Tuesday, April 22, 2025

13 थाना क्षेत्रों को छोड़कर पूरे मणिपुर में अफस्पा लागू, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी अवधि बढ़ी

नई दिल्ली। गृह मंत्रालय ने 13 थाना क्षेत्रों को छोड़कर पूरे मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) लागू करने की घोषणा की है। यह निर्णय क्षेत्र में कानून-व्यवस्था को लेकर चल रही चिंताओं के बीच लिया गया है, जिसे “अशांत क्षेत्र” के रूप में वर्गीकृत किया गया है। असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के तिरप, चांगलांग तथा लोंगडिंग जिलों और नामसाई जिले के नामसाई, महादेवपुर और चौखान थाना क्षेत्रों में अफस्पा को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है।

 

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नागालैंड के दिमारपुर, नियूलैंड, चूमोकेदिमा, मोन, किफरे, नोकलाक, फेक और पेरेन जिलों के साथ कोहिमा जिले के पांच, मोकोकचुंग जिले के छह, लोंगलेंग जिले के एक, वोखा जिले के तीन और जुनेबोतो जिले के छह थाना क्षेत्रों में भी अफस्पा की अवधि छह महीने बढ़ाई गई है। सभी राज्यों में अफस्पा की नई अवधि 1 अप्रैल से प्रभावी होगी और छह महीने के लिए लागू रहेगी। गृह मंत्रालय ने मणिपुर में अस्थिर सुरक्षा स्थिति को विस्तार का मुख्य कारण बताया। राज्य में बीच-बीच में हिंसा और उग्रवादी गतिविधियां देखी गई हैं, खास तौर पर सीमांत और संवेदनशील क्षेत्रों में। अफस्पा सुरक्षा बलों को बिना किसी पूर्व वारंट के अभियान चलाने, परिसरों की तलाशी लेने और गिरफ्तारियां करने का अधिकार देता है, जिसका उद्देश्य व्यवस्था बहाल करना और उग्रवाद को रोकना है। हिंसा से त्रस्त पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में भाजपा नेता एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद 13 फरवरी 2025 से राष्ट्रपति शासन लागू है।

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उल्लेखनीय है कि 3 मई 2023 को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा का दौर शुरू होने के बाद मणिपुर में लगातार जातीय हिंसा देखने को मिली हैं, हालांकि पिछले कुछ समय से इसमें कमी जरूर आई है। साल 1958 में अधिनियमित सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (अफस्पा) एक ऐसा कानून है जो सरकार द्वारा अशांत घोषित क्षेत्रों में कार्यरत सशस्त्र बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है। ये क्षेत्र आमतौर पर उग्रवाद से ग्रस्त होते हैं, जहां राज्य सरकारों के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है। अफस्पा वर्तमान में पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों (असम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ जिलों) में लागू है और इसे पहले जम्मू और कश्मीर में लागू किया गया था, जिसे 2019 में हटा लिया गया।

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