Friday, June 28, 2024

मेरठ: देश को बदनाम करने और धर्मनिरपेक्ष छवि को बिगाड़ने में लगी बेबाक कलेक्टिव

मेरठ। कुछ भारत-विरोधी संगठनों को वर्तमान में भारत की छवि और इसकी लंबे समय से चली आ रही समकालिक संस्कृति को बदनाम करने में लिप्त होने के लिए देखा जाता है। हाशिए पर जाने की भावना भड़काती है। फर्जी खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर, तथ्यों को दबा और गलत व्याख्या कर भारत और इसकी लंबे समय से संजोई गई समन्वयवादी संस्कृति की छवि को खराब कर रहे हैं। ये बातें आज हाईवे स्थिति एक निजी विवि के पत्रकारिता विभाग में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ वक्ताओं ने कही। भारत और धर्मनिरपेक्षता और पीत पत्रकारिता पर आयोजित डिेबेट पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे।

 

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इस दौरान दिल्ली से आए डॉ. एसडी प्रसाद ने कहा कि कुछ लोग भारत की शांतिपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल करने के लिए दुष्प्रचार की कमर कस रहे हैं। इसी कार्यप्रणाली के अनुरूप ‘बेबाक कलेक्टिव’ नामक एक संगठन (भारत के विभिन्न राज्यों में कार्यरत स्वायत्त महिला समूह का एक गठबंधन), मुसलमानों पर कथित अत्याचारों के असत्यापित इनपुट का प्रसार करता है। जो कि भारत में मुसलमानों के कथित आघात के पीछे हिंदुओं को तर्क देता है। ‘बेबाक कलेक्टिव’ खुद को एक नारीवादी संगठन के रूप में पेश करता है, जो हाशिए की महिलाओं के अधिकारों के लिए बोल रहा है।

 

उन्होंने बताया कि लोकप्रियता हासिल करने और अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए, ‘बेबाक कलेक्टिव’ ने एक रिपोर्ट (17 दिसंबर, 2022) को जारी की। जिसमें मुसलमानों की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और अन्य समस्याओं की जांच की गई और कहा गया कि जिन क्षेत्रों में मुसलमान लगातार हिंसा का शिकार होते थे। उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और वे ट्रॉमा के शिकार हो गए। ऐसी चीजों की रिपोर्टिंग और गलत व्याख्या करके, संगठन भारत को अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ घृणा और हिंसा के प्रचारक के रूप में चित्रित करता है। हालांकि, संगठन के दावे विशुद्ध रूप से धारणात्मक और प्रकृति में मनगढ़ंत हैं। जो मुख्य रूप से मुसलमानों के कथित आघात के नाम पर अपने भारत विरोधी प्रचार को फैलाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

 

उन्होंने कहा कि संगठन मुख्य रूप से अपने निहित स्वार्थों को फलने-फूलने में लगा हुआ है और इसका मुस्लिम महिलाओं के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इसने न तो ‘खुला’ के मुद्दे को छुआ है, जो कि तलाक के लिए एक मुस्लिम महिला का निर्विवाद अधिकार है और न ही मुस्लिम पुरुष इस्लाम में अपने एकाधिकार पर सवाल उठाया है।
डॉ. अरविंद कुमार पाठक ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत विरोधी व्यक्तियों,संगठनों के निहित स्वार्थों की झूठी खबरों और प्रचार का मुकाबला करने के लिए, एकजुट होने और देश में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे के प्रचार और रखरखाव पर भरोसा करने का सही समय है।

 

उन्होंने कहा कि हर किसी को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, विशेष रूप से मुसलमानों को भारतीय संविधान और इसकी न्यायपालिका में आस्था रखनी चाहिए और साथ ही भारत की धर्मनिरपेक्ष और समन्वयवादी संस्कृति पर गर्व महसूस करना चाहिए। उन्होंने मॉसकाम के छात्रों से कहा कि पीत पत्रकारिता से हमेशा बचना चाहिए। यलो जर्नलिज्म कहीं ना कहीं भविष्य के लिए भी खराब होता है।

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