उपग्रह इनमें ही कहीं गिरेगा।