नई दिल्ली। उत्तराखंड सरकार ने पिछले दिनों रष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की सिफारिश को आधार बनाकर मदरसों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। इसके खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। इस संबंध में मंगलवार, 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका की सुनवाई हो सकती है।
टीवी जगत को बड़ा झटका, ‘भाबीजी घर पर हैं’ के लेखक मनोज संतोषी का निधन
एनसीपीसीआर ने केन्द्र और राज्यों को निर्देश दिया था कि कथित रूप से शिक्षा का अधिकार एक्ट से संबंध न रखने वाले सभी मदरसों को बंद करा दिए जाए। राष्ट्रीय आयोग ने कहा था कि मदरसों में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं दी जा रही है और यह बच्चों के अधिकार के खिलाफ है। आगे यह भी कहा गया था कि मदरसों में बच्चों को न केवल उचित शिक्षा बल्कि स्वस्थ वातावरण और विकास के अच्छे अवसर से भी वंचित रखा जा रहा है। सरकारी अधिकारियों ने उत्तराखंड में बड़े स्तर पर मदरसों के खिलाफ फिर कार्रवाई शुरू कर दी है।
जमीअत उलमा-ए-हिंद का कहना है कि अब तक इस कार्रवाई में बिना पूर्व सूचना के बहुत से मदरसों को ज़बरदस्ती बंद करवा दिया गया, हालांकि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि जब उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की पहले कार्रवाई की गई थी तो जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस साजिश को विफल बनाने के लिए मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दाखिल की थी। इसमें उन सभी दावों को चुनौती दी गई थी जिसके बाद अदालत ने उन सभी नोटिसों पर रोक लगा दी जो विभिन्न राज्यों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों को जारी किए गए थे। उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ इस कार्रवाई को असंवैधानिक बताते हुए आज जमीअत ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है।
उत्तर प्रदेश पहले था बीमारू राज्य आज बना देश की अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजन: योगी
जमीअत का कहना है कि उतराखंड में मकतबों और मदरसों, जो केवल मुस्लिम समुदाय के बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के माध्यम हैं, के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप और उन्हें लगातार भयभीत किया जा रहा है।याचिका में कहा गया है कि हमारे मदरसे और मकतब जो शुद्ध रूप से गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा संस्थाएं हैं, यह बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के चल रहे हैं। लेकिन अचानक पहली मार्च 2025 से अब तक सरकारी अधिकारी हमारे मदरसों में आ रहे हैं और हमसे कह रहे हैं कि हमें यह मकतब और मदरसे बंद करने होंगे। जब हमने उनसे किसी नोटिस या सरकारी आदेश के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें कुछ भी उपलब्ध नहीं किया। केवल मौखिक रूप से निर्देश दिया कि मदरसा एजूकेशन बोर्ड दोहरादून से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है, इसके बाद उन्होंने बिना किसी नोटिस के हमारे मदरसों को सील कर दिया और हमें किसी भी प्रकार का स्पष्टिकरण या आपत्ति करने का अवसर नहीं दिया।
याचिका में यह भी कहा गया है कि गैर-मान्यता प्राप्त होने का अर्थ केवल यह है कि हमने अपने मकतबों और मदरसों का मदरसा एजूकेशन बोर्ड दोहरादून से पंजीकरण नहीं करवाया। इस याचिका में अदालत से यह निवेदन किया गया है कि भारतीय संविधान की धाराओं और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्तूबर 2024 के आदेश के आलोक में कृपया इन मकतबों और मदरसों को शीघ्र पुनः खोलने का आदेश प्रशासन को दें और प्रशासन को यह भी आदेश दें कि वह मकतबों और मदरसों के कार्यों में हस्तक्षेप न करे, क्योंकि संबंधित सरकारी अधिकारियों का यह कार्य न्यायालय की अवमानना के समान है, और यह न्याय के उद्देश्यों का लगातार लल्लंघन है और कानून के शासन के खिलाफ है। जमीअत की ओर से वकील फुज़ैल अय्यूबी ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है।