Friday, March 7, 2025

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च, 2025) के लिए विशेष: सार्वजनिक मूत्रालयों के लिए महिलाओं का संघर्ष

हमारे देश में अक्सर महिलाओं के अधिकारों की बात की जाती है। समानता के नारे गूंजते हैं लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा है कि समानता तो दूर, महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय तक पहुंच पाना भी एक बड़ा संघर्ष है? हाल में यह जान कर  हैरानी की सीमा नहीं रही कि कोरो इंडिया नामक संगठन को मुम्बई में महिलाओं के लिए च्मूत्र करने का अधिकारज् अभियान चलाना पड़ रहा है। इस अभियान के तहत मुंबई के व्यस्ततम इलाकों में महिलाओं के लिए नि:शुल्क, स्वच्छ और सुरक्षित सार्वजनिक मूत्रालयों की स्थापना की वकालत की जा रही है। इससे यह समझ पाना मुश्किल नहीं है कि देश में महिलाओं की बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

 

छोटे और बड़े शहरों में सडक़ों, बाजारों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर पुरुषों के लिए यूरिनल आसानी से उपलब्ध होते हैं लेकिन महिलाओं के लिए ऐसी सुविधाएं या तो बहुत कम हैं या फिर बेहद खराब स्थिति में होती हैं। ऐसे में महिलाएं मूत्र रोकने को मजबूर हो जाती हैं या फिर असुरक्षित और अस्वच्छ जगहों पर जाने के लिए विवश होती हैं जिसका खामियाजा उन्हें यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई), किडनी की समस्याओं और अन्य बीमारियों के रूप मेंं भुगतना पड़ता है।

 

शहरों में ही नहीं, गांवों में भी महिलाओं के लिए शौचालय का अभाव है। कई बार सार्वजनिक शौचालय इतनी असुरक्षित स्थिति में होते हैं कि महिलाएं वहां जाने से डरती हैं। खुले में सार्वजनिक स्थानों पर निवारण करने से उनकी गरिमा और आत्म सम्मान पर असर पड़ता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और 15 (लैंगिक भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार) के तहत सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराए। कुछ समय पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने कार्यस्थलों और सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के लिए टॉयलेट की कमी और मौजूदा टॉयलेट के खराब हालत पर स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेकर सरकार से जवाबतलब किया है।

 

अपने आदेश में अदालत ने कहा है कि महिलाएं विकासशील देश की रीढ़ की भूमिका निभाती हैं। टॉयलेट के अभाव में महिलाओं को स्वास्थ्य की कई समस्याएं हो रही हैं। अदालत ने कहा कि घर से बाहर निकली महिलाएं अपने लिए टॉयलेट तलाश करती हैं लेकिन उन्हें या तो टॉयलेट ही नहीं मिलता या उसमें पर्याप्त साफ सफाई नहीं होती, जिस कारण महिला वापस घर पहुंचने तक यूरिन रोक लेती हैं। हाई कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि प्रदेश में अपने लिए शौचालयों की कमी के चलते महिलाएं कम पानी पीती हैं और यूरिन रोक लेती हैं, इससे उन्हें बीमारियां हो सकती हैं।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी बिलासपुर जिले के 150 सरकारी स्कूलों में शौचालय न होने और 200 से अधिक स्कूलों में शौचालय उपयोग के लायक नहीं होने पर स्वत: संज्ञान लेकर सरकार से जवाब मांगा है। हाई कोर्ट के ध्यान में आया कि स्कूलों में शौचालयों की कमी के कारण महिला शिक्षक और छात्राएं प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें पेशाब करने के लिए खुले मैदान में जाना पड़ता है।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के प्रसंज्ञान लेने से जाहिर है कि अब यह केवल सामाजिक समस्या नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार का मामला भी बन गया है पर बड़ा सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान कब होगा? क्या मुम्बई की तर्ज पर सब जगह मूत्र त्याग का अधिकार अभियान चलाकर महिलाओं को आवाज उठानी पड़ेगी?
महिलाओं की गंभीर समस्या को हल करने के लिए कोरो इंडिया ने जिस च्मूत्र करने का अधिकारज् नामक महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत की है, वह इस गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करता है। यह पहल सिर्फ महिलाओं के  लिए विशेष यूरिनल की उपलब्धता सुनिश्चित करने तक सीमित नहीं है बल्कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और उनके मूलभूत अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है।

महिलाओं के लिए स्वच्छ और सुरक्षित यूरिनल की सुविधा कोई विशेषाधिकार नहीं बल्कि एक बुनियादी मानवाधिकार है जो उन्हें मिलना ही चाहिए। यह केवल उनके स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा ही नहीं है बल्कि समानता, गरिमा और आत्मसम्मान का प्रश्न भी है। सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर इस विषय पर गंभीर पहल करनी होगी ताकि महिलाओं को एक ऐसा बुनियादी अधिकार पाने के लिए संघर्ष न करना पड़े जो पुरुषों को बिना किसी प्रयास के उपलब्ध है।

कोरो इंडिया के इस अभियान के बारे में सुनकर एकबारगी किसी को भी अजीब लग सकता है पर इस पर विचार करने से समझ में आता है कि यह मुद्दा कितना गंभीर है और इस पर चर्चा करना क्यों जरूरी है? यह अभियान  महिलाओं के लिए सार्वजनिक यूरिनल के अभाव को च्सामान्य स्थितिज् मानने की मानसिकता को चुनौती देता है।  दरअसल, यह महिलाओं की लंबे समय से ऐसी उपेक्षित समस्या है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की दरकार है। किसी भी समस्या का हल बात करने से ही निकलता है। अगर हम इस पर व्यापक विचार-विमर्श करेंगे तो महिलाओं की यह मांग मजबूती से उठेगी। शासन और प्रशासन पर दबाव बनेगा और इससे महिलाओं के जीवन को और अधिक सुरक्षित एवं सुविधाजनक बनाने की दिशा में काम करने का मार्ग प्रशस्त होगा।

यह जरूरी है कि सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के लिए अधिक संख्या में स्वच्छ और सुरक्षित यूरिनल बनाए जाएं। महिला शौचालयों के बाहर सीसीटीवी कैमरे, उचित रोशनी, सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और नियमित सफाई व्यवस्था होनी चाहिए। जरूरी है कि सरकार इस विषय पर स्पष्ट नीति बना कर तत्काल नए बिल्डिंग प्लान में महिला यूरिनल अनिवार्य करने जैसे कदम उठाए। शिक्षा का अधिकार की तर्ज पर च्मूत्र करने का अधिकारज् जैसे अभियान चलाने पर महिलाओं का मजबूर होना हमारे लिए शर्मिन्दगी का विषय है।

अमरपाल सिंह वर्मा

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,854FansLike
5,486FollowersFollow
143,143SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय