खान-पान के विशेषज्ञ यह सलाह देते हैं कि हाई फाइबर डाइट हमारे लिए लाभकारी है। हाई फाइबर डाइट यानी उच्च रेशों वाली खुराक में मौजूद रेशे डाइटरी फाइबर (आहारीय रेशे) कहलाते हैं। अधिक जनसंख्या वाले हमारे देश में हर मर्ज के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा आदि सभी प्रकार के रोगी हमारे यहां बहुतायत में पाए जाते हैं।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार यदि हम हाई फाइबर डाइट को अपनाएं तो स्वयं को कई प्रकार की बीमारियों का शिकार होने से बचा सकते हैं और यह हमारे अपने हाथ में है। इसके लिए हमें किसी डॉक्टर के पास भी जाने की आवश्यकता नहीं रहती।
रेशों की खुराक: जब हम खुराक में रेशों की बात करते हैं तो मतलब होता है प्रकृति में उपलब्ध वे रेशे जिन्हें हम खा सकते हैं लेकिन खाने के बाद हम इन्हें पचाते नहीं हैं। आहारीय रेशे पौधे की कोशिका की दीवारों में मौजूद एक जटिल संरचना हैं। हमारी पाचन प्रणाली इन्हें अवशोषित या इनका पाचन नहीं कर पाती।
इसके बावजूद ये हमारे शरीर के लिए बहुत लाभकारी हैं। ये रेशे जस के तस, बिना अपनी फितरत को बदले, पूरे पाचन तंत्र को पार कर जाते हैं। ऐसा करते हुए वे अपने साथ आंतों को साफ करते हुए शरीर की गंदगी को बाहर ले जाते हैं। वास्तव में रेशे अपाच्य कार्बोहाइड्रेट होते हैं। रेशे दो प्रकार के होते हैं।
विलयशील रेशा: यह रेशा एक चिपचिपे व लिसलिसे किस्म का गोंद जैसा पदार्थ होता है। तरल पदार्थ के साथ मिलकर ये रेशे जेल जैसी आकृति बना लेते हैं। उदाहरण के लिए ईसबगोल एक घुलनशील रेशा है जो पानी सोख कर फूल जाता है। विलयशील रेशे हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को शरीर से निकाल बाहर करते हैं और खून में शुगर की अवशोषण प्रक्रिया को धीमा करते हैं। ये हमें साबुत व मोटे अनाजों जैसे जई, गेहूं, बाजरा, धान, राई तथा मसूर, राजमा व अन्य दालों और सेब, नाशपाती, संतरे आदि फलों से मिलते हैं। इनके अलावा गाजर, मटर, टिंडा, मकई, रतालू, अरबी, शकरकंदी जैसी स्टार्च युक्त सब्जियां विलयशील रेशों का अच्छा स्रोत हैं।
अविलेय रेशा: यह रेशा पानी में घुलता नहीं। यह हमारी पाचन प्रणाली से गुजरते हुए जल को अवशोषित करता है। अविलेय रेशे शरीर में रेचक का काम करते हैं। ये शीघ्रता से विष्ठा को आंतों से बाहर ले जाते हैं। कब्ज से बचाने में ये अहम रोल अदा करते हैं। अविलेय रेशे एसिडिटी पर नियंत्रण करते हैं। आंतों के कैंसर से बचाने में इनकी बड़ी भूमिका होती है। इनका स्रोत है गेहूं की भूसी तथा साबुत अन्न। अधिकतर अनाज अविलेय रेशों के ही बने होते हैं। फलों, सब्जियों के छिलकों, हरी पत्तेदार सब्जियों से हमें अविलेय रेशे मिलते हैं।
वास्तव में सभी पौधों में विलयशील तथा अविलेय दोनों प्रकार के रेशे होते हैं। इसलिए इस बात की चिंता न करें कि आपने कौन-सा रेशा खाया और कौन-सा नहीं खाया। बस, आवश्यक यह है कि आप रिफाइंड अन्न से बनी चीजें (जैसे मैदा) छोड़कर संपूर्ण अन्न से बने पदार्थ तथा फल व सब्जियां खाएं।
कितने रेशे खाएं: अमीर देशों की अपेक्षा पिछड़े देशों के लोग ज्यादा रेशे खाते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में औसतन एक आम व्यक्ति प्रतिदिन सिर्फ 14 ग्राम फाइबर खाता है किंतु गरीब और विकासशील देशों में रेशों की खपत अधिक है। अफ्रीकी महाद्वीप में एक व्यक्ति अनुमानत: 6० ग्राम रेशे हर रोज खाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश की बात करें तो हमें रोजाना 2० से 4० ग्राम रेशे खाने चाहिए।
कुछ अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण अफ्रीकी, जो हाई फाइबर डाइट लेते हैं, वे पश्चिमी लोगों के मुकाबले मल उत्सर्ग करने में सिर्फ एक तिहाई समय लेते हैं। उनका मल मार्ग में ज्यादा एवं कोमल होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके भोजन में मौजूद रेशों की उच्च मात्रा मल में मौजूद खतरनाक पदार्थों को मुलायमियत के साथ बाहर निकाल देती है। इस तरह उन खतरनाक पदार्थों को इतना मौका नहीं मिलता कि वे पाचन प्रणाली को हानि पहुंचा सकें। यही वजह है कि अफ्रीकी लोगों को पाचन तंत्र संबंधी वे रोग परेशान नहीं करते जो पिज्जा, बर्गर आदि खाने वाले पश्चिमी लोगों को घेरे रहते हैं।
रेशों के सेवन में सावधानियां: यदि कोई महिला गर्भ निरोधक का सेवन करती है या कोई मरीज कोलेस्ट्रॉल को कम करने की दवा खा रहा है तो ऐसे लोगों को इस बात का ख्याल रखना होता है कि उनके रेशे युक्त भोजन और दवा के समय में दो घंटे का अंतर हो। ये रेशे इन दवाओं के असर को कम कर देते हैं। इसी तरह जो लोग आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक, कैल्शियम जैसे तत्वों के सेवन के लिए सप्लीमेंट्स यानी कोई पूरक आहार लेते हैं, वे भी समय के अंतर का ख्याल रखें, क्योंकि आहारीय रेशे इन खनिजों को शरीर में अवशोषित नहीं होने देंगे और उन्हें कूड़ा समझकर अपने साथ शरीर से बाहर ले जाएंगे।
वे रोग जिनमें रेशे लाभकारी हैं:
फाइबर के सेवन से आंतों के कैंसर व स्तन कैंसर का खतरा कम होता है।
इससे पाचन संबंधी परेशानियों में राहत मिलती है। जैसे कब्ज, दस्त, पेट दर्द, उदरशूल, मल में खून आना या आंव छूटना।
रक्त शर्करा पर नियंत्रण करके रेशे मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचाते हैं।
रक्त में गंदे कोलेस्ट्रॉल को कम करके ये हृदय रोगों के जोखिम को कम करते हैं।
अपाच्य होने के कारण ये पेट में देर तक तृप्ति का एहसास कराते हैं। इस तरह मोटापे पर काबू पाया जा सकता है।
– खुंजरि देवांगन