नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित धनशोधन के एक मुकदमे में अपनी गिरफ्तारी और हिरासत को बरकरार रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद केंद्रीय जांच एजेंसी को नोटिस जारी किया, लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की इस मामले की अगली सुनवाई शीघ्र करने की गुहार साफ तौर पर ठुकरा दी। पीठ ने अगली सुनवाई के लिए 29 अप्रैल की तारीख मुकर्रर कर दी और उससे पहले 24 अप्रैल तक ईडी को अपना जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया।
केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। वह न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल में बंद हैं। कावेरी बावेजा की विशेष अदालत ने एक अप्रैल को उन्हें 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश पारित किया था। उच्च न्यायालय से अपनी याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने 10 अप्रैल को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वरिष्ठ के अधिवक्ता श्री सिंघवी ने तब श्री केजरीवाल का पक्ष रखते हुए उनकी याचिका को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया था और उस पर शीघ्र सुनवाई करने का अनुरोध किया था। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने संबंधित मामले पर शीघ्र सुनवाई करने पर विचार करने का उन्हें आश्वासन दिया था।
ज्ञातव्य हैं कि उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल पीठ ने नौ अप्रैल को ईडी की ओर से मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ्तार करने और उस केंद्रीय जांच जांच एजेंसी को हिरासत में देने के एक विशेष अदालत के फैसले को उचित ठहराते हुए उनकी याचिका (मुख्यमंत्री केजरीवाल की) खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी और उनकी हिरासत मामले में हस्तक्षेप करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था।
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि ईडी की ओर से अदालत के समक्ष पेश दस्तावेजों से प्रथम दृष्ट्या पता चलता है कि आरोपी केजरीवाल उक्त अबकारी नीति को तैयार करने की साजिश शामिल थे।उन्होंने (आरोपी) उस अपराध से प्राप्त आय का इस्तेमाल किया। एकल पीठ ने यह भी कहा था कि वह (केजरीवाल) व्यक्तिगत तौर पर उस नीति को बनाने और रिश्वत मांगने में भी कथित तौर पर शामिल थे। उच्च न्यायालय ने इससे पहले तीन अप्रैल को दोनों पक्षों की दलीलें विस्तारपूर्वक सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई अपनी गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह (उनकी गिरफ्तारी) लोकतंत्र, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और समान अवसर सहित संविधान की मूल संरचना का ‘उल्लंघन’ करता है। इसलिए उनकी गिरफ्तारी और हिरासत को अवैध घोषित किया जाना चाहिए।
ईडी ने केजरीवाल पर दिल्ली अबकारी नीति के माध्यम से गलत तरीके से करोड़ों रुपए हासिल करने और पूरे मामले में मुख्य भूमिका निभाने वाला ‘साजिशकर्ता’ होने का आरोप लगाया है।केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 17 अगस्त 22 को अबकारी नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन में की गई कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया था। इसी आधार पर ईडी ने 22 अगस्त 22 को धनशोध का एक मामला दर्ज किया था।
ईडी का दावा है कि आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसौदिया, राज्य सभा सांसद संजय सिंह सहित अन्य ने अवैध कमाई के लिए “साजिश” रची थी।
इस मामले में ‘आप’ सांसद सिंह को उच्चतम न्यायालय ने दो अप्रैल को राहत दी। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत की अनुमति के साथ ही संबंधित विशेष अदालत को जमानत की शर्ते तय करने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत के इस आदेश के मद्देनजर राऊज एवेन्यू स्थित काबेरी बाबेजा की विशेष अदालत ने तीन अप्रैल को उन्हें सशर्त तिहाड़ जेल से रिहा करने का आदेश पारित किया और उसी दिन रात में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था।