Tuesday, November 5, 2024

मकर संक्रांति विशेष: दान, मान, स्नान, धर्म व विज्ञान का संगम, सूर्य उपासना पर्व मकर संक्रांति

हिंदू धर्म में दान और पुण्य का बड़ा महत्व है और मकर संक्रांति का पर्व संपन्न लोगों को दान देने का, तो गरीबों के लिए दान व मान पाने का अवसर है। विज्ञान व धर्म को जोड़ने वाला यह अकेला हिंदू पर्व है जो सौर गति के आधार पर मनाया जाता है इसीलिए इसे सूर्य उपासना का पर्व भी कहा जाता है। ध्यान रहे कि हिन्दू धर्म के दूसरे त्यौहार चंद्र कलाओं के आधार पर तय होते हैं। कुल मिलाकर दान, मान, धर्म, विज्ञान, स्नान, पुण्य कमाने व मोक्ष पाने का अनूठा मिश्रण है मकर संक्रांति व का पर्व जिससे वैज्ञानिक व भौगोलिक कारणों के साथ-साथ पौराणिक कथाएं व मिथ भी जुड़े हैं।

मिथ व कथाएं: पुराणों के अनुसार महाभारत के यु़द्ध में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म शरशैया पर थे और उनके प्राण निकलने ही वाले थे पर, सूर्य उस समय दक्षिणायण था और हिंदू धर्म के मुताबिक इस स्थिति में मृत्यु होने पर मुक्ति नहीं मिलती सो, दृढ़व्रती भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने तक प्राण नहीं त्यागे। सूर्य उत्तरायण होते ही मकर संक्रांति पर उन्होने प्राण त्याग मोक्ष प्राप्त किया इसीलिये मकर संक्रान्ति को मोक्षदायी पर्व भी कहते हैं।

मान्यता यह भी है कि है कि आज के ही दिन भगवान विष्णु वामन के वेश में दैत्यराज राजा बलि सबसे बड़ा दानवीर एवं पराक्रमी होने का अभिमान तोडऩे कि लिए उनकी परीक्षा लेने गए थे। उन्होने बलि से तीन कदम ज़मीन मांगी और उसके ‘हां कह देने पर तीन कदम में उन्होंने धरती व आकाश नाप लिए तथा पृथ्वी को दैत्य मुक्त करने के लिए वामनावतार विष्णु ने बलि को पाताल का राज्य दे दिया। कहा यह भी जाता है कि आज के दिन ही माता यशोदा ने कृष्ण को पुत्र के रूप में पाने के लिए व्रत किया था। पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए मकर संक्रांति का पर्व अति शुभ माना जाता है।

बीहू, पोंगल व मकर संक्रांति: मकर संक्रांति पर ही दक्षिण भारत में पोंगल पर्व मनाता है, इस दिन वहां दीप जला कर रोशनी की जाती है व नावों की दौड़ भी आयोजित की जाती है ।उत्तरी भारत में  मकर संक्रांति के दिन लोग अपने पशुओं को सजाते हैं। यदि ओणम् केरलवासियों का महत्त्वपूर्ण त्योहार है तो पोंगल तमिलनाडु के लोगों का मुख्य पर्व है।

तमिलनाडुवासी पोंगल के अवसर पर लोग विशेष रूप से गाय, बैलों की पूजा करते हैं। तीन दिन तक चलने वाला मुख्य पर्व पौषमास की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां भगवान से अच्छी फसल होने की प्रार्थना करती है। घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ हो जाती है और अमावस्या के दिन सब लोग एक स्थान पर एकत्र होकर अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं अपनी रीति-नीतियों पर विचार करते हैं और जो अनुपयोगी रीति-नीतियाँ हैं उनका परित्याग करने की प्रतिज्ञा की जाती है। मकर संक्रांति के आसपास ही असम में बिहू का पर्व भी मनाया जाता है।

सूर्य का उत्तरायण: मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु का प्रकोप धीरे-धीरे कम होना शुरू हो जाता है और स्वास्थ्य की दृष्टिसे भी मौसम अनुकूल होने लगता है। मौसम के नज़रिए से देखें तो भारत में शीत ऋतु की विदाई की तैयारी आज से ही शुरु होती है।

देश भर में मिलता है पर्व: मकर संक्रांति के दिन खास तौर पर राजस्थान व गुजरात में पतंगें  जोर शोर से उड़ाई जाती हैं। ”चील चील पुआ ले के शोर से तो आसमान गूंजता ही है ‘वो मारा वो काटा का शोर भी चारों तरफ सुनाई देता है।
उत्तर प्रदेश: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गंगा स्नान का खास जोर रहता है मान्यता है कि इस दिन हर की पौड़ी पर गंगा स्नान करने से  मुक्ति मिलती है इसीलिए आज के दिन लाखों लोग गंगा  स्नान करते हैैं। शायद तिलों के महंगे होने की वजह से या किसी और कारण से इस क्षेत्र में उड़द की काली दाल की खिचड़ी बनाने, खाने व दान करने की परम्परा मिलती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के संगम पर इस दिन भारी भीड़ उमड़ती है। एक तरफ मांगने वालों तो दूसरी तरफ दान करने वाले लोगों का हुजूम देखा जा सकता है। राजस्थानी व गुजराती लोग मालपुआ बनवा कर बांटते हैं।

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में मकर संक्रांति के दिन सुहागिन महिलाएं इकटठी होकर एक दूसरे को कुंकुम व हल्दी लगाती हैं तथा तिल व गुड़ भेंट करती हैं तथा हमेशा मीठे वचन बोलने की शपथ उठाती हैं  हैं । रथसप्तमी तक यह पर्व बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। सामान्यत: मकर संक्रांति से एक दिन पहले पंजाब में लोहड़ी का पर्व भी जोशो खरोश के साथ सम्पन्न होता है जो नई फसल के आने की खुशी में मनाया जाता है।

तिल का महत्व: कहा जाता है कि मकर संक्रांति से प्रत्येक दिन, तिल-तिल बढऩे लगता है। इस दिन तिल का खास महत्व होता है, आज के दिन तिल के लड्डू बनाए जाते हैं, तिल का दान किया जाता हैं व व्यंजनों में खास तौर पर तिल के तेल का ही उपयोग करने की परम्परा है। आज के दिन को उपासना और सूर्य नमस्कार करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति का मिथ भी है।

संतान कल्याण का पर्व: महिलाओं में इस पर्व के प्रति खास उत्साह देखा जाता है वें बड़ी उमंग के साथ आज के दिन व्रत, जप, तप, दान व धर्म के काम करती हैं और अपनी संतान के सुख समृद्धि, सुरक्षा व कल्याण की कामना करती हैं। उत्तरी भारत में मकर संक्रांति को विवाहित महिलाएं अपने ससुराल पक्ष के बुजुर्ग लोगों को नए वस्त्र तथा धन भी उन्हें मैन देने हेतु अर्पित करती हैं पश्चिम उत्तर प्रदेश में इसे बायना या पहरावा कहा जाता है। मान्यता है कि इतनी संतान महिलाएं विशेष रूप से संतान की प्राप्ति हेतु बड़ों के चरण छूकर उन्हें प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद लेती हैं।

इस प्रकार से देखें तो मकर संक्रांति केवल सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश करने का पर्व मात्र नहीं अपितु भारतीय संस्कृति, दान, पुण्य, ज्ञान, विज्ञान एवं मिथको से जुड़ा हुआ ऐसा अद्भुत पर्व है जो दीपावली की तरह ही बहुपर्वा पर्व कहा जा सकता है।

-डॉ0 घनश्याम बादल

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