शरद ऋतु के शीत आंचल के कुहासे से अस्त-व्यस्त हुए जन जीवन और निष्प्राण सी दिखाईदेने वाली सूर्य की निस्तेज किरणों में मंद गति से बढ़ते ताप से समूची धरती के प्राणियों को मकर संक्रांति की आहट से जहां राहत मिलती है, वहीं प्रकृति में बदलाव आने लगता है। प्रकृति में पूर्णतया परिवर्तन लाने वाला ऋतुराज बसंत भी द्रस्तक देने लगता है, ऐसे ही बदलाव में भारतीय संस्कृति में रचे-बसे पुण्य कार्यों में यहां का जनजीवन सहभागी बनने के लिए सदैव आतुर रहता है।
मकर संक्रांति जैसे पुनीत पर्व परदेशभर में स्थित तीर्थस्थलों पर श्रद्धालुओं द्वारा स्नान व धर्म कर्म की भी परंपरा सदियों पुरानी है। मकर संक्रांति पर्व समूचे देश में किसी न किसी रूप में अवश्य मनाया जाता है। मकर संक्रांति सूर्य के संक्रमण काल का त्यौहार माना जाता है। इस दिन समूचे भारत में बहनेवाली नदियों, तालाबों, सरोवरों तथा पानी के कुंडों में स्नान पर्व आयोजित होते देखे जाते हैं। संक्रांति के दिन किया गया स्नान धार्मिक दृष्टि से श्रद्धालुओं के लिए अति पुण्य कमाने वाला होता है। धर्म व संस्कृति की मजबूत डोर से बंधे श्रद्धालु ऐसे अवसरों पर खुलकर दान भी करते हैं। धार्मिक स्थलों व नदियों के किनारे उमड़ती जनमानस की भीड़ इस बात का प्रतीक है कि जनास्था अभी कम नहीं हुई है, मकर संक्रांति के अवसर पर यूं तो लाखों लोग स्नान पर्व से पुण्य अर्जित करते हैं, लेकिन गंगासागर में स्नान करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
उत्तर प्रदेश में इस दिन हजारों तीर्थस्थलों पर बड़े सबेरे से ही स्नान पर्व शुरू हो जाता है, ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा वर्षों प्राचीन है। इलाहाबाद में तीर्थराज प्रयाग पर लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आकर स्नानादि कर पुण्य कमाते हैं। हिन्दू धर्म में हर व्यक्ति अपने जीवन में एक बार यहां स्नान कर अपने कोधन्य मानता है।
हरियाणा के कुरूक्षेत्र नगर में स्नान के लिए मकर संक्रांति के दिन लाखों श्रद्धालु देशभर से आते हैं। गीता की जन्म स्थली के रूप में विख्यात इस क्षेत्र में ब्रह्म सरोवर, स्थानीश्वसर सरोवर आदि कई स्नान स्थल हैं। ब्रह्म सरोवर से लगभग पांच किलोमीटर दूर बाणगंगा के बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध केदौरान शरशैय्या पर घायल पड़े भीष्म पितामह को जब प्यास लगी थी तो अर्जुन से जब उन्होंने पानी मांगा तब अर्जुन ने यहीं अपने गांडीव धनुष से धरती में तीर मारकर गंगा की जलधारा निकालकर भीष्म के सूखे कंठ की प्यास बुझाई थी। बाद में यही जलधारा सरोवर में बदल गयी, तभी से श्रद्धालु सूर्य ग्रहण हो या फिर मकर संक्रांति, स्नान करने अवश्य ही आते हैं।
भारत के पड़ौसी राष्ट्र नेपाल के लोगों में भी भारत की प्राचीन नदियों के प्रति गहरी आस्था है। इसी वजह से नेपाली श्रद्धालु पिथौरागढ़ स्थित पंच नदियों के संगम पंचमेश्वर महोदव तीर्थ में मकर संक्रांति के दिन डुबकी लगाने आते हैं। मध्यप्रदेश में पूरे माह नर्मदा में स्नान पर्व होता है व यहां विशाल मेला लगता है जो ओंकारेश्वर संक्रांति के नाम से विख्यात है। दक्षिण भारत में भी आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु के निवासी यह पर्व पेांगल के नाम से मनाते हैं व पवित्र नदियों के अलावा सागरों में भी स्नान करते हैं। राजस्थान में ब्रह्माजी की यज्ञस्थली के रूप में विख्यात पुष्करराज में भी श्रद्धालु स्नान हेतु संक्रांति के दिन दूर-दराज क्षेत्रों से आते हैं।
मकर संक्रांति के पावन पर्व पर पूजा-अर्चना का तो विधान है ही, संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाने व तिल से बने विभिन्न मीठे व्यंजन बनाने का भी रिवाज है।पर्व के दिन श्रद्धालु जल्दी उठकर तिल के उबटन से स्नान करने के पश्चात तांबे के बर्तन से सूर्य को मंत्रों के उच्चारण के साथ जल चढ़ाते हैं। इस दिन तिल दान भी किया जाता है व अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग ढंग से इस पर्व को मनाया जाता है।कई जगह मिट्टी के कोरे बर्तनों को हल्दी से सजाया जाता है व इसमें रूई, गन्ना, अनाज तथा चांदी के सिक्के रखे जाते हैं।
बंगाल में तिलोवा व उबले गन्ने का रस प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। कुछ महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए इस पर्व के दिन व्रत भी रखती हैं। कहीं-कहीं इस दिन काले वस्त्र धारण करने का भी रिवाज है। घर-आंगन में स्त्रियां चावल के आटे से रंगोली भी बनाती है। मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से रंग-बिरंगी पतंगे दिनभर आकाश में उड़ाई जाती हैं। इस दिन सर्वाधिक पतंगे गुजरात के अहमदाबाद शहर में उड़ाई जाती हैं, कुल मिलाकर यह पर्व विविध संस्कृति के अनूठे दर्शन करवाता है जिससे लाखों श्रद्धालुओं को पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
चेतन चौहान